अतुल और मयंक, उत्तराखंड के दो गुमनाम हीरो

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  • उत्तराखंड को मिला मोस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट का अवार्ड
  • ये अवार्ड इन दोनों की मेहनत का नतीजा, इनकी सुध ले सरकार

उत्तराखंड को कल मोस्ट फिल्म फ्रेंडली अवार्ड मिला है। इसके लिए सरकार को बधाई। लेकिन इस अवार्ड के लिए यदि उत्तराखंड के दो गुमनाम हीरो का जिक्र न हो तो यह उनके साथ बेइंसाफी होगी।
अभी उत्तराखंड में अक्षय कुमार की कठपुतली की शूटिंग हुई। बताओ तो, शूटिंग के लिए लोकेशन, स्थानीय कलाकार, ठहरने और घूमने-फिरने की व्यवस्था कौन करता है? ये सब इंतजाम करते हैं उत्तराखंड के दो नायाब अनमोल रत्न, अतुल पैन्युली और मयंक तिवारी। इन दोनों ने अब तक उत्तराखंड में 100 से भी अधिक फिल्म, एड फिल्म और एलबम की शूटिंग को मैनेज किया है। कठपुतली समेत दर्जनों नामी-गिरामी निर्माता-निर्देशक और हीरो-हीरोइनों को उत्तराखंड लाने का श्रेय इन दोनों को ही जाता है।
आप विश्वास नहीं करेंगे, लेकिन यह सच है कि सरकार नीति तो बना लेती है लेकिन इसका लाभ फिल्म प्रोड्यूसरों को नहीं मिलता। यहां डीएम का चपरासी भी इतना पावरफुल है कि वह आशुतोष गावड़कर जैसे निर्माता-निर्देशक को भगा देता है। मैं इसका प्रत्यक्ष गवाह हूं। जब आशुतोष एवरेस्ट की शूटिंग के लिए उत्तरकाशी पहुंचे तो उनके साथ ऐसा ही हुआ। डीएम के चपरासी ने तब उन्हें तीन घंटे बाहर बिठा दिया था। इससे परेशान होकर वह इस सीरियल की शूटिंग शिमला लेकर चले गये।
उत्तराखंड का फिल्म शूटिंग के मामले में हिमाचल से सीधा कंपीटिशन है। अतुल और मयंक बालीवुड से लेकर साउथ जाते हैं। वहां के निर्माताओं और निर्देशकों को कंविंस करते हैं कि हिमाचल की तुलना में उत्तराखंड में क्या लाभ हैं। लोकेशन से लेकर लाजिस्टिक और सिक्योरिटी की पूरी जिम्मेदारी लेते हैं। अतुल के अनुसार वह हिन्दुस्तान देहरादून में मार्केटिंग विभाग में थे। 2011 में एफआरआई में स्टूडेंट आफ द ईयर की शूटिंग हो रही थी। वह वहां प्रोड्यूसर से काम मांगने चले गये। उन्हें स्थानीय लोगों की जरूरत थी। अतुल और मयंक को काम मिल गया।
अतुल और मयंक ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने यहां कठपुतली के अलावा फारेंसिक, दिलरूबा, कैदी, ब्लर, बाटला हाउस, जर्सी, केदारनाथ, मराठी फिल्म जग्गा आणि जूलियन समेत दर्जनों फिल्मों की शूटिंग करवाई है। यही नहीं, दोनों स्थानीय कलाकारों को फिल्मों में छोटे-मोटे रोल दिलाने में भी अहम भूमिका अदा करते हैं। इसके तहत वह स्थानीय एजेंसी नाइन ड्रीम्स की मदद लेते हैं। एक फिल्म में लगभग 300 स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है सो अलग।
कुल मिलाकर मेरा यह कहना है कि सरकार पुरस्कार मिलने पर खुद अपनी पीठ थपथपा ले, लेकिन ऐसे गुमनाम और नायाब हीरों की सुध भी ले। हो सके तो थोड़ा प्रोत्साहन इनको भी दे।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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