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लौहद्वार

मैं तिहाड़ जेल का लौहद्वार हूँ। अभी-अभी जो व्यक्ति अपने लस्त-पस्त शरीर को किसी तरह आगे धकेलता हुआ मुझसे बाहर निकला है मैं उसे...

सन्नाटों का प्रकाशपर्व

दशहरा बाद के बीस दिन जैसे नीले घोड़े पर सवार होकर उड़े जा रहे थे। बँगलों में हो रही साफ-सफाई और रँगाई-पुताई ने सूचित...

वानप्रस्थ

यह जो सामने आप तीन-मंजिला धवल संगमरमरी भवन देख रहे हैं उसे बन्सल कुटिया कहते हैं। जनाब, चौंकिए मत, इसके मालिक जगदीशलाल बन्सल इसे...

मधुदीप की लधुकथाः लौटा हुआ अतीत

हाँ अनवर! मैं इस धार्मिक किताब पर हाथ रखकर पूरे होशो हवास में यह स्वीकार करती हूँ कि उस समय तुम्हारे प्यार की गिरफ्त...

मधुदीप की लघुकथाः समय का पहिया घूम रहा है

शहर का प्रसिद्ध टैगोर थिएटर खचाखच भरा हुआ है। जिन दर्शकों को सीट नहीं मिली है वे दीवारों से चिपके खड़े हैं। रंगमंच के...

मधुदीप की लघुकथाः नमिता सिंह

हँसता हुआ नूरानी चेहरा, काली जुल्फें रंग सुनहरा...जी हाँ! आप नमिता सिंह के बारे में बेशक यह जुमला उछाल सकते हैं मगर उसके व्यक्तित्व...

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