ये पहाड़ के साथ दुष्कर्म नहीं तो और क्या है?

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  • 10 मिनट बचाने के लिए जेसीबी से काट डाला 90 डिग्री पर पहाड़
  • गणेशपुर से डाटकाली के बीच बसे वन गुर्जरों के विस्थापन को क्या नीति बनी, पता नहीं?

पता नहीं यह अंधा विकास हमें कहां ले जाएगा? देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेस वे बनाने के लिए सरकार ने देहरादून और मोहंड के बीच लगभग 20 हजार पेड़ों की बलि ले ली। कहा जा रहा है कि गणेशपुर से डाटकाली तक एलीवेटिड रोड बनने से यात्रियों के 10 से 20 मिनट बच जाएंगे? इस 20 मिनट में यात्री क्या कर लेंगे? जबकि मोहंड से देहरादून आते समय अभी प्रकृति की अनूठी छांव मिलती है, ठीक ऐसे जैसे मीलों चले थके-हारे पथिक को पेड़ की घनी छांव मिल गयी हो। यहां बरसाती नदी पर एलिवेटिड रोड बननी शुरू हो गयी है।
सोमवार तड़के दिल्ली जाते समय मोहड़ के रास्ते में दिल्ली-देहरादून हाईवे के लिए बन रही एलीवेटिड रोड के लिए पहाड़ को खुदा देखा तो मन में हूक उठी। उस पहाड़ पर सूर्य की किरणें इस तरह से पड़ कर छितरा रही थी कि मानो पहाड़ भुजारहित हो गया हो। आज शाम को रुड़की से वापस लौटते समय जहां एलिवेटिड रोड का निर्माण कार्य शुरू हो रहा है, वहां से ठीक सामने कटे इन उदास पहाड़ों को देखा। कार रोकी और देर तक इन पहाड़ों को गुमशुम देखता रहा। उनकी पीड़ा का एहसास कर रहा था।
पता नहीं एनएचआई के उन महान इंजीनियरों ने ऐसी कौन सी डिजायनिंग की कि पहाड़ को 90 डिग्री काट डाला। उन पर बहुत गुस्सा आ रहा था, कि इन निकम्मे इंजीनियरों ने इन पहाड़ों को जेसीबी चालक के हवाले कर दिया और उन चालकों ने पहाड़ों के साथ बलात्कार कर डाला। यहां मिट्टी के पहाड़ खड़े कर दिये गये हैं। मलबा निस्तारण की व्यवस्था पर भी कोई नहीं उठा रहा, क्योंकि सब कथित विकास की दुहाई दे रहे हैं। एनजीटी और अन्य पर्यावरणीय संस्थाएं मौन साधे हुई हैं।
एलिवेटिड रोड यहां बरसाती नदी पर बन रही है। एक्सप्रेस-वे के लिए 19 किलोमीटर यूपी सीमा में है और यहां बरसाती नदी पर एलिवेटिड रोड तैयार की जा रही है। यहां वन गुर्जर भी थे, पता नहीं कहां विस्थापित कर दिये? या भगा दिये?
जो भी हो, कथित विकास के समर्थकों को बधाई कि अब वे दिल्ली 10 से 20 मिनट पहले पहुंच सकेंगे। उनका समय बच गया लेकिन पहाड़ों के साथ जो बलात्कार हुआ, उसकी भरपाई कैसे होगी और प्रकृति किस तरह से बदला लेगी, यह भविष्य के गर्भ में हैं। पर तय है इस बलात्कार की कीमत चुकानी होगी।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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