‘गुनाहों के देवता‘ हाकिम के नाम एक खुला खत

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प्यारे-प्यारे और सुंदर हाकिम,
उम्मीद है कि इस कड़क सर्दी के दौरान जेल में तुम्हें अच्छे कंबल या रजाई ठीक मिली होगी। साफ सी। तुम्हारे बहाने कुछ और कैदियों का भी भला हो गया होगा। तुम्हारे पास ढेर सारा पैसा है तो खाना बाहर से ही आता होगा। जेल की रोटी नहीं तोड़नी पड़ रही होगी। आज तुम्हारे लिए बहुत खुशी का दिन है कि तुम्हारे जेल में होने के बावजूद कोई तुम्हारा रिकार्ड तोड़ रहा है। जैसे विराट कोहली सचिन के वन डे शतकों के रिकार्ड को तोड़ने पर तुला हुआ है तो कोई और है तो तुम्हारा स्थान लेना चाहता है। सुना है कि पटवारी भर्ती परीक्षा में ऐसे ही हो रहा है। खुशी होती है जब कोई अपना अपने का रिकार्ड तोड़े। तो जेल में ही मुस्कराने की एक और वजह मिल गयी है तुम्हें। मुस्कराओ और ठहाके लगाओ। जीरो टोलरेंस सरकार है। तुम अदातल में साबित कर सकते हो कि नकल एक ऐसा दरिया है जिस हर हाल में बहना है। इसे बहने से मत रोको जज साहब।
हाकिम, मैं तुम्हारी जमकर तारीफ करता हूं कि तुम बड़े उदार हृदय हो कि तुमने सैकड़ों निकम्मे बेरोजगारों को रोजगार दे दिया। कुछ भले ही पकड़े गये हों तो क्या हुआ? आज के दिन जब एक बाप जीवन भर की कमाई खर्च कर भी अपने बेटे को एक अदद सरकारी नौकरी नहीं लगा सकता, तुमने सैकड़ों को नौकरी लगा दिया। भले ही किसी निकम्मे बेटे के बाप का खेत बिका, किसी का घर बिका और किसी ने बैंक और रिश्तेदारों से कर्ज लिया हो, लेकिन तुमने उनका पूरा मान रखा। बेईमानी के धंधे में भी पूरी ईमानदारी से नौकरी दिलवा ही दी। यह बड़ी बात है। मैं तो कहता हूं कि उत्तराखंड सरकार को तुम्हे बेस्ट इंटरप्रयोनोरशिप का अवार्ड देना चाहिए।
सरकार का कया है। सरकारें और दिन बदलते रहते हैं। जो कभी भ्रष्ट नेता थे आज पूरे ईमानदार होने के होर्डिंग पोस्टर लगा कर बता रहे हैं कि सच की जीत हुई है। एक दिन आएगा तुम भी कहोगे कि सच जीत गया, क्योंकि तुम बेदाग छूट जाओगे। हो सकता है कि जिन लोगों को तुमने रोजगार दिया है या जिनसे कुछ एडवांस लिया होगा वह सिद्धोवाला जेल से तुम्हें बैंड-बाजों के साथ लेकर गांव तक जुलूस निकाले।
नकल होनी ही चाहिए। नकल नहीं होगी तो प्रतिभा की कद्र कहां होगी। उत्तराखंड में जहां नालायक नेता भी सत्ता का सुख भोग रहे हैं तो नकलची नौकरी पा जाएं तो क्या बुरा है? तुम जानते हो जो प्रतिभावान हैं, वह तो सड़क पर बैठकर भी कमा लेंगे। नालायकों को रोजी-रोटी कमाने में परेशानी होगी। इसलिए तुम नि:स्वार्थ भाव से नालायकों के लिए रोजी-रोटी का जुगाड करते हो। वास्तव में तुम गुनाहो के ऐसे देवता हो, जो थोड़े से पैसे लेकर उनको जीवन सुखमय बना देते हो, उन्हें खुशहाल बना देते हो। क्योंकि सरकारी नौकरी पाने वाले तो महज दो प्रतिशत होते हैं। इसलिए सरकारी नौकरी वाले भगवान होते हैं। तुम नालायकों को भगवान बना रहे हो तो तुम सच में महान हो। तुम्हारी जय-जयकार हो।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

यह धर्म नहीं, दिल की बात है, संवेदना की बात है!

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