पहाड़ के गर्भ से निकले एक और टिंचरी माई-गौरा देवी

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  • मातृशक्ति संभाले पहाड़ बचाने की कमान, शिवानी संभाले मोर्चा
  • यह राज्य हमें खैरात में नहीं मिला, इसे यूं न लुटने दो, संभलो

परसों सीएम आफिस जाना था। पास नहीं था तो सचिवालय गेट पर खड़ा था। मुझे कहा गया कि कोई मुझे लेने आएगा। सचिवालय सुरक्षाकर्मियों के साथ खड़ा था। जब कर्मचारी आया तो उसने मेरा नाम लिया। एक सुरक्षाकर्मी चौंका, बोला, अरे आप हैं। मैं आपको पढ़ता हूं। नाम सुनकर दो तीन लोग और आ गये। एक महिला सुरक्षाकर्मी बोली, बड़ी निराशा है, प्रदेश बर्बाद हो रहा है। आप मीडिया से हैं, कुछ कीजिए। मैं निरुत्तर था। चुपचाप सचिवालय में चला गया।
दरअसल, प्रदेश में आज चहुं ओर अंधकार सा है। जनता निराश और हताश है। सोई है, उसे लगता है कुछ नहीं होगा। उसकी लड़ने की सारी ताकत खत्म हो चुकी है। अधिकांश राज्य आंदोलनकारी या तो मर गये या फिर दल-दल में फंस गये। जो बचे, वो कम संख्या में हैं और बूढ़े हो गये कि 1994 जैसी ताकत कहां से लाएं? अपनों के दिये घाव अधिक दुख देते हैं। तब यूपी था अब अपना प्रदेश है। एहसास होता है कि अलग राज्य के लिए किया संघर्ष, त्याग और बलिदान सब व्यर्थ हो गया है।
पहाड़ के सीमांत गांव तक विकास की किरण तो नहीं पहुंची, लेकिन गुलदार, भालू और बंदरों का साम्राज्य हो गया। पहाड़ मंकीलैंड बन गया। सोचा था कि कम से नौकरी तो मिलेगी। तो नेताओं के बच्चों और परिजनों ने वह अधिकार भी छीन लिया। फौज में जाने का सपना पाल बड़े हुए तो पता चला कि अग्निवीर बनेंगे। भविष्य अंधकारमय सा है।
नौकरियों का बुरा हाल है। राजनीति में भी नौकरियां नहीं हैं। नये नेताओं के लिए कोई जगह नहीं है। जो नेता राज्य गठन से पहले हमारा प्रतिनिधित्व करते थे, उन्होंने जगह ही नहीं छोड़ी। वो रिटायर ही नहीं हुए। जब मरते हैं तो ही उनसे पीछा छूटता है। इनमें से अधिकांश नेता वो हैं जो चाहते ही नहीं थे कि उत्तराखंड बने। जब बन गया तो लूट-खसोट तो कर ही रहे थे, अब पता चल रहा है कि सरकारी नौकरियों में भी अपने परिजनों को नौकरियां दी हुई हैं। यानी पैसे भी लूटे और नौकरियां भी छीन ली। हद है।
ऐसे घनघोर अंधेरे में रोशनी की एकमात्र किरण मातृशक्ति ही नजर आ रही है। हमारे पहाड की जीवट। इतिहास गवाह है कि पहाड़ की महिलाएं अपनी मेहनत, हिम्मत और बहादुरी के लिए विश्वविख्यात हैं। तीलू-रौतेली, गौरा देवी से लेकर टिंचरी माई तक। तीलू-रौतेली ने अपने बहादुरी से दुश्मनों का संहार किया, टिंचरी ने पानी के लिए नेहरू जी का हाथ झिंझोड़ दिया तो गौरा ने पेड़ों पर चिपट कर देश की प्रकृति और संस्कृति को बचाने का काम किया।
अब समय आ गया है कि पहाड़ के गर्भ से एक और मातृशक्ति का उदय हो। गढ़वाल विवि की शिवानी पांडे में संभावनाएं हैं। वह शुरुआत कर सकती है। बाबी पंवार, अंकित उछोली, मोहित डिमरी, संजय कठैत युवा नेता उसका साथ दे। थिंक टैंक के लिए अनुभवी बुद्धिजीवियों की मदद ली जाए। भले ही समय लग जाएं, लेकिन एक व्यस्थित जनांदोलन शुरू हो। अभी सब कुछ नहीं लुटा है। थको नहीं, लड़ो। यदि राज्य हासिल किया है तो इसको चलाने की जिम्मेदारी भी लो। यह राज्य हमें खैरात में नहीं मिला। इसके लिए हमने बहुत संघर्ष, त्याग और बलिदान दिये हैं। इसे लुटेरों के हाथ मत सौंपो। एकजुट-एकमुट हो जाओ, पहाड़ के लिए।
हां, कमर कसो, और तैयार हो जाओ एक और युद्ध के लिए। समर अभी शेष है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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