सत्ता की सीढ़ी चढ़ने के लिए बलि चढ़ेगा रघुवीर!

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  • पिछले पांच साल से लैंसडाउन में सक्रिय है रघुवीर
  • पहाड़ का लुटेरा हरक कर रहा रघु के सपनों की हत्या की साजिश

लैंसडाउन में पिछले पांच साल से गांव-गांव भटक रहे रघुवीर बिष्ट पर कल रात से खतरा मंडरा रहा है। वही खतरा जो महंत दिलीप रावत पर मंडरा रहा था। महंत ने जादू-टोना कर अपना कष्ट टाल दिया। हालांकि महंत की हार तब भी तय है लेकिन यह खतरा अब रघुवीर के सिर पर है। रघुवीर बिष्ट ने यहां कांग्रेस का बेस तैयार किया। यहां पिछले 10 साल से भाजपा का कब्जा है। रघुवीर ने न केवल यहां कांग्रेस का बेस बनाया और उसे इस तरह से मजबूत किया कि आज यहां कांग्रेस की सीट पक्की है। साथ ही रघुवीर ने गढ़वाल की संस्कृति और सभ्यता को बचाने का काम भी किया है। उन्होंने गांव-गांव में थड्या, चौंफला जैसे विलुप्त हो रहे लोकगीतों और लोकसंस्कृति को जिंदा किया। वह युवाओं के भी प्रेरणास्रोत रहे हैं। ग्रामीण युवाओं को खेलों के साथ ही करियर के प्रति जागरूक करने का भी काम किया है। उन्होंने इस पिछड़े इलाके में सड़क, शिक्षा, कृषि, रोजगार और स्वरोजगार के लिए हरसंभव प्रयास किये हैं। रघुवीर इस इलाके में ग्रामीणों के सुख दुख के साथी हैं।
अथक मेहनत कर कांग्रेस के अस्तित्व को बचाने वाले रघुवीर जैसे नेताओं की अब बदबलुओं के लिए राजनीतिक बलि लेने की तैयारी चल रही है। यदि ऐसा होता है तो यह सरासर अन्याय है। ऐसे में धरातल पर काम करने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटेगा। सच यह है कि हरक सिंह रावत जनता का नेता नहीं है, धन और अपयश का नेता है। यदि वह जननेता होता तो निर्दलीय चुनाव लड़कर प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत तक पहुंचता लेकिन वह धन से टिकट भी खरीदता है और वोट भी।
यह कांग्रेसी नेताओं को सोचना है कि वह पहाड़ के लुटेरे हरक को महत्व देते हैं या धरातल पर गांव और पहाड़ की संस्कृति बचाने के ध्वजारोहक रघुवीर बिष्ट को।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

भला धामी के चेहरे पर इतना ग्लो क्यों है?

 

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