भारतीय हाकी की सुनहरी यादें…

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file photo source: hockeyindia.org
  • जरा याद करें भारतीय हाकी के स्वर्णिम अतीत और इतिहास को और बना सके उसकी चमक को…

कल 24 जुलाई भारतीय हाकी टीम टोक्यो ओलंपिक में अपना पहला मैच न्यूजीलैंड के खिलाफ खेलते हुए अपने विजय पथ पर आगे बढ़ने के अभियान की शुरुआत करेगी। इस मैच से पहले कुछ रोचक तथ्य जो हमारे इस ओलंपिक में विजय होने की ओर संकेत करते हैं, जिसे सुनकर पढ़कर हम उमंग और उत्साह राष्ट्रीय भाव से भर जाएंगे…

1928 के ओलंपिक में जाने से पूर्व भारतीय हाकी टीम ने 1926 में सफल न्यूजीलैंड का दौरा संपन्न किया था। जिसमें भारतीय हाकी टीम ने कुल 21 मैच खेले थे। जिसमें से उसे 18 मैच में जीत हासिल हुई थी। कुल 192 गोल भारतीय हांकी टीम ने किए थे। ध्यानचंद ने 80 गोल इस दौरे में किए थे।

1936 बर्लिन ओलंपिक में भाग लेने से पूर्व भारतीय हाकी टीम ने 1935 में फिर एक बार न्यूजीलैंड का दौरा किया। जहां उसने 48 मैच खेले 47 में जीत दर्ज की, 1 मैच रद्द हुआ। भारतीय टीम ने कुल 584 गोल किए जिसमें से 201 गोल अकेले ध्यानचंद ने किए और फिर सर डॉन ब्रैडमैन की वह विश्वविख्यात टिपण्णी सामने आई जिसमे उन्होंने कहा- ध्यानचंद आप हाकी में ऐसे गोल करते हैं, जैसे हम क्रिकेट में रन बनाते हैं।

24 जुलाई 1935 को ही न्यूजीलैंड दौरे में भारतीय हाकी टीम ने रोटोरा में मैरिस के खिलाफ मैच खेलते हुए 11 के मुकाबले 1 गोल के बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी और 24 जुलाई को ही भारत का ओलंपिक में न्यूजीलैंड के साथ मुकाबला है हमारे लिए यह जीत का दिन है जो हमे 24 जुलाई 1935 में मिली जीत से स्पष्ट हो जाता है।

1964 के टोक्यो ओलंपिक से पूर्व एक बार भारतीय हाकी टीम ने फिर अपने अभ्यास के लिए न्यूजीलैंड का ही दौरा किया।

इस प्रकार भारत के ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने की राह न्यूजीलैंड से होकर ही निकली है और इसलिए टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत पहला मैच न्यूजीलैंड के खिलाफ खेलेगा और उसकी ओलंपिक जीत का रास्ता न्यूजीलैंड के खिलाफ जीत दर्ज करके ही शुरू होगा। यह बात भारतीय हांकी की सुनहरी यादें और उसका स्वर्णिम अतीत और इतिहास हमे बता रहा है।
’भारत ने 1960 में रोम ओलंपिक की पराजय को 1964 टोक्यो ओलंपिक जीत में बदलकर स्वर्ण पदक हासिल किया था। एक बार फिर भारतीय हांकी को अपनी स्वर्णिम चमक वापस लाने के लिए टोक्यो की धरती ने पुकार लगाई है की इस ओलंपिक में खेलते हुए आप स्वर्ण पदक जीते, क्यांेंकि टोक्यो में 1964 से रखा यह पोडियम आपकी राह देख रहा है और इसलिए भारतीय हांकी खिलाडि़यों को 1964 में पोडियम पर गले में स्वर्ण पदक डाले भारतीय तिरंगे के सामने खड़े भारतीय हांकी टीम को अपने मन मस्तिष्क में बसा लेना चाहिए।
यही वह जापान की धरती है जहां 1932 में भारतीय हाकी टीम की अगवानी करने समुद्री तट पर भारत के महान क्रांतिकारी रास बिहारी बोस और आजाद हिंद फौज के प्रथम प्रधानमंत्री शंकर सहाय पहुंचे थे और उन्होंने ध्यानचंद से परिचय प्राप्त कर भारतीय टीम का आत्मीय स्वागत किया। जरा सोचिए भारतीय हाकी टीम की अगवानी भारत के महान क्रांतिकारियों के हाथों से होती है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को आजाद कराया और तिरंगा हमारे हाथों में दिया है और इस वर्ष हमारा सौभाग्य है की देश की आजादी के और तिरंगे की 75वी वर्षगांठ है और हम ओलंपिक खेल रहे हैं। इस शुभ अवसर को अपनी जीत में बदलकर देश को उमंग और उल्लास से भर दें।
भारतीय हांकी की 1964 टोक्यो ओलंपिक की जीत कितनी शानदार रही होगी इस बात का अंदाजा केवल ओलंपियन अशोक कुमार की जुबान से निकले उन शब्दों से लगाया जा सकता है जिसमे वे कहते हैं मैंने 1964 के फाइनल मैच की कमेंट्री रेडियो पर सुना और उन महान ओलंपियन के नाम मेरे कानो में गूंजे और मैंने ओलंपियन बनने का सपना देखा और पूरा किया। जरा सोचिए 1964 भारतीय ओलम्पिक हाकी टीम के उन महान हाकी खिलाडि़यों के खेल के बारे में जिनके खेल को रेडियो पर सुनकर और उससे प्रभावित होकर इस देश को अशोक कुमार जैसा ओलंपियन मिल गया, तो वर्तमान भारतीय हाकी टीम तो उस देश की धरती पर ही हाकी खेलने पहुंची है जिस देश की धरती पर भारत ने स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया था। आप अपना दमदार प्रदर्शन करे जीत आपके कदमों में होगी।

24 जुलाई से वर्तमान भारतीय हाकी टीम का प्रत्येक सदस्य शंकर लक्ष्मण है, प्रथिपाल सिंह है, मोहिंदरलाल है, गुरुबक्स सिंह है, दर्शन सिंह है, कप्तान चरणजीत सिंह है, कर्नल हरिपाल सिंह कौशिक है, हरविंदर सिंह है जिनकी छवि अपने मन में भारतीय हाकी टीम खिलाडि़यों को बसा लेना चाहिए।

यही वह जापान की धरती है जहां जापान के प्रधानमंत्री ने 1932 में भारतीय हाकी टीम, ध्यानचंद, पंकज गुप्ता के साथ रेल के डिब्बे में बैठकर यात्रा करते हुए मंगोलिया समस्या पर चर्चा की थी।

यही वह जापान की धरती है जहां से भारत की आजादी का बिगुल फूंका गया और आजाद हिंद फौज का गठन और आजाद हिंद सरकार का गठन किया गया।

यही वह जापान की धरती है जहां के राजा स्वयं भारतीय हाकी टीम से परिचय प्राप्त करने 1932 में मैदान में पहुंचते है, क्योंकि उन्होंने सुन रखा था की इस टीम में एक खिलाड़ी ध्यानचंद ऐसा है जिसकी स्टिक से गेंद चिपककर चलती है। वे ध्यानचंद से परिचय प्राप्त करने के लिए बेताब थे।

1964 की ओलंपिक टीम के खिलाड़ी यह ओलंपिक खेलने पहुंचे है इस मनोभाव से और संकल्प के साथ भारतीय हाकी टीम को अपना विजय अभियान शुरू करना चाहिए।

(हेमंत चंद्र दुबे बैतूल)

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