कांग्रेस की डर्टी पालिटिक्स के शिकार कवीन्द्र को राहत

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  • एक को हुस्न परी ने मारा, दूसरे को अंगूर की बेटी के व्यवसायी ने
  • भोले-भाले गणेश ने ट्राउट खिलाकर घावों पर लगाया मरहम

कांग्रेस की डर्टी पालिटिक्स ने पौड़ी के दो होनहार नेताओं के चुनाव लड़ने के सपने पर पानी फेर दिया। लैंसडाउन से रघुवीर बिष्ट और चौबट्टाखाल से कवींद्र इस्टवाल। इन दोनों ही नेताओं ने धरातल पर काम किया। कोरोना काल में भी गांव-गांव भटके और लोगों को जोड़ने का काम किया। कांग्रेस और भाजपा कहां धरातलीय नेताओं को सिर-माथे पर बिठाते हैं। लिहाजा एक हुस्न परी ने छन से रघुवीर बिष्ट के सपनों को तोड़ कर चूर-चूर कर दिया तो अंगूरी की बेटी का व्यापारी कवींद्र के सपनों की सीट चुरा ले गया।
दोनों नेता समझदार निकले। जानते थे कि नदी में मगरमच्छ और मगरमच्छनियां हैं। यदि निर्दलीय लड़ेंगे तो मगरमच्छनियां नाश्ते में उनका दिल परोसने के लिए कहेंगी। जो बंदा टिकट के लिए अपने खून का आखिरी कतरा भी मोटा भाई को दे आया हो, और डायलेसिस कर कांग्रेसी खून चढ़ा आया हो, वह तो जरूर इन बेचारों का दिल तश्तरी में परोस देता। बच गये दोनो।
खैर, नदी में मगरमच्छ के साथ महाशीर और ट्राउट भी हैं। भोले-भाले गणेश ने सोचा, दोनों मगरमच्छ से बच गये हैं तो क्यों न इन्हें ट्राउट ही खिला दी जाएं। सो, रघुवीर को ट्राउट खिलाने के बाद कवींद्र को भी ट्राउट मछली खिला दी। साथ ही आश्वासन दिया है कि लखवाड़ और व्यासी बांध बनने के यमुना में पानी गायब हो जाएगा तो महाशीर आसानी से मारी जा सकेंगी, तब उन्हें महाशीर भी खिला देंगे। फिलहाल तो प्रदेश महामंत्री साहेब ट्राउट खाकर कड़ाके की ठंड में गरमी का एहसास ले रहे हैं। नया पद, नया जीवन और प्रदेश महासचिव की तरक्की मुबारक।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

पहली बार किसी दल ने अपने घोषणा पत्र में पत्रकारों को जगह दी

 

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