निर्भगी जनता, तू इसी लायक है, तेरी फूटी किस्मत है!

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  • भूल गयी, तूने भी तो दो घूंट और 500 के नोट में बेच दिया था वोट
  • तू है धर्म, जाति, क्षेत्र और झूठे राष्ट्रवाद के नशे में चूर, जा मर कलमुंही

जब पता लगा कि नेता, अफसर, ठेकेदार और दलालों ने मिलकर खेल कर डाला। जनता के बच्चों की रोटी का निवाला ही छीन डाला तो अब जनता दहाड़ मार-मार कर रो रही है। अपनी किस्मत को कोस रही है। बच्चे घंटों पढ़ते हैं, मेहनत करते हैं। सपने देखते हैं कि नौकरी मिलेगी। उनकी मेहनत को मुकाम मिलेगा। फिर पता चलता है कि बेटे की मेहनत, बेटी के सपनों को तो नौकरी के सौदागरों ने बेच डाला। जनता सदमे में आ जाती है। बेरोजगार जवान बेटे को घर में देख मां के कलेजे में हूक उठती है और पिता का दिल रोता है। लेकिन इससे क्या? इस पूरी भ्रष्ट व्यवस्था के दोषी तो सब हैं मां-बाप और बेटा।
मां ने अदद सी चूडियों, समोसा-जलेबी और नेता के भक्तिभाव, झूठे राष्ट्रवाद में वोट बेच दिया था। पिता ने दो घूंट और मुर्गे की टांग में बेटे की नौकरी का सौदा कर डाला था। बेटा, दोस्तो के साथ चुनाव के दौरान कारों में घूमा, दिन में होटल में दवात उड़ाई, शाम को घर 500 का नोट लेकर आया। सोचा, चुनाव हैं मौज कर लूं। यानी मां-बाप और बेटा तीनों ही तो बिक गये थे। तब न उनका विवेक जागा था और न ही यह बात समझ में आई थी कि हम किन लोगों को चुन रहे हैं।
लोग जब अपने बेटे या बेटी का रिश्ता तय करते है तो कितनी छान-बीन करते हैं। पूरी जासूसी करते हैं। जब विश्वास होता है तो ही रिश्ते को हां करते हैं। लेकिन अपने जनप्रतिनिधि को चुनने के लिए जनता ऐसा नहीं करती। जबकि वह जनता के साथ पांच साल लिव इन रिलेशन में रहता है। जनता उसे परखती क्यों नहीं?
दरअसल, उत्तराखंड की जनता साक्षर तो है, लेकिन साक्षर होने का अर्थ समझदार होना नहीं है। समझदार वह होता है कि जिसे अच्छे-बुरे का ज्ञान हो। भावनाओं से नहीं दिमाग से काम ले और अपने लिए ऐसा नेतृत्व चुने जो उनके हितों की रक्षा कर सके न कि अपने हित साधे। मुझे अफसोस होता है कि जनता भेड़चाल से चलती़ है। अलाने ने कहा, ताली बजाओ, तो बजा दी। फलाने ने कहा, थाली बजाओ तो बजा दी। अब नेताओं ने जनता की बजा डाली तो झेलो। झूठे, मक्कार और गद्दारों ने कहा कि घर पर तिरंगा लहराओ, तो लहरा दिया। अब उनकी देशभक्ति की पोल खुल रही है, लेकिन तुम्हारी आंखें अब भी नहीं खुल रही। तो फिर रोती क्यों हो जनता? जनता तुम ही कलमुही हो, जैसे कर्म करोगी, वैसे फल देगा भगवान।
जागो और सुधरो। पार्टी के नाम पर नहीं, उम्मीदवार के काम पर वोट दो।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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