डीएम सोनिका-डीजाईजी कुंवर फेल, प्रशासन एकादमी में क्या सीखा?

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  • पुलिस ने श्रीयंत्र टापू, मसूरी-खटीमा कांड की याद दिला दी
  • बेरोजगार युवाओं की लड़ाई लड़ने आगे आएं सीनियर वकील

मैंने एक जिलाधिकारी और एक एसएसपी को कल युवाओं के सामने बेबस देखा। मुझे उन दोनों पर बहुत तरस आ रहा था। पता नहीं कैसे बने होंगे आईएएस और आईपीएस? एलबीएस में डीएम सोनिका ने क्या सीखा होगा? यूपीएससी के इटरव्यू के समय यदि ऐसा सवाल पूछा गया होगा तो मैडम का क्या जवाब रहा होगा? डीआईजी कुंवर तो बहुत अनुभवी हैं। इसके बावजूद वह फेल हो गये। क्यों? कोई इसकी जांच करेगा?
पुलिस-प्रशासन युवाओं के शांतिपूर्ण प्रदर्शन से निपटने में पूरी तरह से नाकाम रहा। लाठीचार्ज और पथराव की नौबत आई क्यों? क्या लाठी ही विकल्प था? यानी पुलिस के पास युवाओं की भीड़ से निपटने के लिए कोई एक्शन प्लान ही नहीं था कि सिवाए लाठीचार्ज के। डीआईजी कुंवर का जारी वीडियो बताता है कि शरारती तत्व घुस गये थे, तो पुलिस क्या कर रही थी?
पुलिस ने खुद ही शरारत की है। पुलिस के आलाधिकारी यदि आठ फरवरी की रात को अभद्र व्यवहार करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई कर देते तो यह नौबत आती ही नहीं। वीडियो में साफ दिखा कि उक्त रात को पुलिस लाठी मार नहीं रही थी, घुसेड़ रही थी। कल जब मैं प्रदर्शन को कवर करने गया तो लड़कियों ने आरोप लगाया कि कई पुलिसकर्मियों ने रात को लड़कियों को छेड़ा। पुलिस आधी रात को बिना लेडीज पुलिस के गांधी पार्क गयी क्यों?
दूसरी बात, जब कल पांच से सात हजार की भीड़ सुबह से ही गांधी पार्क में एकत्रित हो गयी थी तो पुलिस के पास क्या प्लान था? क्या पुलिस नहीं जानती कि बच्चों से कैसे निपटा जाता है? क्या उनके बच्चे नहीं है? बच्चे कितनी जिद करते हैं घर में? क्या उनको लाठी या पत्थर मार कर मनाते हैं ये पुलिस वाले? युवाओं ने पथराव किया, यह नहीं होना चाहिए था। यह उनकी नादानी थी। लेकिन पुलिस ने कितनी संगीन धाराओं में 13 युवाओं को बुक किया? पुलिसिया बर्बरता ने 1994 के मसूरी, खटीमा और श्रीयंत्र टापू की याद दिला दी।
मैंने वहां देखा कि कोई सीनियर आफिसर या जिम्मेदार व्यक्ति पहुंचा ही नहीं। न ही किसी ने परवाह की। सीधी बात है कि पथराव और लाठीचार्ज के लिए जिला प्रशासन और पुलिस पूरी तरह से जिम्मेदार है। जिस तरह की आपराधिक धाराएं पुलिस ने बाॅबी पंवार, लुसुन टोडरिया और अन्य 11 युवाओं पर लगाई हैं। हत्या के प्रयास धारा 307, 332, 352,147,186,341,188,427,34 का केस दर्ज किया गया है। मैं उत्तराखंड के सीनियर एडवोकेटस से अपील करूंगा कि वह इन बच्चों की मदद के लिए आगे आएं। एक पैनल बने।
घटना की मजिस्ट्रियल जांच का आदेश ठीक है और होनी भी चाहिए। सीएम धामी को चाहिए कि पहले वह इस घटना के लिए सभी जिम्मेदार प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों को हटाए।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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