कुल्लू घटना: वज़ीरे आज़म के नायब को ये गुमान है यारब, जिलों के सुबेदार उनके गुलाम हैं शायद!!

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file photo source: social media

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के सुरक्षा अधिकारियों और कुल्लू जिले के पुलिस अधीक्षक ( IPS) की झड़प के बाद भले ही DGP संजय कुंडू ने तीन पुलिस कर्मियों ( S.P , Adl ASP , PSO ) पर पुलिस मैन्युअल सैक्शन 63 के तहत कार्यवाही कर दी हो। परंतु यह बात भी विचारणीय है कि, ऐसा क्या हो गया था जो IPS अधिकारी को यह कदम उठाना पड़ा खास तौर से वो अधिकारी जिसको DG DISK AWARD पूर्व में मिला हो और जो अपने कार्य के प्रति सजग व समर्पित हो ? ( मैं ये नहीं कहता की, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर जी के सुरक्षा अधिकारी अपने कार्य के प्रति समर्पित नहीं हैं) ये तो शुक्र समझिए की S.P साहब के अच्छे कामों और जनता के समर्थन की वजह से केवल उन पर गाज़ नहीं गिरी वर्ना हो तो ये भी सकता था कि कोपभाजन केवल S.P को ही बनाया जाता। लेकिन क्या मुख्यमंत्री के सुरक्षा अधिकारी अपने से आला अधिकारी को निर्देश दे सकते हैं भला? फिर कैसे एक जिले के S.P को को कनिष्ठ अधिकारी कुछ गलत कह सकता है या बार-बार सवाल-जवाब कर सकता है?
पुलिस मैन्युअल में यह कहाँ लिखा है कि खादी की सवारी को उतारने के लिए खाकी मैदान साफ़ करेगी? लेकिन यह इसलिए हो सकता है और मुख्यमंत्री के सुरक्षा अधिकारी इसलिए ऐसा कर सकते हैं क्योंकि मंत्री सरेआम अफसरों व बड़े अधिकारियों को लोगों के सामने अपमानित करते हैं और अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करते हैं (और उस समय PSO व अन्य सुरक्षा अधिकारी मंत्रियों और मुख्यमंत्री के साथ खड़े होते हैं और यंही से उनके मन में यह अवधारणा बन जाती है की हम तो बड़े से बड़े अधिकारी से भी बड़े हैं क्योंकि हमारे बड़े अफसर को जो डांट रहा है “मैं ” तो उसके साथ हूं फिर मैं भी जो चाहूँ कर सकता हूं “) यही पिछली सरकार में भी बहुत बार देखने को मिला और इस सरकार में भी।
बात का हास्यास्पद पहलु यह भी है के PSO अपने बयान में कह रहा है के बीच बचाव में “शायद” उनका पैर S.P को लग गया (जबकि वीडियो में उसे लात मारते हुए साफ़ देखा जा सकता है)। ये केवल पुलिस की बात नहीं, कई बार IAS अधिकारियों को भी सामाजिक मंचों पर मंत्रियों द्वारा अपमानित किया जाता है लेकिन कभी उस नेता, मंत्री या मुख्यमंत्री पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती बस जनाब यही से इस दौर की शुरूवात हुई की मुख्यमंत्री और मंत्री के दफ़्तर का चपरासी भी अपने आप को D.C से ऊपर समझता है। दिक्कत यह भी है की इस दिक्कत को ऊपर बैठे अधिकारी भी जानते हैं पर फिर भी सब अपने-आप को सरकार की गुड बुक्स में रखने के चक्कर में चुप लगाए रहते हैं। पर मैं चुप नहीं रहता क्योंकि ना पक्ष हूँ, ना मैं विपक्ष हूँ, “मै” तो प्रत्यक्ष हूँ। इसलिए कुल्लू की घटना मेरी नज़र में मुख्यमंत्री के सुरक्षा अधिकारियों के गलत बर्ताव का नतीज़ा था। मेरे मित्र ज्योति स्वरूप पांडे (पूर्व DGP उत्तराखंड) ने पुलिस रिफॉर्म के ऊपर किताबें लिखीं थी और भेंट स्वरूप मुझे भी दी थीं अगर मैं उनकी लिखी बातों को कहूँ तो बात बहूत दूर तक चली जाएगी। इसलिए समझने वाले समझें और सही का साथ देने की कोशिश करें ट्रांसफर पोस्टिंग और प्रमोशन आदि की चिंता किए बिना क्योंकि नेता की कुर्सी पांच साल बाद हट सकती है पर अधिकारी की नहीं।

जय हिंद जय हिमाचल

आपका
रविन्द्र सिंह डोगरा
(इस लेख में शामिल विचार लेखक के निजी विचार हैं)

भई अफसर हो तो सुभाष थलेडी जैसा, वरना कैसा अफसर?

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