वो यूक्रेनियन लड़की

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2004 की बात है। अमर उजाला में नौकरी के दौरान गुड़गांव की सेक्टर चार की कृष्णा कालोनी में रहता था। एक दिन देखा, मलिक अंकल विदेश से लौटे अपने इकलौते बेटे विकास के पीछे लट्ठ लिए दौड़ रहे हैं। विकास यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई के लिए गया था। जाटों में इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं। वहां पिता-पुत्र के बीच युद्ध में पुत्र की ठुकाई ईनाम समझी जाती है। वक्त बदल रहा है तो संभवतः अब जाट समुदाय में भी हालात बदल रहे हों।
मलिक अंकल को मैंने रोका और पूछा, अंकल क्या हुआ?
संभवतः मलिक अंकल दौड़ कर थक चुके थे तो चाहते भी थे कि कोई रोक ले। लट्ठ का सहारा लेकर ही एक ओर झुक गये। कहने लगे, मैं बर्बाद हो गया। छोरे ने नाम डुबो दिया।
मुझे लगा कि कुछ बात होगी। युवा पीढ़ी बहक जाती है। आदर-अनादर के बीच की बात होगी। फिर भी पूछा, बताओ तो। विकास तो अच्छा लड़का है।
अंकल बोले, क्या खाक अच्छा है। बिरादरी में नाक कटा दी। मैंने उत्सुकता कम और पत्रकारिता वाली कुरदने वाली भाषा में अधिक पूछा, क्या कर दिया विकास ने? लड़ाई- झगड़ा?
मलिक अंकल बोले, न रे, इसने तो कहीं लायक नहीं छोड़ा। पता है कि शादी कर ली। वह भी एक गोरी छोरी से।
मेरी समझ में सारा माजरा आ गया। यूक्रेन सुंदरियों का देश है। यूक्रेनियन लड़की से शादी कर बैठा। मेडिकल की डिग्री के साथ ही यूक्रेनियन लड़की को ब्याह लाया। नाम था कैरोलिन। खूब गोरी, छछहरी, लंबी। चाल इतनी तेज कि कोई दौड़ कर भी न पकड़ सके। हिरनी जैसी कुलाचे भरती। पूरी कालोनी में कैरोलिन चर्चा का विषय थी।
कैरोलिन को लोग देखते, घूरते लेकिन वह मस्त रहती। मानो उसे किसी की परवाह नहीं। विकास से पूछा, कैसे दिल दे बैठा। वह जोर से हंसा, बोला, ब्रेड लेने दुकान पर गया था, वहीं दिल हार गया।
मैंने पूछा कि इंडिया आने के लिए तैयार कैसे हुई? विकास बोला, प्यार में पागल थी। क्या वह यहां खुश है। विकास हामी भर देता है।
कैरोलिन ने गुड़गांव के सेक्टर 46 की किसी एमएनसी में नौकरी करनी शुरू कर दी। एक साल बाद ही उसने एक बेटी को जन्म दिया। थोड़ा बड़ी होने के बाद उसकी बेटी विरोनिका और मेरी बेटी में दोस्ती हो गयी थी। विरोनिका अधिकांश समय हमारे घर पर ही रहती। कैरोलिन धीरे-धीरे भारतीय परिवेश में ढल गयी। अब कालोनी के लोग भी सामान्य हो गये। कोई उसे नहीं घूरता, देखता है। वह मुस्करा कर नमस्ते कर देती। विकास मलिक निजी अस्पताल में प्रैक्टिस करता है और कैरोलिन नौकरी।
गुड़गांव छोड़े एक अरसा हो गया, विकास और कैरोलिन की प्रेम कथा का अब पता नहीं, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ा तो लगा कि कैरोलिन उदास होगी। मायके खतरे में है, अपने मुल्क की याद और अपनी माटी की खुशबू तो आती ही है। इंसान प्यार में पड़कर जान देने के लिए तैयार हो जाता है लेकिन स्वार्थ में जान लेने के लिए। कैरोलिन और ब्लामिदिर पुतिन के बीच इतना ही अंतर है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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