बाकी सब मौज है, बस दिल में टीस उठती है, हम उनको क्यों भूले, जिनकी बदौलत राज्य मिला!

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ये हैं 84 वर्ष के बब्बर गुरंग। पिछले चार साल से बेड पर ही हैं। 1971 के वार हीरो। मशीनगन की कई गोलियों ने शरीर का एक भाग डिसेबल कर दिया। लेकिन जिस राज्य गठन के लिए वह लड़े, 27 दिन दिल्ली के जंतर-मंतर पर भूख हड़ताल की। पुलिस की लाठियां खाई, जब उस राज्य के खुशहाल लोग उनका हाल-चाल नहीं पूछते तो 71 में दुश्मनों के द्वारा दिये गये घाव से भी अधिक दर्द होता हैं। टीस बढ़ जाती है कि अपने-अपने नहीं रहे। सरकारों से क्या मिला? अपनों से क्या मिला? चिन्हित आंदोलनकारी की पेंशन नहीं चाहिए लेकिन सम्मान तो मिलना ही चाहिए। आंदोलनकारी संगठन भी भूले-भटके उनकी कुशलक्षेम पूछने नहीं पहुंचे।
मैं जब उनसे मिला तो बोले, बायां पैर चार इंच छोटा हो गया। पैरों में ताकत नहीं है। दो मिनट बैठने के बाद तीसरे मिनट लेटना पड़ता है। वो कभी बैठकर तो कभी लेटकर 1971 में भारत-पाक युद्ध, राज्य आंदोलन और अपने जीवन संघर्ष की गाथा सुनाते हैं। मैं उनके पास कई सवाल लेकर गया था लेकिन मेरे सवाल मौन हो गये।
उत्तरजन टुडे आगामी एक मई रविवार को उत्तराखंड के इस लाल को सलाम कर रहा है। उनके इस महान योगदान पर एक छोटा सा सम्मान दे रहा है ‘हमारे प्रेरणास्रोत‘। ओएनजीसी महिला पालीटेक्निक के सभागार में ऐसे ही कुछ विरले लोगों का सम्मान किया जा रहा है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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