भुज में अजय देवगन फिर बने मराठा जांबाज लेकिन तानाजी जैसा प्रभाव नहीं पैदा कर पाई फिल्म

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फिल्म समीक्षा

टाइटल – भुज द प्राइड ऑफ इंडिया

निर्देशक – अभिषेक दुधैया

सितारे – अजय देवगन, संजय दत्त, शरद केलकर, सोनाक्षी सिन्हा, नोरा फतेही आदि।

भुज-द प्राइड ऑफ इंडिया : इतिहास का पन्ना
जश्ने आजादी के मौके पर रिलीज भुज द प्राइड ऑफ इंडिया फिल्म इतिहास का एक खास पन्ना खोलती है। एक ऐसा पन्ना जिसकी कहानी आज बहुत से लोगों को नहीं मालूम। यह कहानी तब की है जब पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा आजाद होकर बांग्लादेश बन रहा था और इसी खुंदक में पाकिस्तान ने धोखे से भारत के पश्चिमी हिस्से खास तौर पर भुज एयर बेस पर खतरनाक तरीके से हमला कर दिया। 8 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान ने भुज स्थित एयरफोर्स बेस पर बम बरसा दिये। जिसमें काफी नुकसान हुआ। भारतीय सेना का रनवे तबाह हो गया था। हवाई ऑपरेशन्स में बाधा आ गई थी। पाकिस्तान भुज पर कब्जा करने के सपने देखने लगा था। लेकिन भुज एयरपोर्ट के प्रभारी विजय कार्णिक की सूझबूझ और बहादुरी ने पाकिस्तान को धूल चटा दी।

फिल्म की कहानी का यह मूल आधार है। और इस मूल आधार को मुंबइया फॉर्मूला फिल्मों की शैली में एक कथात्मक आयाम दिया गया है। अखबारी कतरनों और लिखित दस्तावेजों से सहायता लेकर सीन और संवाद लिखे गये हैं।

शुरुआती हिस्सा काफी कमजोर
कुल एक घंटे छप्पन मिनट की इस फिल्म का शुरुआती करीब दस मिनट-पंद्रह मिनट का हिस्सा बहुत लचर है और उसका कोई तारतम्य नहीं बन पाता है। कहानी कम होने के चलते एक्शन सीन अधिक से अधिक क्रियेट किये गये हैं। अब इसे वीडियो गेम का दुराग्रह कहिये या कुछ और कि युद्ध और एक्शन के वीएफएक्स और उसके बैकग्राउंड स्कोर उसके प्रभाव से अलग प्रतीत नहीं होते। लिहाजा फिल्म का शुरुआती हिस्सा बहुत प्रभावित नहीं कर पाता। विजय कार्णिक के रूप में अजय देवगन पूरे फॉर्म में हैं और अपनी चिर परिचित एक्शन शैली में पूरी फिल्म में नजर आते हैं।

संजय, शरद, नोरा और सोनाक्षी के रंग
फिल्म में रॉ के जासूस रणछोर दास पगी बने संजय दत्त और सुंदर बेन बनी सोनाक्षी सिन्हा के किरदारों से फिल्म में थोड़ी विविधता आती है। दरअसल इस फिल्म में दिखाया गया है कि पाकिस्तान के हमले से बर्बाद हुये भुज एयरपोर्ट के रनवे बनाने में गांव की जिन महिलाओं ने जिस प्रकार भारतीय सेना की मदद की, उसमें सुंदरबेन सबसे आगे थी। सुंदरबेन ने ही गांव की तीन सौ महिलाओं को इकट्ठा किया था। इन दोनों किरदारों के अलावा मिलिट्री ऑफसर राम करण के तौर पर शरद केलकर और पाकिस्तान में जांबाज भारतीय महिला जासूस हीना रहमान के तौर पर नोरा फतेही ने भी प्रभावशाली अभिनय किया है। ये चारों किरदार अजय देवगन के किरदार को काफी मजबूती देते नजर आते हैं।

फिल्म के अविश्वसनीय सीन
इसमें कोई दो राय नहीं कि भुज से पाकिस्तानी सैनिकों को भगाने में भारतीय जवानों ने काबिले तारीफ का काम किया था लेकिन इसके बावजूद इस फिल्म में कुछ सीन आज के दर्शक पचा सकेंगे या नहीं कहना मुश्किल है। एक स्थान पर अजय देवगन बिल्कुल जेम्स बांड के अंदाज में सामने खड़े दुश्मन के हाथ से पिस्तौल छीन कर उसी पर तान देते हैं। रॉ के जासूस बने संजय दत्त अकेले पाकिस्तानी सैनिकों को अंधाधुंध मारे, काटे जा रहे हैं। वहीं हवाई जहाज को ट्रक के सहारे लैंड कराना भी कम अविश्वसनीय नहीं लगता। मालूम नहीं कि ये ऐतिहासिक तथ्य हैं या शूरवीरता के प्रदर्शन के लिए ऐसे सीन गढ़े गये हैं।

अजय देवगन यहां एक बार फिर मराठा जांबाज बने हैं लेकिन फिल्म तानाजी वाला प्रभाव नहीं पैदा कर पाई है। फिल्म की सबसे बड़ी कमी इसका गीत-संगीत है। शेरशाह की तरह यहां भी गीत-संगीत पर ध्यान नहीं दिया गया है। ये कमियां फिल्म को अविस्मरणीय नहीं बना पाती।

रेटिंग – 2 स्टार

-संजीव श्रीवास्तव

[साभार: www.epictureplus.com]

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