तन्मय की सोच और शोभा की मेहनत से खिलखिलाने लगा स्मृति वन

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  • मालदेवता में धाद कर रहा स्मृति वन विकसित, 85 फीसदी पौधे सुरक्षित, सस्टेनेबल माॅडल
  • सुंदरलाल बहुगुणा, जीत सिंह नेगी, हीरा सिंह राणा, टिंचरी माई समेत प्रमुख लोगों के नाम पर रोपे गए हैं पौधे

संस्कृति, प्रकृति और उत्पादकता को लेकर सजग प्रहरी सामाजिक संस्था धाद ने देहरादून में एक नई पहल की है। मालदेवता के निकट स्थित स्थल गांव के रावी नदी के किनारे संस्था एक स्मृति वन विकसित कर रही है। यह वन दो एकड़ में फैला है। यहां प्रदेश के प्रख्यात लोककलाकारों, पत्रकारों साहित्यकारों, पर्यावरणविदों आदि के नाम पर पौधों का रोपण किया गया है। बड़ी बात यह है कि यहां रौपे गये पौधों की निरंतर देखभाल होती है। यहां 85 फीसदी से अधिक पौधे जीवित हैं। पौधों को निरंतर खाद-पानी दिया जाता है। पौधों को ट्री गार्ड से कवर किया गया है। यहां कचनार, जामुन, बरगद, मौलश्री, अमलतास, आमला, सागौन, लेजिस्टोनिया समेत विभिन्न प्रकार के पेड़ हैं।
स्मृति वन विकसित करने की सोच धाद संस्था के सचिव तन्मय ममगाईं की है। पिछले साल तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस वन का उद्घाटन पौधरोपण से किया। यह सरकारी भूमि है और इसे विकसित करने की जिम्मेदारी धाद उठा रही है। सचिव तन्मय ममगाईं के अनुसार यहां पंडित नैन सिंह, टिंचरी माई, शेरदा अनपढ़, शैलेष मटियानी, राहुल सांकृत्यायन, गिरदा, प्रो. लाल बहादुर वर्मा, चारुचंद्र चंदोला, हीरा सिंह राणा, जयानंद भारती, जार्ज, ओकारदास जैसे नामी लोगों के नाम पर पौधरोपण किया गया है। इस बार पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के नाम से पौधा रोपा गया।
तन्मय के अनुसार पौध रोपण से अधिक जरूरी उसकी देखभाल करना है। हमने दो माॅडल विकसित किए। एक प्रख्यात लोगों के नाम पर और दूसरे लोग अपने प्रियजनों के नाम पर भी पौधरोपण कर सकते हैं। उसके लिए 1100 रुपये तय किए गए। 500 रुपये में ट्री-गार्ड तैयार किया जाता है और 100 रुपये का पौधा लगाते हैं। देखभाल यानी खाद-पानी में खर्च होता है। अब तक सौ लोगों ने यहां अपने परिजनों के नाम से पौधरोपण किया है। यहां कई तरह के पौधे लगाए गए हैं। यह वन सामूहिक भागीदारी से तैयार किया जा रहा है। यह माॅडल सफल साबित हो रहा है। समाजसेवी शोभा रतूड़ी स्मृति वन की संयोजक हैं और इंदुभूषण सकलानी सचिव। तन्मय, शोभा रतूड़ी, डीसी नौटियाल, सकलानी, गणेश उनियाल, आदि धाद की समस्त टीम को सैल्यूट।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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