- सदन में चर्चा होती तो संभवत विधेयक पारित ही नहीं होता
- हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के नजरिए से भी देखा जाना चाहिए था विधेयक
प्रदेश की सबसे बडी पंचायत में शीतकालीन विधानसभा सत्र के दौरान कुल 13 घंटे 47 मिनट की कार्यवाही चली। इसमें अनुपूरक बजट के साथ ही 14 विधेयक पेश हुए। 619 सवाल भी थे लेकिन सरकार तो सवालों के जवाब से बचती है और विपक्ष खानापूर्ति करता है। पेश किये गये विधेयकों में सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण विधेयक भी था। बिना चर्चा के ही अधिकांश विधेयक पास कर दिये गये। विपक्ष के नेता यशपाल आर्य का कहना था कि विधेयक की कापी दी ही नहीं गयी थी। सही किया, वैसे भी जब संबंधित विधेयक के मंत्री को ही अता-पता नहीं होता तो अन्य विधायक क्यों मत्था-पच्ची करें। सुना है कि यह विधेयक वापस लौटा दिया गया है।
यदि इस विधेयक पर सदन में चर्चा होती तो संभवत: इस एंगल पर भी बात होती कि हाईकोर्ट का इस मामले में आदेश क्या है? सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन है। लीगल ओपिनियन के साथ ही विधायी चर्चा भी होती तो विधेयक की विसंगतियों या कमजोर तकनीकी पहलू नजर आते। विधेयक को सदन में बहस के बाद कुछ समय के लिए रोका जा सकता था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जा सकता था। लेकिन जब विधेयक पर बहस ही नहीं हुई और हड़बड़ी में विधेयक पास कर दिया गया। अब यदि विधेयक लौटा है तो आश्चर्य नहीं। कम से कम जनहित के मुद्दों पर तो विधायकों और सरकार को गंभीर होना चाहिए।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]