कुछ डाक्टर्स ऐसे भी, जो संवार रहे पहाड़ की तस्वीर और तकदीर

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  • नेशनल डाक्टर्स डे पर सभी डाक्टर्स को शुभकामनाएं

रेडियोलॉजी और फिजियोलॉजी के विशेषज्ञ डाक्टर नवीन बलूनी की आज समस्त उत्तर भारत में अलग पहचान है। बलूनी ग्रुप आफ एजूकेशन का एक बड़ा साम्राज्य है। उनके कई स्कूल और कोचिंग सेंटर हैं। डा. बलूनी अपना अस्पताल खोलकर नहीं बैठे। जब डाक्टरी पढ़ रहे थे तो दो गरीब बच्चों को मेडिकल प्रवेश परीक्षा की नि:शुल्क कोचिंग दी। दोनों बच्चे मेडिकल में सलेक्ट हो गये। इसके बाद डा. बलूनी ने तय किया कि देश को डाक्टरों की फौज देंगे। आज बलूनी क्लासेस के माध्यम से देश और प्रदेश को सैकड़ों डाक्टर मिले हैं। उत्तराखंड में नये डाक्टरों में हर तीसरा डाक्टर बलूनीज का प्रोडेक्ट है। बलूनी क्लासेस हर साल 50 गरीब बच्चों को नि:शुल्क मेडिकल की तैयारी कराता है।
डा. जयंत नवानी आर्थो स्पेश्यिलिस्ट हैं। देश-विदेश में मरीजों की सेवा की है। सबसे बड़ी बात है कि पहाड़ की माटी के प्रति समर्पित हैं। 70 प्लस की आयु भी उनके जज्बे को नहीं रोक पाती है और वह हर महीने थैला उठाकर पहाड़ चले जाते हैं। वहां मरीजों की जांच करते हैं और युवाओं को स्वरोजगार अपनाने की सलाह देते हैं। कोरोना काल में घर लौटे प्रवासी युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने के लिए वह गांव-गांव घूमे। पहाड़ की संस्कृति और परम्पराओं के ध्वजारोहक हैं डा. नवानी।
माटी और थाती को समर्पित डा. महेश कुड़ियाल न्यूरो सर्जन हैं। डा. कुड़ियाल की विशेषता है कि उन्होंने कभी इसकी परवाह नहीं की कि पेशेंट उनका बिल चुका पाएगा या नहीं। न्यूरो समस्या से जूझने वाले गरीब मरीजों के लिए वह मसीहा हैं। पहाड़ को बचाने और बसाने के लिए हरसमय चिन्तित रहते हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं डा. कुड़ियाल।
फिजिशियन डा. एनएस बिष्ट सरकारी महकमे में दुर्वासा ऋषि के तौर पर जाने जाते हैं। वह मरीजों के हितों के लिए किसी से भी भिड़ जाते हैं। सच बोलते हैं, मसलन, सरकारी अस्पतालों में दो प्रतिशत दवाएं भी नहीं मिलती। आदि-आदि। कोरोना काल में वह कोरोनेशन अस्पताल के स्ट्रेचर पर ही सो जाते थे ताकि जरूरत होने पर मरीजों को तत्काल देख सकें।
स्त्रीरोग विशेषज्ञ डा. नूतन गैरोला साहित्य और कला प्रेमी भी हैं। उन्होंने लगभग दो दशक तक पर्वतीय क्षेत्र में अपनी सेवाएं दी। उन्होंने पहाड़ की महिलाओं को हाईजिन और टीबी के प्रति जागरूक किया। यही कारण है कि सुदूर गांवों के मरीज आज भी उनके क्लीनिक पर आते हैं। उनके अधिकांश मरीज फीस भी नहीं दे पाते। ऐसे डाक्टरों को सलाम।
सीरीज जारी—
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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