कुलदीप: घर से भागा एक युवा पहाड़ी

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कल सुबह गढ़वाली न्यूज शूट के लिए आईटीएम स्थित स्टूडियो पहुंचा। घर से ही देर से चला था तो टीम के सदस्य स्टूडियो से बाहर आ गये थे। शनिवार को स्टूडेंट्स नहीं आते तो रमन जी और प्रदिप्ता भी वापस जाने लगे। क्या करूं, सोचा आवारागर्दी ही कर लूं। घंटाघर, दून अस्पताल, मोती बाजार में कुछ देर घूमा और फिर चकराता रोड होते हुए अपने घर के निकट स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट के बाहर बस स्टाप पर बैठ गया।
इस बीच किसी का फोन आ गया। मैं फोन पर व्यस्त था कि एक फटी जींस वाला युवक मेरे बगल में आ कर बैठ गया। मैंने अधिक ध्यान नहीं दिया। फोन पर बात ही कर रहा था कि वह बोला, यह फोन मेरा है। कहो, कुलदीप यहां है। मैं चौंक गया। गौर से देखा, दुबला पतला, सांवला सा। टी-शर्ट जींस में। समझ में आ गया कि कुछ गड़बड़ है। मैंने फोन काट दिया।
इससे पहले कुछ बोलता, वह बोला, मेरे भाई को बताओ, कि कुलदीप यहां हैं। मैंने कहा, भाई का नाम क्या है। वह बोला, रघुवीर। मैंने कहा, नंबर क्या है। उसने तपाक से नंबर बोल दिया। 9719369644. दस नंबर बताने के बाद कुछ और सोचने लगा। मैंने कहा कि ठीक नंबर है। डायल कर दिया। उधर, रघुवीर ही था। रघुवीर ऋषिकेश में ठेकेदारी का काम करता है।
रघुवीर ने बताया कि भाई की मानसिक हालत ठीक नहीं। वह अक्सर घर से भाग जाता है और जब थोड़ा ठीक होता है तो वापस लौट आता है। उन्होंने कहा कि वह घर लौट आएगा।
फोन काटने के बाद मैंने उसे कई सवाल पूछे, बताने लगा कि कंडक्टर हूं। बस जाती है। वह खुद ही बनाने लगा पौड़ी गढ़वालक के कोट ब्लाक के कठुड़ गांव का हूं। मैंने कहा कि आगरा गया, बोला हां, लौट आया। मैंने उसे कहा, भूख लगी है क्या। उसने सिर इनकार में हिला दिया। मुझे उसकी खुद्दारी पसंद आयी। पहाड़ का युवा ऐसे ही खुद्दार होता है। मैंने फिर कहा, कुछ खा लो। इस बार उसने कहा, खिला दो।
बस स्टाप के बगल में एक साफ सुथरी कार्ट है। यह पौड़ी के पोखड़ा ब्लाक का मनवीर चलाता है। मैंने कुलदीप को कहा, राजमा खाओगे या कड़ी। वह बोला, कड़ी। इस दौरान कुलदीप कई बातें कर रहा था। कुछ समझ भरी और कुछ समझ से परे। मैंने उसे कहा कि पुलिस के पास चलोगे? वह तुम्हें ऋषिकेश भेज देगी। वह नहीं माना। बड़ी देर तक हम दोनों बेकार की गप्प मारते रहे। वह कहीं जाने के लिए तैयार नहीं था। मैंने उसे कुछ पैसे दिये और हिदायत दी कि भाई के पास चले जाओ। उसने सिर हिला दिया।
शाम को मैंने कुलदीप के संबंध में उसके बड़े भाई रघुवीर से बात की। कुलदीप गांव में पढ़ नहीं रहा था। तो रघुवीर उसे साथ ले आया। दोनों भाई साथ रहते। कुलदीप खूब मेहनती था। घर का सारा काम करता। स्कूल भी जाता लेकिन दसवीं पास न कर सका। इसके बाद वह एक बस पर कंडक्टर बन गया। 2005 के दौरान रघुवीर ने उसके लिए छोटा हाथी किस्तों पर खरीद लिया और वह ड्राइवरी करने लगा।
रघुवीर के अनुसार उसे बचपन से फिट्स आते थे। फिट्स अब कुछ अंतराल के बाद आने लगे। उसका इलाज सीएमआई, चकराता रोड के एक डाक्टर और पिरान कलियर में भी कराया, नतीजा सिफर रहा। अब वह घर से भागने लगा। आगरा भी गया लेकिन 21 दिन बाद लौट आया। अब उसकी आदत हो गयी है कि जब दिमागी परेशान होता है तो घर से भाग जाता है और फिर कुछ ठीक होने पर लौट आता है। यूं ही किसी से भी नंबर देकर अपनी कुशलक्षेम देता है। रघुवीर का कहना है कि यदि एम्स ऋषिकेश में इसका इलाज हो तो उनके लिए भी यह आसान होगा। मैंने आश्वासन दिया है कि मैं यथासंभव मदद करूंगा।
दरअसल, यह कहानी अकेले कुलदीप की नहीं है। पहाड़ के हर उस युवा की है जो अभावों में पला-बढ़ा, जिसको बीमार होने पर समय पर न डाक्टर मिला और न दवाई। इसकी परणिति कुलदीप के तौर पर हुई। हमारे इर्द-गिर्द मानसिक विकार लिए सैकड़ों युवा पहाड़ी घूम रहे हैं और हमारे नीति-नियंता दिल्ली के मैक्स में इलाज करते हुए सेल्फी पोस्ट कर रहे हैं। यही पहाड़ की हकीकत और नीयति है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

वाह, एमपी पुलिस, जांच कर रही कि किस नियम के तहत पत्रकारों को अर्द्धनग्न किया गया?

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