तोंद वाले नेताजी जरा संभालना, यहां राह पथरीली है

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  • वोट की तलाश पहाड़ की याद में टेशू बहा रहे नेताजी
  • इस बार शर्तिया विकास होगा, तांत्रिक की तर्ज कर रहे दावा

इन दिनों चुनावी बयार है। नीती घाटी में गदेरे जम गये हैं तो अधिकांश पहाड़ी सड़कों पर पाला गिरा है। वोट की तलाश में छोटे, मोटे, तोंदवाले और छड़ी पकड़कर चलने वाले सभी नेता पहाडों की ओर दौड़ रहे हैं। स्टेट्स पर पहाड़ दिखा रहे हैं। सोशल मीडिया पर बता रहे हैं कि गढ़वाल और कुमाऊं दौरे पर। तोंदवाले नेता जिन्होंने पूरे पांच साल पहाड़ की शक्ल नहीं देखी वो भी वहां जा रहे हैं। कोरोना में घरों में दुबके डायबिटीज, बीपी, हार्ट आदि तरह-तरह की बीमारियों से ग्रसित नेताजी भी दौड़ रहे हैं। यह दिखाने की उनको अपनी मिट्टी से कितना प्रेम है। वो नेता भी गांव की ओर जा रहे हैं जिन्होंने दून या दिल्ली में ही घर बसा लिया और जीतने या चुनाव हारने के बाद लौटकर पहाड़ की ओर नहीं देखा।
एक तोंदवाले नेता जो सत्ता में हैं पिछले चुनाव में पहाड़ की एक सीट से चुनाव लड़े। तब 66 साल के थे, सीढ़ीनुमा खेत में जनसभा थी। एक खेत से दूसरे खेत में जाने के लिए पत्थर लगा था। नेताजी ने पूरा जोर लगाया। हार्लिक्स, बार्नबीटा और यारसा गम्बू की तमाम खुराक भी काम नहीं आई। तब नेताजी के लिए भीड़ा यानी दीवार तोड़ी गयी तो वो सभास्थल तक पहुंचे। मोदी लहर में जीत गये। इस बार दो साल कोरोना रहा तो देहरादून के घर में ही दुबके रहे। ग्रामीणों ने शोर मचाया तो पांच-पांच किलो राशन की किट लेकर पहुंच गये। हम पहाड़ियों की किस्मत और वोट की कीमत क्या महज पांच-पांच किलो राशन की किट ही है। इस बार वो 71 साल के हैं। फिर पहाड़ की ओर जा रहे हैं बेटे को लेकर। मैं न सही तो बेटा सही।
यह कहानी हर जीतने और हारने वाले विधायक की है। पहाड़ में दोबारा नेताओं की आवक होने लगी है। सब विकास ढूंढ रहे हैं जिसका वादा उन्होंने पांच साल पहले किया था, लेकिन सभी जगह निगोड़ी गरीबी ही मिल रही है। गरीबी की सहेली बेरोजगारी साथ में है। नेता फिर किसी नीम-हकीम या तांत्रिक की तरह वादा कर रहे हैं इस बार तो शर्तिया विकास ही होगा।
इसके बावजूद मेरा नेताओं से आग्रह है कि भाई लोगो, संभलकर चलना। इम्युनिटी की जरूरत कोरोना काल में ही नहीं पहाड़ चढ़ने में भी पड़ेगी। राह पथरीली है और ठोकर लग सकती है। यदि ठोकर लगी तो गदेरे या भ्याल में गिरे नजर आओगे। जरा संभलना।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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