जाते-जाते झूठ बोल गये राजू

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  • दो नहीं, चार परीक्षाओं में हुई गड़बड़ी
  • महाभ्रष्टाचारी भजन सिंह को जन्म देने के भी हैं आरोपी

उत्तराखंड राज्य अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष एस. राजू को आखिर जाना ही पड़ा। नैतिकता के आधार पर इस्तीफे की बात है। नैतिकता को आने में 22 जुलाई से पांच अगस्त का समय लग गया। जाते-जाते वह झूठ बोल गये कि दो ही परीक्षाओं में गड़बड़ी हुई। फारेस्ट गार्ड और स्नातक स्तरीय। लेकिन बता दूं कि वीडीओ परीक्षा के बाद 2017 की एलटी और टीजी की परीक्षा और 2018 में ही स्नातक स्तरीय परीक्षाओं में भी गड़बड़ी हुई। आयोग के गठन से अब तक पांच परीक्षाओं में पुलिस केस दर्ज हुए हैं। 2016 में आरबीएस रावत के नेतृत्व में बीडीओ की परीक्षा हुई तो उसमें भी गड़बड़ी हुई। आरबीएस रावत को इस्तीफा देना पड़ा। बता दूं कि वन विभाग के मुखिया पद से रिटायर हुए आरबीएस रावत ने मधुवन होटल में मीडिया के सामने पहाड़ की सेवा के लिए मां धारी देवी और देवी-देवताओं की शपथ ली थी और कुछ ही दिनों बाद आयोग से वीडियो का पेपर विवादों में आ गया।
जानकारी के लिए बता दूं कि पेपर के तीन सेट तैयार होते हैं। सूत्रों के अनुसार पेपर की जानकारी आयोग के परीक्षा नियंत्रक और चेयरमैन को ही होती है। चेयरमैन तीन लिफाफों में से एक पर उंगली लगाता है तो वह फाइनल हो जाता है। पेपर प्रिंटिंग के बाद परीक्षा केंद्रों पर चार दिन पहले पहुंच जाता है। परीक्षा केंद्रों पर जैमर लगे होते हैं। आनलाइन परीक्षा के दौरान टाटा कंसलटेंसी सर्विस की सेवाएं भी ली गयी थी। बाद में पता नहीं क्या हुआ? यह भी विचारणीय है कि एक परीक्षा के लिए आउटसोर्स एजेंसी को एक अभ्यर्थी की एवज में मात्र 200 रुपये मिलते हैं। इसमें 175 रुपये करीब खर्च हो जाते हैं तो सवाल है कि एजेंसी 25 रुपये प्रति अभ्यर्थी ही कमाती है। तो एजेंसी का ईमान डोल ही सकता है।
वैसे भी बता दूं कि एस. राजू ने इस्तीफा राजनीतिक दबाव से दिया। नैतिकता महज नाम की बात है। पूर्व सीएम हरीश रावत ने उत्तराखंड की तुलना बंगाल के घोटालों से की तो सीएम धामी को अपनी इमेज का ख्याल आया होगा। वरना राजू सितम्बर तक पद शायद ही छोड़ते। आपको यह भी बता दूं कि एस. राजू जब पेयजल सचिव थे तो उन्होंने प्रदेश के महाभ्रष्टाचारी भजन सिंह को पेयजल निगम का एमडी बनाने के लिए नियमों को ही बदल डाला था। पेयजल एमडी भजन सिंह उत्तराखंड के लिए भस्मासुर साबित हुए। भजन सिंह के खिलाफ जांच-जांच का खेल आज भी चल रहा है, जबकि उसकी जगह जेल में होनी थी। भजन की पेयजल निगम में एमडी के तौर पर नियुक्ति को लेकर भी राजू की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे थे। चलो, बेरोजगार अभ्यर्थी यह सोच कर खुश हो जाएंगे कि एक विकेट गिरा। लेकिन सवाल यह है कि आयोग में दोबारा ऐसा नहीं होगा क्या गारंटी है?
एक और अहम बात है कि आयोग एक साथ कई विभागों के पदों पर भर्ती कराता है। स्नातक स्तरीय परीक्षा में 13 विभागों के 916 पदों के लिए भर्ती हुई। क्या जरूरत है भई एक साथ इतने पदों पर भर्ती के लिए। अपना पैसा बचाने के लिए आयोग बेरोजगार अभ्यर्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करता है। आयोग के पास इतना स्टाफ नहीं है कि वह प्रदेश के 400 परीक्षा केंद्रों की निगरानी कर सके। तो कम पदों पर समय-समय पर भर्ती क्यों नहीं होती? बेरोजगारों से परीक्षा फीस लेकर कम खर्च में ढेर सारे पदों की परीक्षा करवाना मूर्खता है।
आयोग को पूरा भर्ती सिस्टम बदलना होगा। परीक्षा का आयोजन किसी सरकारी संस्था से ही करवाना चाहिए, न कि आउटसोर्स से। नहीं तो इस तरह के घोटाले रोकना आयोग के वश की बात नहीं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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