द कश्मीर फाइल्स से इतर कुछ और भी है!

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  • कश्मीर घाटी में आज भी मौजूद हैं 808 पंडित परिवार
  • धारा 370 हटने के बावजूद वापस नहीं लौटा एक भी कश्मीरी पंडित

मेरे कई साथी मुझे लगातार द कश्मीर फाइल्स फिल्म देखने के लिए कह रहे हैं। जब भी मौका मिलेगा देखूंगा जरूर। जैसा मैंने सुना है कि यह एक बेहतरीन फिल्म है। आइए, कश्मीरी पंडितों के बारे में कुछ और भी जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर उनकी स्थिति क्या है और पिछले 30-32 साल में क्या हो रहा है।
बात 1994 उत्तराखंड राज्य आंदोलन की है। मैं कालेज में पढ़ता था और दिल्ली के जंतर-मंतर में चल रहे संयुक्त संघर्ष समिति के धरने में लंबे समय तक जुड़ा रहा। अक्सर देखता था कि हमारे साथ ही 1984 सिख दंगा पीड़ित और कश्मीरी पंडित भी जंतर-मंतर पर धरना देते थे। उनका परिवार सहित धरना और उनकी जीवनचर्या से मुझे बहुत दुख होता था। मैं आज भी उन तमाम लोगों के लिए व्यथित होता हूं जो दंगों या आतंकवाद से प्रभावित हैं। इनमें उत्तराखंड के सैकड़ों परिवार भी शामिल हैं। 1980 से अब तक कश्मीर में उत्तराखंड समेत पूरे देश के लगभग 8 हजार जवान शहीद हो चुके हैं। लेकिन सरकारों को कोई फर्क नहीं पड़ा और न ही किसी फिल्म प्रोडूयसर या डायरेक्टर ने इस मुद्दे पर फिल्म बनाई कि आखिर ये जवान बिना युद्ध के ही क्यों और कैसे शहीद हो जाते हैं?
कश्मीरी पंडितों के आंसू सच्चे हैं। उनकी कहानी सच्ची है। उनके साथ जुल्म हुआ है। लेकिन कश्मीर में अकेले कश्मीरी पंडितों पर ही जुल्म नहीं हुआ। इनमें दूसरे वर्ग और मुसलमान भी हैं। 1990 में जब कश्मीरी पंडित विस्थापित हुए तो आंकड़ा के हिसाब से 89 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई जबकि उस दौरान कुल 1600 लोग मारे गये थे। इसकी जांच किसी भी सरकार ने नहीं की। भाजपा जब जम्मू-कश्मीर में सरकार में भी थी तो उसने भी यह मुद्दा नहीं उठाया।
विडम्बना यह है कि सरकारें कोई भी रही हो, जनता पर जब भी अन्याय हुआ, अत्याचार हुआ, उसके खिलाफ संवेदनशील लोगों ने हमेशा आवाज उठाई और राजनीतिक दलों के नेताओं ने उस गरम तवे पर रोटी सेंकी। आज भी द कश्मीर फाइल्स की आड़ में राजनीतिक रोटियां सेंकने की पूरी तैयारी है।
कश्मीरी पंडितों के संगठन रिकंसीलिएशन, रिटर्न एंड रिहैबिलिटेशन ऑफ़ पंडित्स के अध्यक्ष सतीश महलदार ने भी ये फ़िल्म देखी है.सतीश कहते हैं कि फ़िल्म में कश्मीरी पंडितों के पलायन को तो दिखाया गया है लेकिन कई चीज़ें छिपा भी ली गई हैं। उनके अनुसार जब कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ उस वक्त भाजपा समर्थित वीपी सिंह सरकार थी और अब क़रीब 8 साल से केंद्र में बीजेपी की सरकार है लेकिन पलायन किसकी वजह से और किन परिस्थितियों में हुआ, उसकी जांच नहीं हुई। ये बात फ़िल्म में कहीं नहीं दिखती। सतीश कहते हैं कि आज कश्मीर में 808 कश्मीरी पंडितों के परिवार, जो कभी कश्मीर छोड़कर गए ही नहीं वो किस तरह गुज़र बसर कर रहे हैं, उनकी ज़िंदगियों की क्या कहानी है, इसे भी फिल्म में नहीं दिखाया गया है. वो कहते हैं, कुल मिलाकर विवेक अग्निहोत्री ने सेलेक्टिव तरीके से ये फ़िल्म पेश की है।
