मासूम मिथुन का क्या कसूर?

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एशिया की सबसे बड़ी उपनगरी दिल्ली के आलीशान फ्लैटों में एक तरफ बच्चे नामीगिरामी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करने के साथ खेल और अन्य कलाओं में निणुता हासिल करते हैं। वहीं दूसरी ओर, गरीब परिवारों के बच्चे धन के अभाव में शिक्षा से वंचित रहते हैं। जब उनके पढने और खेलने-कूदने की उम्र होती है तो वे दो वक्त की रोटी के जुगाड़़ में जुट जाते हैं। ये हमारे समाज की विडंबना ही है कि देश का भविष्य शिक्षा ग्रहण की जगह समय से पहले ही आजीविका की चक्की में पसीने लग जाता है।
ऐसा ही एक जीता जागता उदाहरण है मिथुन। लगभग 10 वर्षीय मिथुन द्वारका के सेक्टर-10 में सड़क के किनारे पटरी पर भरी दोपहरी में पसीने से लथपथ अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने में भुट्टा (मक्का) बेचता हुआ दिख जाएगा। मिथुन के पिता मोची का काम करते हैं, लेकिन दिनोंदिन बढ़ती महंगाई की वजह से वे अपने परिवार को पालने में पूरी तरह से सक्षम नहीं है। ऐसे में मासूम मिथुन अपना बचपन भूल अपने परिवार को पेट भरने के लिए विपरीत परिस्थितियों में भुना हुआ भुट्टा बेच रहा। ये केवल एक मिथुन की ही गाथा नहीं है उस जैसे हजारों लाखों मासूमों की गाथा जिन्हें मजबूरी वश अपने परिवार के भरणपोषण के लिए छोटी-सी उम्र में ही काम में जुट जाना पड़ता है। ऐसे बच्चे किताब तो दूर वे खिलौनों से भी वंचित रहते हैं।
उनका उज्जवल भविष्य गरीबी में दब जाता है। उनकी मासूयमित कब जवानी में ढल जाती है, पता ही नहीं चल पाता। ऐसे में कोई मिथुन जैसा बच्चा पटरी पर सामान बेचता हुआ नजर आना सामान्य बात है।
गौरतलब है कि एक बार डॉन बास्को आशरल्य में इटली की निवासी और समाजसेविका मारिया से मिलने का मौका मिला, मैंने उनसे पूछा कि उनके देश इटली में और भारत में क्या अंतर है? मारिया ने बड़े सहज भाव से बताया कि उनके देश इटली में मानव सेवा को सर्वोपरि समझा जाता है, लेकिन भारत में धर्म के नाम पर लोग खूब पैसा दान करते हैं, परंतु वे मानव सेवा करने से झिंझकते हैं। इसी कमी के कारण यही बच्चे बड़े होकर कुछ रेहड़ी-पटरी लगाकर अपने परिवार का पेट भरते हैं अथवा कुछ चोर/अपराधी बनकर समाज को कलंकित करते हैं। यदि इन मासूमों को बचपन में ही शिक्षा ग्रहण करने का सही मौका मिल जाए तो वे भी अपनी काबलियत से देश और समाज के काम आ सकते हैं।
हमारे देश में आए दिन नए घोटाले, अपराध इत्यादि होते रहते हैं। कोई भी प्रधानमंत्री हो, मंत्री हो, सांसद हो, विधायक हो, निगम पार्षद हो या अधिकारी उन्हें इस महान देश के भावी भविष्य की चिंता नहीं है। देश का पूरा भविष्य भगवान भरोसे है। क्या हम ऐसी लचर व्यवस्था से आदर्श नागरिक व स्वस्थ समाज का निर्माण कर पाएंगे? ऐसे में ये प्रश्न उठना लाजिम है कि मासूम मिथुन का क्या कसूर है?
(ये लेख भले ही कुछ साल पुराना हो, परंतु हमारे देश की परिस्थितियों में कोई अंतर नहीं आया है। आज भी मिथुन की कहानी उतनी ही प्रसांगिक है, जितने कुछ साल पहले।)
लेखकः एसएस डोगरा

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