एक ओपी के हटने से कोई फर्क नहीं पड़ता, सिस्टम बदले तो बात बनें

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  • विवादित कैबिनेट मंत्री हटाते तो होता धामी का मास्टर स्ट्रोक
  • विचारणीय बात कि अधिकांश पत्रकार नहीं उठाते जनता के हित की बात

आज सीएम धामी ने मुख्य सचिव पद पर एसएस संधू को न्योता भेजा है। मुख्य सचिव ओमप्रकाश की विदाई तय मानी जा रही है। प्रदेश के बड़े और नामी पत्रकार इसे धामी का मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं, जबकि यह सामान्य बात है। कोई भी सीएम अपनी टीम चुन सकता है। मुख्य सचिव ओमप्रकाश के साथ ही रमेश सिंघू, मीनाक्षीसुंदरम, दिलीप जावलकर, राधिका झा, मनीषा पंवार, नीतीश झा, आनंदवर्द्धन का मजबूत नेटवर्क है। नौकरशाही की लाॅबी राज्य के विकास में बाधक है। इस मुद्दे पर अधिकांश पत्रकार चुप्पी साध लेते हैं। जब तक वरिष्ठ आईएएस का एक मजबूत नेटवर्क नहीं टूटेगा, प्रदेश में विकास नहीं होगा। सीएम धामी यदि विवादित नौकरशाहों को खुड्डे लाइन लगाएं तो जानें।
मार्च 2021 से पहले भी कैबिनेट के कई मंत्री और उनके विभाग भ्रष्टाचार के कारण सुर्खियों में थे। त्रिवेंद्र चचा की नाकामी में भी इन मंत्रियों का बड़ा हाथ था। चचा की कुर्सी गयी और इनकी बच गयी। अधिकांश पत्रकारों ने इन पुराने और विवादित मंत्रियों को लेकर सवाल नहीं उठाया कि इनको क्यों दोबारा झूठी शपथ दिलाई जा रही है। दरअसल, उत्तराखंड में सीएम को दबाव में रखने की रणनीति हैं ताकि उनको भरपूर मनमानी करने का अवसर मिले। इन मंत्रियों में से अधिकांश को मान-सम्मान से अधिक पैसे प्यारे हैं। ऐसे में वो किसी को भी सीएम स्वीकार कर लेंगे, बस, उनको मनमानी करने दी जाएं।
पिछले तीन-चार महीने के दौरान प्रदेश में भ्रष्टाचार और लूट-खसोट में भारी तेजी आई है। विभागों में तबादले और प्रमोशन के नाम पर खेल चल रहा है। हाल में पेयजल में 50 जेई का प्रमोशन और पोस्टिंग में भारी भरकम रिश्वत लिए जाने के आरोप हैं। गन्ना विभाग में लंबी-चौड़ी तबादला लिस्ट से खफा होकर गन्ना आयुक्त कई दिनों तक आफिस ही नहीं गये। बाद में उनसे यह विभाग ले लिया गया। कर्मकार बोर्ड में क्या हुआ, सबको पता है। पशुपालन विभाग में क्या चल रहा है? मेनका गांधी ने भेड़ विकास केंद्र पर करोड़ों के गड़बड़ियों का आरोप लगाया था, 15 दिन में मांगी गयी त्रिवेंद्र चचा की जांच के आदेश आज भी हंस रहे हैं। मनीषा पंवार ने उसे जांच से इंकार किया और आनंदवर्द्धन ने वह जांच की या नहीं। अब तक नहीं पता।
हाल में बने एक कैबिनेट मंत्री पर विभिन्न विभागों के इंजीनियर यह आरोप लगाते हें कि जब भी उस मंत्री से मिलो तो वह पूछता है कि कुछ लाया क्या? कई जेई, एक्सईएन ने जब जाना बंद कर दिया तो फोन कर कहा, कुछ ला रहा है क्या?
विडम्बना है कि उत्तराखंड ने देश को दिग्गज पत्रकार दिये हैं लेकिन प्रदेश को लेकर पत्रकारों की आत्मा बिक गयी है। मैंने कई बड़े पत्रकारों को सूचना विभाग के 12 हजार रुपये के विज्ञापन के लिए सरकार की चरणवंदना करते देखा है। ऐसे में जब लोकतंत्र का यह मजबूत स्तंभ ही भ्रष्टाचार, चापलूसी और स्वार्थ के घेरे में तो सीमांत गांव में विकास के सपने देखना और जनता की आवाज सत्ता के गलियारे तक पहुंचने की बात बेमानी है। ऐसे में महज मुख्य सचिव के बदले जाने पर खुशी जताना या मास्टर स्ट्रोक बताना जल्दबाजी है। थोड़ा सब्र कर लो पत्रकार साथियों।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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