स्कूली शिक्षा: चोट पांव में लगी, पट्टी सिर पर बांधी

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file photo source: social media
  • बोर्ड परीक्षा में फेल 48 हजार छात्रों को मिलेगा पास होने का मौका
  • कैबिनेट में लाएंगे प्रस्ताव, लेकिन सिस्टम नहीं सुधारेंगे मंत्री जी

उत्तराखंड में सरकारी स्कूली शिक्षा का बुरा हाल है। पिछले साल कोरोना के कारण बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट लगभग 99 प्रतिशत रहा। लेकिन इस साल बोर्ड परीक्षा में 48 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं फेल हो गये। उत्तराखंड बोर्ड का 10वीं का वर्ष 2021 का परीक्षाफल 99 प्रतिशत रहा जबकि इस साल परीक्षाफल 77 दशमलव 47 प्रतिशत रहा है। 28 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं 10वीं में फेल हुए हैं। यही हाल 12वीं का रहा। 12वीं की परीक्षा का रिजल्ट पिछले साल 99 प्रतिशत 71 प्रतिशत रहा जबकि इस साल परीक्षाफल 82 दशमलव 63 प्रतिशत रहा है। इसमें 19 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं फेल हो गये।
अब शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत का कहना है कि इन फेल छात्रों को दोबारा पास होने का मौका मिलेगा। यानी सप्लीमेंट्री परीक्षा होगी। अभी तक आठ अंक ग्रेस मार्क दिये जाते हैं। कैबिनेट में प्रस्ताव आने के बाद सत्र में एक्ट संशोधन होगा। यानी जो 48 हजार फेल हुए हैं उन्हें पास होने के लिए लगभग एक साल और इंतजार करना होगा। हां, अगले सत्र से दो विषयों में फेल होने वालों को कम्पार्टमेंट परीक्षा के माध्यम से पास होने का मौका मिलेगा।
सवाल यह है कि जब जबरदस्ती छात्रों को पास करना है तो ग्रेडिंग सिस्टम कर दो। रि-टेस्ट का सवाल ही नहीं होता। यूर्निवर्सिटी लेवल पर भी यही हो रहा है। दरअसल, शिक्षा विभाग अपने कोढ़ को दूर ही नहीं करना चाहता। कहावत है कि चोट पांव पर लगी है लेकिन पट्टी सिर पर बांधी है। शिक्षा विभाग में खराब रिजल्ट के लिए एकाउंटिबिल्टी क्यों नहीं है? आखिर शिक्षकों की सीआर पर यह मार्क क्यों नहीं होता? यदि शिक्षक और अफसरों को खराब रिजल्ट के लिए एकांउटेबल बना दिया जाए तो शिक्षा का स्तर सुधरेगा। अटल उत्कृष्ट विद्यालयों का स्तर भी नहीं सुधरा क्योंकि वहां से वो टीचर हटने को तैयार नहीं जिनको अंग्रेजी नहीं आती। अयोग्य शिक्षक अटल में जमे बैठे हैं। ऐसे में इन स्कूलों की अवधारणा भी सरकार के लिए बोझ है कि सीबीएसई की भारी-भरकम फीस भी उसे चुकानी है और अपेक्षित परिणाम भी नहीं मिल रहे।
यह गंभीर चिन्ता का विषय है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को रामभरोसे छोड़ दिया जाता है। चलो आप इन बच्चों को किसी तरह से 12वीं पास करवा भी दोगे तो क्या ये उच्च शिक्षा हासिल कर पाएंगे। अब उच्च शिक्षा के लिए कामन एंट्रेंस टेस्ट होने लगे हैं। ये बच्चे किसी भी सूरत में निजी स्कूलों से पढ़े बच्चों के साथ कंपीटिशन नहीं कर पाएंगे। यदि सरकारी कालेजों में इन्हें दाखिला नहीं मिला तो क्या ये प्राइवेट कालेजों की फीस दे पाएंगे? यानी देश एक बार फिर मैकाले की शिक्षा व्यवस्था को अपना रहा है कि गरीबों के बच्चे क्लर्क से अधिक न बन सकें।
जरूरत सरकारी शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने की है, सप्लीमेंट्री परीक्षा की नहीं। कोढ़ का इलाज तलाशो मंत्री जी।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

सलमान के जज्बे और मेहनत को सलाम

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