मोहम्मद असीम: शरीर विदेश और आत्मा दून में

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आज बल्लूपुर के एक कैफे में मोहम्मद असीम से पहली बार मुलाकात हुई। असीम मानवता को सबसे बड़ा धर्म मानते हैं। वह पिछले 21 साल से एनआरआई हैं। वह दुनिया के दर्जनों देशों में नौकरी कर चुके हैं और मौजूदा समय में सउदी अरब में एक कंपनी में मटिरियल मैनेजमेंट का कार्य देख रहे हैं। असीम भले ही विदेश में रहते हों लेकिन उनकी आत्मा दून और उत्तराखंड से जुड़ी है।
हाल में भारी बारिश से जब मालदेवता में तबाही हुई तो वह दून में ही थे। तो वह आपदा प्रभावित लोगों की मदद के लिए आगे आए बल्कि गांधी पार्क में प्रभावितों की मदद के लिए एकत्रित लोगों के साथ ही मजबूती से खड़े रहे। कोरोना काल में जब सरकार भी दवाएं नहीं जुटा पा रही थी तो असीम ने प्रभावितों की हरसंभव मदद करने की कोशिश की। वह चंदन नगर में एक प्ले स्कूल भी चला रहे हैं। नाममात्र की फीस के साथ इस स्कूल में बच्चों में शिक्षा के साथ ही मानवीय संस्कार भी दिये जा रहे हैं। वह आम लोगों के लिए एक अस्पताल शुरू करने की कवायद कर रहे हैं ताकि गरीबों को नि:शुल्क इलाज मिल सके। इस युवा की सकारात्मक सोच और समाजसेवा को सैल्यूट।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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