सरकार चाहे तो विधेयक लाकर नियुक्तियां कर सकती है रद्द

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  • क्या कांग्रेसी सदन में लाएंगे विधानसभा भर्ती मामला?
  • भ्रष्टाचार में भाजपा-कांग्रेस भाई-भाई, जनता देख रही मूक तमाशा

अनुपूरक बजट के लिए 15 नवम्बर के बाद विधानसभा सत्र आयोजित होगा। मेरे आकलन के मुताबिक इस बजट में सीधा 42 प्रतिशत वेतन-भत्तों के लिए प्रावधान होगा और बाकी 38 प्रतिशत के आसपास मंत्री, विधायक, अफसर और ठेकेदार मिलकर कमीशन खा जाएंगे। यानी बजट कितना भी हो, बामुश्किल 20 प्रतिशत ही जनता के काम आएगा।
यह तो रही अनुपूरक बजट की बात, लेकिन मेरा सवाल धाकड़ कहे जाने वाले सीएम पुष्कर सिंह धामी और स्पीकर ऋतु खंडूड़ी से है कि महज एक महीने पहले युवाओं को न्याय देने और भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार करने वाली धामी सरकार क्या इतनी हिम्मत दिखा सकती है कि वह सत्र के दौरान विधेयक लाकर गैर-कानूनी तरीके से विधानसभा में की गयी नियुक्तियों को निरस्त कर दें? मेरा सवाल स्पीकर ऋतु खंडूड़ी से है कि क्या आप इतनी मासूम हैं कि आपको यह भी नहीं पता कि जांच रिपोर्ट में गड़बड़ी पाई गयी तो अवैध तौर पर नियुक्त कर्मचारियों को नोटिस देकर निकालना चाहिए था। आखिर उन्हें नोटिस क्यों नहीं दिया गया?
आपको बता दूं कि हाईकोर्ट ने अवैध नियुक्तियों पर इन कर्मचारियों को कोई राहत नहीं दी है। केवल यह कहा है कि आप इन्हें निकालने से पहले नोटिस दें। साथ ही यह भी कहा है कि आप थोक भाव में इनको नौकरी से निकाल रहे हैं तो साथ ही साथ नियुक्ति प्रक्रिया भी करें। हाईकोर्ट के आदेश को एक माह बीत गया। सीएम धामी और स्पीकर ऋतु खंडूड़ी ने पूरी तरह से चुप्पी साध ली है। क्यों? पहले सरकार ने यह दिखाया कि सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है और जब एक्शन की बारी आई तो चुप्पी साध ली। क्योंकि इन नियुक्तियों में सीएम धामी से लेकर विपक्ष के कई नेताओं के रिश्तेदार भी शामिल हैं।
धामी सरकार को जरा भी परवाह नहीं है कि इन नियुक्तियों के लिए जिम्मेदार कुंजवाल और प्रेमचंद अग्रवाल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे। आखिर क्यों नहीं इन दोनों पूर्व स्पीकरों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ? क्यों प्रेमचंद अग्रवाल आज भी ठाट से मंत्री बने हुए हैं। क्या यह बात सीएम धामी के धाकड़ होने से फुस्स होने की बात नहीं बताते। सीएम धामी तो प्रेमचंद अग्रवाल के साथ रोज गलबहियां कर रहे हैं। धामी का प्रेमचंद अग्रवाल प्रेम पर जल्द ही रिपोर्ट लिखूंगा। क्या कांग्रेस के विधायक इस मुद्दे को सदन में उठाएंगे? नहीं, क्योंकि कोयले की दलाली में उनके चेहरे और हाथ भी काले हैं।
कानून विशेषज्ञों के अनुसार यदि सरकार चाहें तो अवैध तौर की गयी नियुक्तियों का प्रस्ताव लाकर इनको रद्द कर सकती है। फिर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट भी इस पर कोई कदम नहीं उठा सकता। लोकतंत्र में यह पावर सदन को है। लेकिन भ्रष्टाचार की कालिख तो भाजपा-कांग्रेस दोनों के चेहरों पर पुती हुई है। इस मामले में धाकड़ धामी हाईकोर्ट में धड़ाम हो चुके हैं। और स्पीकर ऋतु खंडूड़ी वाहवाही लूटने के बाद इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं।
जनता ने कांग्रेस के 19 विधायकों को जिताकर सदन में भेजा है। पिछले छह महीने में कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में बुरी तरह से विफल साबित हुई है। कई बार तो मुझे यह एहसास होता है कि विपक्ष की सही भूमिका में मैं और मेरे जैसे गिने-चुने पत्रकार हैं। कांग्रेसी विधायक और उनके नेता अकर्मण्य हैं और जनता उन्हें बेकार में ही ढो रही है। जनता तो वैसे भी मरी हुई है, उसके लिए क्या कहना।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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