वाह सरकार वाह, बना दिया सशक्त भू-कानून!

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  • एसडीएम को दे दिया सीएलयू का अधिकार, तीन दिन में होगा दाखिल खारिज
  • प्रदेश की बेशकीमती जमीन हथियाने का नया फार्मुला

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से पहले सशक्त भू-कानून की खूब मांग उठी। धामी जी ने भी कहा था कि सशक्त भू-कानून लाएंगे। कल विधानसभा में उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम संशोधन विधेयक लाया गया। इसमें प्रावधान है कि धारा 154 के तहत गैर कृषि प्रयोजन के लिए खरीदी गई भूमि, किसी भी विकास प्राधिकरण की ओर से गैर कृषि कार्यों के लिए स्वीकृत नक्शा और सिंगल विंडो सिस्टम से स्वीकृत निवेश प्रस्तावों के आधार पर एसडीएम को सात दिन के भीतर कृषि भूमि को किसी अन्य उपयोग में लाने की घोषणा का अधिकार दिया गया। घोषणा के तीन दिन के भीतर भू-उपयोग को खतौनी में दर्ज किया जाएगा।
सरकार का तर्क है कि इससे निवेशकों के लिए राह आसान होगी। 2017 में त्रिवेंद्र चचा सरकार ने भी भू-कानून में संशोधन किया। कहा गया कि निवेशक आएंगे। इनवेस्टमेंट समिट कर एक लाख 25 हजार करोड़ के निवेश प्रस्तावों का दावा किया गया। लेकिन आए कितने निवेशक? कारण, सरकार के पास लैंड पूल नहीं था। कुछ निवेशकों ने जमीन लीज पर ले ली लेकिन निवेश नहीं किया।
प्रदेश में पहले भी टैक्स हालीडे के नाम पर निवेशक आए। लेकिन किसी ने भी मदर इंडस्ट्री नहीं लगाई। पूरे प्रदेश में 200 मदर इंडस्ट्रीज नहीं हैं। महज सर्विस सेक्टर के निवेशक आए। टैक्स हॉलीडे का लाभ लिया और यहां से चलते बने। पहाड़ की बेशकीमती जमीन उनकी हो गयी। जमीनों को इस तरह से हथियाने का कार्य निरंतर जारी है।
यह सही है कि निवेशकों को जमीन चाहिए। लेकिन यदि निवेशक वास्तविक है तो। सरकार को मदर इंडस्ट्रीज के लिए ही इस तरह के सीएलयू की छूट देनी चाहिए। सर्विस सेक्टर इंडस्ट्री कभी भी दुकान बंद कर भाग जाते हैं। उत्तराखंड में 80 प्रतिशत सर्विस सेक्टर के निवेशकों ने ऐसा ही किया।
धामी सरकार को चाहिए था कि पहले वह लैंड पूल बनाए। सच तो यह है कि निवेशक पहाड़ नहीं जाना चाहते, क्योंकि वहां संसाधन नहीं हैं। सिडकुल की जमीन बिल्डर को बेच दी गयी। सेलाकुई में जमीन है ही नहीं? त्यूणी के पास जमीन को विकसित नहीं किया जा सका। अब सरकार और भूमाफिया की नजरें कृषि भूमि पर हैं। कुल मिलाकर भू-कानून में संशोधन कर जमीनों की सीएलयू का अधिकार एसडीएम को देने और तीन दिन में खतौनी यानि दाखिल खारिज का प्रावधान खतरनाक है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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