वाह चित्रांक वाह, उत्तराखंड का लाल

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  • बनारस घराने का उभरता तबला वादक हैं युवा चित्रांक पंत
  • देश के तमाम बड़े शास्त्रीय फनकारों के साथ कर चुके हैं जुगलबंदी

जिस उम्र में छोटे बच्चे खिलौनों से खेलते हैं, चित्रांक ने उस उम्र में तबले पर थाप देनी शुरू कर दी थी। कारण, विरासत में मिला संगीत प्रेम। मां बहुत ही सुरीला गाती हैं और पिता को शास्त्रीय संगीत का शौक। चित्रांक हंसते हुए बताता है कि इतनी छोटी उम्र में भला तबला क्या बजता? उल्टे उंगलियों और हथेली में दर्द होता था। धीरे-धीरे रियाज होता गया। उम्र के साथ तबले पर उगंलियां चलने लगी और दिल तबले पर रच-बस गया।
बनारस घराने के उभरते तबला वादक ने शुरुआती तौर पर भातखंडे विश्वविद्यालय के तबला विभाग के हेड पं. मनोज मिश्रा से सीखना शुरू किया तब उनकी उम्र महज चार वर्ष थी। वह अभी प्रख्यात तबलावादक पंडित कुमार बोस से तबला सीख रहे हैं और कुमाऊं विश्वविद्यालय से तबला में पीएचडी कर रहे हैं। अपने करिएर में चित्रांक को ढेरों पुरस्कार मिले हैं। संस्कृति मंत्रालय से उन्हें जूनियर फैलोशिप भी मिली है। उनके तबला वादन को पंडित राजन-साजन मिश्रा ने भी सराहा और चित्रांक को यंग एचीवर्स अवार्ड दिया।
हाल में उन्होंने स्वरांगन में देश के लब्ध प्रतिष्ठित ग्रैमी अवार्ड विजेता पदमभूषण पं. विश्वमोहन भट्ट के साथ स्वरांगन में जुगलबंदी की। चित्रांक ने देश भर में आयोजित कई प्रमुख संगीत समारोह में भी अपने हुनर का प्रदर्शन किया है। संगीत सभा काशी, नैनीताल शरदोत्सव, विरासत, विराम गुरुकुल बैठकी, लखनऊ महोत्सव, स्पीक मैके देहरादून, कोणार्क फेस्टिवल, याद ये जगजीत, टपकेश्वर संगीत समारोह, मसूरी कार्नीवल, ताज महोत्सव आदि अनेकों प्रमुख संगीत समारोह में अपनी प्रस्तुति दी। चित्रांक पंत के पिता पेयजल निगम के चीफ इंजीनियर सुरेश चंद्र पंत हैं और वह स्वयं पं. राजन-साजन मिश्रा द्वारा स्थापित स्वरांगन संस्था से जुड़े हैं। स्वरांगन शास्त्रीय संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित संस्था है।
देहरादून के एशियन स्कूल के छात्र चित्रांक पंत, जीबी पंत विश्वविद्यालय से बी.टेक कर चुके हैं, लेकिन तबले से इतना प्यार और लगाव की वह पूर्ण रूप से तबलावादन को ही करियर चुना हैं। उनका कहना है कि उत्तराखंड में शास्त्रीय संगीत के लिए अनुकूल माहौल है। प्रकृति और संस्कृति का मेल होता ही है। संगीत दिल-दिमाग में बसा है। यहां कला के कद्रदान भी बहुत है, लेकिन जरूरत है मंच और अवसर मिलने की। चित्रांक के उज्ज्वल भविष्य की कामना।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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