कैसा समाज बनाएंगे झूठे और मक्कार शिक्षक?

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  • सरकार के आखिरी दिनों में हो रहे दनादन तबादले
  • चालबाज और जुगाडू शिक्षकों का खमियाजा भुगत रहे जरूरतमंद टीचर

नवल किशोर कबटियाल एक शिक्षक हैं जिनकी बेटी पिछले तीन दिन से कोमा में हैं। उनका तबादला देहरादून हुआ लेकिन जब उस स्कूल पहुंचे तो पता चला कि दो दिन पहले ही उनकी जगह किसी अन्य टीचर को तैनात कर दिया गया है। ऐसे बहुत से टीचर हैं जिनके साथ निदेशालय से खेल हो गया है। ऐसे ही लवेंद्र सिंह शिक्षक का 2019 में दुर्गम से सुगम में विकलांगता के आधार पर तबादला किया गया लेकिन आज भी वो दुर्गम में ही काम कर रहे हैं क्योंकि उनकी जगह किसी और ने हथिया ली।
चुनाव आचार संहिता लगने से ठीक पहले जैसे कि उम्मीद थी कि सभी जगह दनादन तबादले होंगे। शिक्षा विभाग भी अछूता नहीं है लेकिन यहां भी गजब हाल है। कई शिक्षक गंभीर बीमारी के बहाने तबादला करवा रहे हैं। कुछ को वाकई तबादला चाहिए था। लेकिन कई झूठे और मक्कार शिक्षकों ने भी अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर दूसरे जरूरतमंद टीचर की जगह हथिया ली। गजब हाल में शिक्षा निदेशालय का। जब शिक्षक ही झूठे और मक्कार हों तो वह अपने शिष्यों को कैसी शिक्षा देंगे? कैसा समाज और राष्ट्र निर्माण करेंगे?
शिक्षा विभाग ने गंभीर बीमारियों के हवाले से धारा 27 के तहत 260 शिक्षकों के तबादले किये हैं। यदि ये सभी सही हैं तो ठीक लेकिन यदि झूठे हैं तो ये सार्वजनिक तौर पर जलालत के हकदार हैं। इस बार बीमारियों में विधवा टीचर की एक नई कैटेगिरी बनाई गयी है। इसके अलावा कोरोना में हुई मृत्यु को भी आधार बनाया गया है। लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि कई टीचर एक ही प्रमाणपत्र को बार-बार इस्तेमाल करते हैं। यानी एक प्रमाण का लाभ बार-बार ले लेते हैं। जबकि एक बार लाभ लेने के बाद उन्हें इसका हकदार नहीं माना जाना चाहिए। निदेशालय ने एक और गजब किया 16 प्रवक्ताओं को नयी तबादला सूची में शामिल कर लिया जबकि उनको लगभग डेढ साल पहले एलटी से प्रवक्ता पद पर पदोन्नति मिली थी और नियमानुसार प्रमोशन के 15 दिनों में ही तबादला हो जाना चाहिए था लेकिन राजनीतिक रसूख और अधिकारियों के मुंहलगे होने के कारण उनका तबादला चुनाव से पहले किया गया है।
चुनाव के समय है और मंत्री और नेताओं के इशारे पर दनादन तबादले हो रहे हैं यानी 20-20 मैच का आखिरी ओवर है। लेकिन बुनियादी सवाल यह है कि जब शिक्षक ही झूठे, फरेबी, मक्कार और निहायती स्वार्थी होंगे तो फिर वो अपने विद्यार्थियों को क्या सीख देंगे? हर महीने 90 हजार से एक लाख रुपये पाने वाले शिक्षक के पास यदि नैतिकता नहीं है, सच का साथ देने की हिम्मत नहीं है तो फिर इनको अंडमान के सेल्यूलर जेल में भेज देना चाहिए। ऐसे शिक्षकों को समाज के सामने एक्सपोज करना जरूरी है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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