नरक जैसी सजाएं देने वाला हिब्‍तुल्‍लाह अफगानिस्‍तान का राष्‍ट्रपति घोषित, जानें पूरी कहानी

1039
file photo source: social media

काबुल/नई दिल्‍ली, 16 अगस्‍त। तालिबान ने अफगानिस्‍तान के राष्ट्रपति भवन पर कब्जे के बाद हिब्तुल्लाह अखुंदजादा को अमीर अल मोमिनीन, यानी अफगानिस्तान का राष्ट्रपति घोषित कर दिया है। बताया जा रहा है कि हिब्तुल्लाह अखुंदजादा ऐसा क्रूर कमांडर है, जो नरक जैसी सजाएं देने के लिए बदनाम है। तालिबान के शासन के दौरान वह कातिल और अवैध संबंध रखने वालों की हत्या करवाने और चोरी करने वालों का हाथ काटने की सजा देता था। बता दें कि उसके नाम हिब्तुल्लाह को अरबी में ईश्वर का तोहफा कहा जाता है, जबकि इसके उलट वो शैतान से कम नहीं माना जाता।
हिब्तुल्लाहह अखुंदजादा 1961 के आस-पास अफगानिस्तान के कंधार प्रांत के पंजवई जिले में नूरजई कबीले में पैदा हुआ था। उसके पिता मुल्ला मोहम्मद अखुंद एक धार्मिक विद्वान थे और मस्जिद के इमाम थे। हिब्तुल्लाह अखुंदजादा ने अपने पिता से ही तालीम हासिल की। वर्ष 1980 में जब अफगानिस्तान में सोवियत यूनियन की सेना ने दस्‍तक दी तो सेना और सरकार के खिलाफ लड़ रहे मुजाहिदीनों को खुद अमेरिका और पाकिस्तान से मदद दी थी। उस दौरान हिब्तुल्लाह अखुंदजादा का परिवार पाकिस्तान के क्वेटा चला गया और वह वहां मुजाहिदीन बना गया।
वर्ष 1989 तक सोवियत यूनियन की सेना वापस लौट गई और लड़ाके अब आपस में ही लड़ने लगे। ऐसा ही एक लड़ाका मुल्ला मोहम्मद उमर था। उसने कुछ पश्तून युवाओं को साथ लेकर तालिबान आंदोलन शुरू किया। उसमें हिब्तुल्लाह अखुंदजादा भी शामिल हो गया। वर्ष 1996 में जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा जमाया उस वक्त अखुंदजादा को फराह प्रांत के धार्मिक विभाग की जिम्मेदारी मिली। बाद में वो कंधार चला गया और एक मदरसे का मौलवी बन गया। ये मदरसा तालिबान फाउंडर मुल्ला उमर चलाता था जिसमें 1 लाख से ज्यादा छात्र पढ़ते थे।
वर्ष 1996 में अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन हो गया। हिब्तुल्लाह अखुंदजादा को इस्लामिक अमीरात अफगानिस्तान में शरिया अदालत का चीफ जस्टिस बनाया गया। चीफ जस्टिस रहते हुए अखुंदजादा ने सालों तक क्रूर सजा के आदेश दिए। जैसे- हत्यारों और अवैध संबंध रखने वालों की हत्या का आदेश और चोरी करने वालों का हाथ काट देना। वो फतवा जारी करने के लिए जाना जाता है। फतवों के मामले में मुल्ला उमर और मुल्ला मंसूर दोनों तालिबान चीफ अखुंदजादा से सलाह मशविरा करते थे।
इस बीच 7 अक्टूबर 2001 को अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया। सभी तालिबानी नेता तितर-बितर हो गए। कोई मारा गया, कोई पकड़ा और कोई पाकिस्तान भाग गया। इस दौरान हिब्तुल्लाह अखुंदजादा अफगानिस्तान में ही डटा रहा। माना जाता है कि इस दौरान उसने ज्यादा यात्राएं नहीं कीं। हिब्तुल्लाह अखुंदजादा के एक स्टूडेंट ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया था कि 2012 में उसकी हत्या का प्रयास किया गया था। उस वक्त वो क्वेटा के एक मदरसे में पढ़ा रहा था। तभी एक स्टूडेंट ने खड़े होकर उसके ऊपर पिस्टल तान दी। अखुंदजादा की किस्मत अच्छी थी कि पिस्टल फंस गई और गोली नहीं चली।
तालिबान के फाउंडर मुल्ला मोहम्मद उमर 2013 में बीमारी से मर गया। उसके बाद हकीमुल्लाह मसूद ने तालिबान की कमान संभाली, लेकिन 2013 ड्रोन अटैक में उसकी भी मौत हो गई। 2015 में तालिबान ने मुल्ला मंसूर को अपना नया नेता चुने जाने की घोषणा की। मई 2016 में ड्रोन हमले में मुल्ला मंसूर की भी मौत हो गई। 25 मई 2016 को हिब्तुल्लाह अखुंदजादा को तालिबान की कमान सौंपी गई। माना जाता है कि मंसूर ने अपनी वसीयत में इसका नाम लिखा था। हिब्तुल्लाहह अखुंदजादा की नियुक्ति तालिबान के बड़े नेताओं ने पाकिस्तान के क्वेटा में की थी। हालांकि रहबरी शूरा, यानी तालिबान काउंसिल के सभी मेंबर्स वहां मौजूद नहीं थे। एक तबके को हिब्तुल्लाह अखुंदजादा के लीडर बनने से आपत्ति थी, लेकिन कोई विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा सका।
तालिबान के प्रवक्ता यूसुफ अहमदी ने एक बयान में बताया था कि 20 जुलाई 2017 को हिब्तुल्लाह अखुंदजादा का बेटा अब्दुर्रहमान अफगान मिलिट्री बेस पर एक सुसाइड अटैक करते हुए मारा गया। अगस्त 2019 में अखुंदजादा का भाई हाफिज अहमदुल्लाह एक बम धमाके में मारा गया। बम धमकों में उसके परिवार के कई लोग मारे गए।
(साभारः एजेंसियां)

तालिबान के तेजी से कब्जा किए जाने से स्तब्ध बाइडन प्रशासन, ट्रंप ने बताया सबसे बड़ी हार

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here