विश्वभर में फ़ैला है भारतीय साहित्य व संस्कृति

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नई दिल्ली, 26 जनवरी। उत्थान फाउंडेशन द्वारका के तत्वावधान में 26 जनवरी को 73वें गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में अंतरराष्ट्रीय वेबिनार, ‘गणतंत्र भारत की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक व्यापकता’- विषय पर चर्चा, संस्मरण और काव्य पाठ आयोजित किया गया। संचालिका अरूणा घवाना ने बताया कि संस्कृति के पग-पग पर साहित्य चले और साहित्य के सहारे संस्कृति फैलती है। आयोजक तरूण घवाना ने साझा किया कि भारत से इतर 12 देशों के वक्ताओं ने इस वेबिनार की अंतरराष्ट्रीय व्यापकता को सार्थक किया।

वेबिनार की मुख्य अतिथि वर्ष 2016 में ऑफिसर ऑफ द न्यूजीलैंड आर्डर ऑफ मेरिट के रूप में नियुक्त न्यूजीलैंड से डॉ पुष्पा भारद्वाज वुड ने कहा कि भारत के बाहर बसे भारत को पहचानने की जरूरत है, और अब तो ऐसा महसूस होता है कि विदेशों में ही एक भारत बस गया है। अतिथि वक्ता प्रसिध्द भाषाविद् और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विमलेश कांति वर्मा ने कहा कि साहित्य और संस्कृति की बात करने से पहले उसके भाव को समझना जरूरी है।

केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा की निदेशक प्रो बीना शर्मा ने भी सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि हमें अपने संस्कारों और उनके अर्थों को समझने की जरूरत है। तभी उनके प्रति हम आदर भाव ला सकते हैं। त्रिनिदाद टोबैगो से भारतीय उच्चायोग में द्वितीय सचिव (हिंदी, शिक्षा एवं संस्कृति) के पद पर कार्यरत शिव कुमार निगम ने कहा कि भारत का साहित्य और संस्कृति विश्वभर के देशों में फैली है। वहीं से कवियत्री रुकमिणी होल्लास ने काव्य पाठ किया।

नीदरलैंड से भाषाविद् प्रोफेसर मोहन कांत गौतम ने साझा किया कि 1950 के बाद साहित्य में काफी बदलाव देखा गया। यूके से ऑनलाइन पत्रिका ’लेखनी’ की संपादिका शैल अग्रवाल ने प्रवासी भारतीयों के साहित्य के अंश साझा किए और बताया कि प्रवासी साहित्य का व्यापकता में अपना महत्व है।
मॉरीशस से कला और सांस्कृतिक विरासत मंत्रालय के संस्कृति अधिकारी डॉ राकेश श्रीकिसून ने मॉरीशस की संस्कृति पर भारत की छाप का वर्णन किया।
फिजी से यूनीवर्सिटी ऑफ फिजी की प्राध्यापिका और हिन्दी टीचर्स एसोसिएशन फिजी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मनीषा रामरक्खा ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत कर वहां पढ़ाए जा रहे भारतीय साहित्य का भी जिक्र किया। सूरीनाम से लैला लालाराम ने सूरीनाम में अपनाई जा रही भारतीय संस्कृति के बारे में चर्चा करते हुए काव्य पाठ किया।
स्वीडन से इंडो स्कैंडिक संस्था के वाइस प्रेसिडेंट सुरेश पांडेय ने संस्मरण के साथ काव्य पाठ भी किया। पोलैंड से मैटीरियल साइंस के वैज्ञानिक डॉ संतोष तिवारी ने कविता सुनाकर सबको गणतंत्र दिवस की बधाई दी।
यूएई से कवियत्री मंजू तिवारी ने अपनी दशक पहले की यादों को ताजा करते हुए बताया कि अब स्थितियां ज्यादा बेहतर हैं। साथ ही काव्य प्रस्तुति दी। यूएसए से शुभ्रा ओझा ने बताया कि भारत की नींव उनसे पहले की पीढ़ी रख गई है तो अब यह परदेस नहीं लगता, किंतु उनके काव्य पाठ ने उनके मन में रमे भारत को बयां कर दिया।

‘गणतंत्र भारत की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक व्यापकता’ पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार 26 को

 

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