उनका कहना है, भाजपा ने प्रचार कर दिया कि कश्मीरी पंडितों को बसाएंगे लेकिन पिछले 8 साल से एनडीए सरकार है तो भी ये नहीं हुआ। कांग्रेस ने भी खूब वादे किए लेकिन कुछ ख़ास नहीं किया। लेकिन कांग्रेस ने एक काम किया कि जम्मू में पक्के कैंप बना दिए, जहां विस्थापित रह सकते थे और पीएम पैकेज लेकर आई। मनमोहन सरकार के दौरान साल 2008 में कश्मीरी माइग्रेंट्स के लिए पीएम पैकेज का ऐलान किया गया था। इस योजना में कश्मीर से विस्थापित लोगों के लिए नौकरियां भी निकाली गईं थीं। अब तक कश्मीरी पंडितों समेत अलग-अलग वर्गों के लिए इस योजना के तहत 2008 और 2015 में 6000 नौकरियों का ऐलान हो चुका है। कुछ हज़ार विस्थापित ये नौकरियां कर भी रहे हैं। इन लोगों को कश्मीर में बनाए गए ट्रांज़िट आवासों में रहना होता है।
साल 2021 के दौरान गृह मंत्रालय की तरफ़ आँकड़े जारी हुए थे। उसमें बताया गया था कि 1990 में 44,167 कश्मीरी प्रवासी परिवार रजिस्टर्ड हैं। इनमें हिंदू प्रवासी परिवारों की संख्या 39,782 है। पीएम पैकेज के तहत रोज़गार के अलावा इन परिवारों में जो अपने मूल स्थान पर बसना चाहते हैं उनके लिए आर्थिक सहायता का प्रावधान है, साथ ही कश्मीरी प्रवासियों को नकद राहत दी जाती है।
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के प्रेसिडेंट संजय टिक्कू के अनुसार अलग-अलग सरकारों ने उन कश्मीरी पंडितों की चिंता ख़ूब की जो यहां से चले गए लेकिन जो यहाँ रह रहे हैं उनके बारे में कोई नहीं सोचता। अहम बात यह है कि धारा 370 हटने के बावजूद कश्मीर में कुछ नहीं बदला। जो कश्मीरी पंडित घाटी में रह रहे हैं उनमें से भी अधिकांश अब घाटी छोड़ना चाहते हैं क्योंकि उन्हें यहां रोजगार नहीं मिल रहा। विस्थापित कश्मीरी पंडित परिवारों की पुनर्वास और वापसी सबसे बड़ी मांग है।
कश्मीरी पंडितों के संगठन ने सरकार को नेशनल ह्यूमन सैटलमेंट पॉलिसी बनाकर भी दी है। इसमें कहा गया है कि केंद्र भले ही पैकेज न दे केवल जम्मू-कश्मीर के बजट में से 2.5 फ़ीसदी दे दिया जाए। जो वापस जाना चाहते हैं, उनके लिए कॉलोनी बनाई जाए। इसके साथ ही वापस लौटने वाले पंडितों को रोजगार भी दिया जाए। कश्मीरी पंडितों का दावा है कि घाटी से पलायन करने वाला एक भी परिवार वापस नहीं लौटा।
नोट: यह रिपोर्ट विभिन्न प्रतिष्ठित अखबारों, पोर्टल और सरकारी आंकड़ों से मिले इनपुट पर आधारित है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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