कुछ कमियों के बावजूद ‘शेरशाह’ सिद्धार्थ मल्होत्रा के खाते में एक यादगार फिल्म गिनी जाएगी

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फिल्म समीक्षा

टाइटल – शेरशाह

निर्देशक –विष्णुवर्धन

सितारे – सिद्धार्थ मल्होत्रा, कियारा आडवाणी आदि।

शेरशाह में किसका रोल सबसे परफेक्ट है?
अक्सर ऐसी फिल्म बनाना एक जोखिम का काम होता है जिसकी पूरी कहानी लोग पहले से जानते हैं – कहानी के अंत में क्या होगा, कहानी में किन-किन बड़ी घटनाओं का जिक्र होगा – ये तथ्य जब लोगों को पहले से मालूम होते हैं तो वहां दर्शक जिन चीज़ों के लिए फिल्म देखने जाते हैं-वे हैं स्क्रीनप्ले, डायरेक्शन, अभिनय और गीत-संगीत। जिसके जरिये दर्शक कुल मिलाकर मनोरंजन हासिल करना चाहते हैं।

शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा का जीवन
मूलत: कॉमर्शियल जॉनर की फिल्म शेरशाह में करगिल विजय के नायक कैप्टन विक्रम बत्रा की जिंदगी की शौर्यगाथा दिखाई गई है। इसी के साथ यह फिल्म उनके कॉलेज के दिनों की रोमांटिक कहानी भी कहती है। जैसा कि हम सभी जानते हैं करगिल की ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्तान ने किस प्रकार धोखे से भारतीय जमीन पर कब्जा कर लिया था। जिसके बाद भारतीय सेना के बहादुर जवानों ने ऑपरेशन विजय अभियान चलाया और पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। और इसी क्रम में करगिल की सबसे ऊंची पहाड़ी पर कैप्टन विक्रम बत्रा की जांबाज टीम ने पाकिस्तान के आखिरी बंकर को तबाह करके तिरंगा लहराया था। लेकिन कैप्टन विक्रम बत्रा महज पच्चीस साल की उम्र में शहीद हो गये।

कहां कहां चूक गये फिल्ममेकर्स?
यह एक ऐतिहासिक वीर गाथा है। ऐसे विषय पर फिल्में बननी चाहिये। लेकिन अफसोस कि पर्दे पर कैप्टन विक्रम बत्रा की शूरवीरता का अहसास नहीं हो पाता। बीएफएक्स और बैकग्राउंड स्कोर के जरिये वॉर का माहौल जरूर रचा गया है लेकिन विक्रम के रूप में सिद्धार्थ वह जोश नहीं दिखा सके जिसे लोगों ने वास्तविक शहीद विक्रम बत्रा की वीडियो क्लिपिंग्स में देखा होगा। सिद्धार्थ मल्होत्रा की बॉडी लेंग्वेज और हाव भाव से उसकी तुलना करेंगे तो आपको निराशा होगी। सिद्धार्थ विक्रम बत्रा के जोश और जुनून को ठीक से नहीं जी सके हैं। निश्चय ही यहां सिद्धार्थ मल्होत्रा एक ऐतिहासिक मौका चूक गये। वह रोमांटिक किरदार में ठीक ठाक लगते हैं लेकिन युद्ध के मैदान में पराक्रम का बोध नहीं करा पाते।

कियारा आडवाणी ने दिल जीता
जबकि सिद्धार्थ मल्होत्रा के मुकाबले विक्रम बत्रा की प्रेमिका के रूप में डिंपल बनी कियारा आडवाणी अधिक आकर्षक लगीं है। अपने छोटे रोल में ही कियारा ने जज्बाती और भावुक सिख युवती का प्रभावशाली अभिनय किया है। वह जब-जब पर्दे आती है, खूबसूरती और शालीनता दोनों छा जाती है। कियारा ने अपने रोल के साथ न्याय किया है।

कहानी में कुछ सुधार की जरूरत थी
फिल्म की कहानी कहने का तरीका थोड़ा और बेहतर हो सकता था। पूरी कहानी विक्रम बत्रा के भाई विशाल बत्रा सुनाते हैं और आनंद फिल्म के उस संवाद से फिल्म खत्म होती है कि जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिये। क्योंकि बचपन से फौजी बनने का सपना देखने वाले विक्रम बत्रा बहुत जल्द ही लेफ्टिनेंट से कैप्टन बनते हैं जब आतंकी हैदर को खत्म करते हैं। इसके बाद महज पच्चीस साल की उम्र में करगिल युद्ध में पाकिस्तान को परास्त कर शहीद हो जाते हैं।
मुझे लगता है शेरशाह की कहानी विक्रम बत्रा के भाई की जुबान से सुनाने की बजाय उस डिंपल से होनी चाहिये थी, जिन्होंने विक्रम बत्रा से शहीद होने के बाद शादी नहीं करने का फैसला किया और आज भी जो एक स्कूल में बतौर शिक्षिका अपना जीवन गुजारती हैं। बलिदान का एक रंग यह भी काफी अहम है। जिसे दिखाने में फिल्ममेकर्स चूक गये। इससे फिल्म का डाक्यूमेंटेशन पक्ष मजबूत होता और इसकी एतिहासिकता को और भी कालजयी बनाया जा सकता था। लेकिन कॉमर्शियल जॉनर की फिल्म में लेखक-निर्देशक ने इसकी दरकार नहीं समझी होगी।

संवाद और गीत-संगीत भी कमजोर
इसके अलावा कई और मोर्चे हैं जहां-जहां फिल्ममेकर्स चूक गये-मसलन इसके गीत-संगीत पर मानो काम ही नहीं किया गया। फिल्म में दो पंजाबी परिवार हैं, इसका यह मतलब नहीं कि एक हिंदी फिल्म में जब – जब वे दिखें तो आपस में केवल पंजाबी में ही बातें करे—यानी यहां भी पूरे देश को फिल्म और भाषा समझा पाने में फिल्ममेकर्स चूक गये।
जाहिर है धर्मा प्रोडक्शन और डायेक्टर विष्णु वर्धन ने एक बड़ा ऐतिहासिक मौका गंवा दिया। सिद्धार्ध मल्होत्रा का यह मौका भी हाथ से निकल गया। हालांकि अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज यह फिल्म उनके खाते में अब तक की सबसे यादगार फिल्म मानी जायेगी।

रेटिंग – 2 स्टार

-संजीव श्रीवास्तव

[साभार: www.epictureplus.com]

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