बेटा हो तो संजीव जैसा आज्ञाकारी, मनीष को कौन समझाए?

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  • गाय-बछड़े की सी है यशपाल-संजीव की जोड़ी
  • हरदा, लो तुम्हारे दलित सीएम के सपने को साकार करने आ गये आर्य

वाह, बेटा हो तो संजीव जैसा। क्या आज्ञाकारी है। पिता यशपाल आर्य जहां कहें, उनके पीछे-पीछे चल देता है। गाय बछड़े की सी जोड़ी है पिता-पुत्र की। स्त्रीलिंग इसलिए कि गाय पत्रित्र है और बछड़ा मासूम। गाय भोलेपन से किसी के हरे-भरे खेत में घुस कर उज्याड़ खाती है और मासूम बछड़ा भी मां के साथ उसी खेत में घुस जाता है। कसम से, संजीव की मासूमियत पर दिल गार्डन-गार्डन हो गया। आज की दुनिया में भला ऐसे सीधे और आज्ञाकारी पुत्र कहां मिलते हैं? सीखो बच्चो, सीखो, संजीव से। विशेषकर मनीष खंडूड़ी को सीखना चाहिए कि पिता भाजपा में तो वो कांग्रेस में क्यों?
भाजपा के किराए के मकान में गये यशपाल आर्य ने ठीक ही किया। विभाग भी दिया तो परिवहन। जिसका पहले से ही भट्टा बैठा हुआ था। ड्राइवर-कंडक्टर बसों की कमानी और तेल तक बेच देते हैं। मलाईदार विभाग महाराज और हरक को दे दिये। सुबोध उनियाल भले ही कृषि का क नहीं जानते हों, लेकिन उन्हें कृषि देकर उद्योगों के लिए निवेश लाने के लिए जापान आदि देश भेज दिया। रेखा का भी प्रमोशन कर दिया। फिर यशपाल ने क्या भाजपा की भैंस चुरा ली थी। उनको ऐसे खटारा विभाग क्यों दिये?
उधर, ये हरदा भी न, इनका कुछ नहीं हो सकता। दुनिया भर के सपने देखने का ठेका इन्हीं ने लिया है। पंजाब में सिद्द्धू को बाबाजी का ठुल्लू दिखाने के बाद हरदा को भंयकर सपना आया कि उत्तराखंड में भी दलित को सीएम बनते देखूं। हरदा हैं ही दिलदार। दिल पसीज जाता है। पहाड़ियत उछल-उछल कर हिलोरें मारने लगती है। यशपाल ठहरे उनके लंगोटिया दोस्त। वर्षों साथ में खाया कम और पिया ज्यादा। बस, यशपाल दा ने ठान लिया कि बड़े भाई हरदा का सपना साकार करना है। ठान लिया तो ठान लिया।
पांच साल में तीसरे सीएम बने पुष्कर ने यशपाल के घर का नमक भी खाया। खूब गलबहियां भी की, दुहाई दी, लेकिन यशपाल ने तो पुष्कर का नमक नहीं खाया तो तोड़ दिया नाता। पिता-पुत्र ने किराये का मकान छोड़ दिया। यमुना कालोनी में कितने दिन रहते? सोचा कुछ बड़ा करते हैं, बीजापुर गेस्ट हाउस या सीएम की विशाल कोठी का सपना क्यों न देखें? हरदा जो साथ हैं तो डरने की क्या बात है? डर के आगे जीत है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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