पुरस्कार के शब्द नश्तर की तरह चुभते हैं

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  • डा. कलाचंद सैन को उत्तराखंड रत्नश्री एवार्ड पर सवाल
  • डा. सैन महज वाडिया के डायरेक्टर हैं, उनका यहां के विकास में कोई योगदान नहीं!

जब प्रदेश का युवा बेरोजगार है, नेताओं और माफियाओं की पौ-बारह तो ऐसे समय में पहाड़ और हिमालय बचाने का सवाल भी बड़ा अहम है। वाडिया इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डा. कलाचंद सैन को सीएम के प्रमुख सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम की सोसाईटी इंटरनेशनल गुडविल सोसायटी आफ इंडिया ने उत्तराखंड रत्नश्री अवार्ड दिया है। कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने यह पुरस्कार दिया। मुझे इस अवार्ड को दिये जाने पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन जो आपत्ति है वह यह है कि इसमें लिखा है कि ‘उत्तराखंड के सतत विकास में अहम योगदान‘ के लिए यह पुरस्कार दिया गया। और वह भी उत्तराखंड रत्न श्री।
मेरा सवाल डा. कलाचंद सैन से है कि वह बताएं उत्तराखंड के विकास में क्या योगदान है? पिछले चार साल से वह यहां हैं और 24 में रिटायर होकर चले जाएंगे। उन्होंने ऐसा कोई शोध किया जो पहाड़ के काम आए। क्या कोई ऐसा काम किया, जो वाडिया संस्थान में नजीर साबित हो? उन्होंने वाडिया में पहाड़ के बेरोजगार युवाओं को नौकरी पर लगाया हो तो बताएं? सूत्रों के मुताबिक वाडिया में अधिकांश बाहरी लोगों को तैनात कर दिया गया।
डा. सैन यदि प्रयास करते तो हिमालयन ग्लेशियर शोध संस्थान को बचा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इस कारण आधे दर्जन से भी अधिक वैज्ञानिक और उनके इतने ही सहयोगी बेरोजगार हो गये। ग्लेशियरों का शोध प्रभावित हुआ, सो अलग। बता दूं कि डा. सैन जियोफिजिक्स के वैज्ञानिक हैं जबकि वाडिया को भू-वैज्ञानिक चाहिए।
ऋषिगंगा आपदा के समय डा. सैन वाडिया के रजिस्ट्ररार को चॉपर में लेकर घूमने का भी आरोप है, जबकि वाडिया के भू-वैज्ञानिक चमोली तक सड़क से गये और विषम परिस्थितियों में घाटी में एक सप्ताह पैदल घूमकर सर्वे किया। बेहतर होता यह पुरस्कार वाडिया संस्थान या किसी अन्य भू-वैज्ञानिक को दिया जाता जो हिमालय बचाने के लिए काम कर रहे हैं। मेरा यही कहना है कि जो महज नौकरी कर रहे हैं उन्हें निजी पुरस्कार दो, लेकिन उत्तराखंड के विकास के नाम पर नहीं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

यह ईश्वरीय वरदान है, कमाल का है रिषित

 

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