तालिबानः दिल्ली बैठकः कितनी सार्थक

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photo source: social media

दिल्ली में हुई अफगानिस्तान संबंधी अंतरराष्ट्रीय बैठक कुछ कमियों के बावजूद बहुत सार्थक रही। यदि इसमें चीन और पाकिस्तान भी भाग लेते तो बेहतर होता लेकिन उन्होंने जान-बूझकर अपने आप को अछूत बना लिया। इसके अलावा इस बैठक ने अफगानों की मदद का प्रस्ताव तो पारित किया लेकिन ठोस मदद की कोई घोषणा नहीं की। भारत ने जैसे 50 हजार टन गेहूं भिजवाने की घोषणा की थी, वैसे ही ये आठों राष्ट्र मिलकर हजारों टन खाद्यान्न, गर्म कपड़े, दवाइयां तथा अन्य जरुरी सामान काबुल भिजवाने की घोषणा इस बैठक में कर देते तो आम अफगानों के मन में खुशी की लहर दौड़ जाती। इसी प्रकार सारे देशों के सुरक्षा सलाहकारों ने सर्वसमावेशी सरकार और आतंकविरोधी अफगान नीति पर काफी जोर दिया लेकिन किसी भी प्रतिनिधि ने तालिबान के आगे कूटनीतिक मान्यता की गाजर नहीं लटकाई। भारत के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्रालय और सुरक्षा सलाहकार से मैं यह अपेक्षा करता था कि वे जब सभी सातों प्रतिनिधियों से मिले, तब वे उनसे कहते कि ऐसी पिछली बैठकों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने जो प्रस्ताव पारित कर रखे हैं, उन्हें दोहराने के साथ-साथ तालिबान को ठीक रास्ते पर लाने के लिए वे नए संकल्प की घोषणा करें। यदि वे ऐसा करते तो पाकिस्तान और चीन का पैंतरा अपने आप चित हो जाता। दोनों देशों को अफसोस होता कि वे दिल्ली क्यों नहीं आए?
दिल्ली बैठक के कारण भारत को अफगान-संकट में थोड़ी भूमिका अवश्य मिल गई है बल्कि मैं यह कहूंगा इस मौके का लाभ उठाकर भारत को अग्रगण्य भूमिका निभानी चाहिए थी। भारत तो इस पहल में चूक गया लेकिन पाकिस्तान यही भूमिका निभा रहा है। उसने अपने यहां अमेरिका, रुस और चीन को तो बुला ही लिया है, तालिबान प्रतिनिधि को भी जोड़ लिया है। मैं पहले दिन से कह रहा हूं कि हम लोग अमेरिका और तालिबान से परहेज़ बिल्कुल न करें और उनसे किसी भी प्रकार दबे भी नहीं। वैसे तो भारत का विदेश मंत्रालय अमेरिका का लगभग हर मामले में पिछलग्गू-सा दिखाई पड़ता है लेकिन फिर क्या वजह है कि तालिबान के सवाल पर भारत और अमेरिका ने एक-दूसरे से दूरी बना रखी है? यह खुशी की बात है कि दिल्ली-बैठक में तालिबान-प्रश्न पर सर्वसम्मत घोषणा हो गई है लेकिन विभिन्न राष्ट्रों के प्रतिनिधियों के भाषणों में अपने-अपने राष्ट्रहित भी उन्होंने प्रतिबिंबित किए हैं। इन भाषणों और आपसी बातचीत से हमारे अफसरों का ज्ञानवर्द्धन जरुर हुआ होगा। पाकिस्तान, भारत के साथ पहल करने में घबरा रहा है लेकिन भारत ने अच्छा किया कि उसे दावत दे दी। भारत यह न भूले कि वह दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा भाई है। बड़े भाई के नाते यदि उसे थोड़ी उदारता दिखानी पड़े तो जरुर दिखाए और अफगानिस्तान से संबंधित सभी राष्ट्रों को साथ लेकर चलने की कोशिश करे।

An eminent journalist, ideologue, political thinker, social activist & orator

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(प्रख्यात पत्रकार, विचारक, राजनीतिक विश्लेषक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं वक्ता)

ये पद्मश्री के सच्चे हकदार

 

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