दून में साहित्य साधना की खिली ‘फुलवारी‘

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  • पूर्व डीजीपी अनिल रतूड़ी की पहल ला रही रंग
  • लेखकों की पुस्तकों और पर होता है विमर्श

पूर्व डीजीपी अनिल रतूड़ी और एसीएस राधा रतूड़ी ने साहित्यकारों के लिए एक नई सराहनीय पहल की है ‘फुलवारी‘। यह कार्यक्रम महीने में एक बार उनके निवास पर होता है। फुलवारी में देहरादून या यूं कहें कि प्रदेश के नामी साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों की भागीदारी होती है। फुलवारी में किसी भी साहित्यकार या लेखक की पुस्तक पर विचार-विमर्श होता है। उस पुस्तक के संबंध में लेखक या लेखिका से सवाल-जवाब होते हैं। फुलवारी में कल लेखिका डॉली डबराल की पुस्तक अफ्रीका हाउस पर चर्चा हुई।
सबसे अच्छी बात यह है कि फुलवारी में पुस्तक समीक्षा के साथ-साथ ही समाज के विभिन्न विषयों पर भी चर्चा होती है। मसलन पुस्तक ‘अफ्रीका हाउस‘ की घटनाएं चार-पांच दशक पूर्व की थी। उस समय के समाज और सोच को लेकर मंथन हुआ। पति-पत्नी के संबंधों और दायित्व पर सार्थक चर्चा हुई। लड़कियों के अधिकार और उन्हें सशक्त बनाने की बात हुई। रंगभेद का मुद्दा भी उठा। मुझे कल यह एहसास हुआ कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में हर दिन औसतन तीन-चार घंटे अधिक काम करती हैं चाहे वह गृहणी ही क्यों न हों?
फुलवारी में चातुरी चतुरंग जैसी अनुपम कृति के लेखक व अपर सचिव ललित मोहन रयाल, पूर्व उपकुलपति डा. सुधा रानी पांडे, वरिष्ठ साहित्यकार राम विनय सिंह, सुशील उपाध्याय, कवयित्री वीना बेंजवाल सहित कई प्रमुख लेखकों की सक्रिय भागीदारी रही। निश्चित तौर पर यह सराहनीय पहल है। इससे लेखकों का मनोबल भी बढ़ता है और साथ ही अन्य लेखकों को भी प्रेरणा मिलेगी। कई युवा भी यहां मौजूद थे तो उन्हें भी लेखन और सम-सामायिक विषयों की जानकारी भी मिली होगी।
हालांकि मैं वहां पाठक के तौर पर गया था लेकिन मन नहीं माना तो सबसे आखिर में चुपके से दो सवाल दाग दिये, हालांकि ये पुस्तक से संबंधित नहीं थे। पहला सवाल एसीएस राधा रतूड़ी से पूछा कि प्रदेश में भाषा संस्थान क्या कर रहा है, सरकार साहित्य एवं ललित कला अकादमी क्यों नहीं गठित करती? उन्होंने कहा कि जल्द ही कुछ अच्छा होगा। दूसरा सवाल मैंने मौजूद साहित्यकारों से किया कि यदि साहित्य समाज का दर्पण है तो जब अंकिता भंडारी हत्याकांड हुआ, या क्रिकेट में तीन लड़कियों के यौन शोषण का मुद्दा उठा तो साहित्यकार चुप्पी क्यों साध लेते हैं? क्या वे डरपोक हैं या डर जाते हैं कि सरकारी नौकरी कर रहे हैं? इस सवाल पर प्रांगण में चुप्पी छा गयी। आखिर पूर्व डीजीपी अनिल रतूड़ी ने मोर्चा संभाला, कहा कि इस पर अलग से बात होगी? पता नहीं, अगली बार फुलवारी में मुझे बुलाया जाएगा या नहीं?
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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