‘अपने हक के लिए बोलना और लड़ना सीखें महिलाएं’

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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर देवभूमि हिमाचल के शिमला से न्यायविद चारू गुप्ता और कनाडा से प्रवासी भारतीय पूनम गुलेरिया से उत्थान फ़ाउंडेशन की निदेशक अरूणा घवाना की खास बातचीत
शिमला से सहायक लोक अभियोजक चारू गुप्ता का मानना है कि महिलाओं के सम्मान में एक दिन समर्पित करना, जैसी महज़ औपचारिकता नहीं होनी चाहिए। एक दिन में कुछ नहीं बदलता, किंतु एक-एक फ़ूल से माला बनती है। यह कहावत हिमाचल में बहुत मशहूर है। तो यह दिवस एक दिन में यों तो सीधेतौर कुछ बदलाव नहीं ला पाता, पर साल-दर-साल समाज को कुछ सोचने को मज़बूर ज़रूर कर देता है।
समाज में पुरूषों को इस बात के प्रति संवेदनशील होना होगा कि एक महिला के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। ये चीज़ें बचपन से ही किसी घर में एक पुरुष की परवरिश को दर्शाती हैं।
जहाँ तक नारी सशक्तिकरण की बात है तो इसे हम किसी एक धुरी से नहीं देख सकते हैं। समाज में नारी का चहुमुखी विकास ही नारी सशक्तिकरण है जहाँ उसे पूरा सम्मान, स्वतंत्रता और हक दिया जाए।
यदि मैं हिमाचल विशेष की बात करूं तो मैं गर्व के साथ कह सकती हूं कि हिमाचल प्रदेश में देश के कई हिस्सों की तुलना में महिलाओं की स्थिति काफ़ी बेहतर है। वे अपेक्षाकृत स्वतंत्र हैं और अधिक सुरक्षित भी। महिलाओं को सिर्फ़ कागज़ीतौर पर अधिकार नहीं दिए हए वरन ज़मीनीतौर पर भी आप गाँव तक के स्तर में महिलाओं के साथ पुरुष द्वारा घरेलू काम में भी पूरा सहयोग देखा जा सकता है। जबकि आम सामाजिक धारणा के तहत घर के काम सिर्फ़ महिलाओं के जिम्मे माने जाते हैं।
इस सबके बाद भी मेरा निजी तौर पर मानना है कि हिमाचल में नारी सशक्तिकरण के लिए अभी बहुत काम करना बाकी है।
पुरुष प्रधान समाज में बतौर महिला आपको कार्यक्षेत्र में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मेरा प्रोफ़ेशन पुरुष प्रधान माना जाता रहा है। फ़िर भी पिछले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में महिलाएं इस क्षेत्र में पदार्पण कर चुकी हैं। वैसे भी समय के साथ काफ़ी चीज़ें बदल रही हैं जिन्हें समाज नज़र अंदाज़ नहीं कर सकता।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हिमाचल प्रदेश की महिलाओं को मैं एक ही संदेश देना चाहती हूं, अपने हक के लिए बोलना और लड़ना सीखो। क्योंकि कोई किसी और के लिए तब तक नहीं लड़ सकता, जब तक कोई स्वयं न खड़ा हो। प्रदेश की महिलाएं यों तो जागरुक हैं किन्तु अभी भी काफ़ी सफ़र तय करना बाकी है। बुद्धि और शक्ति को अपना हथियार बनाओ और आसमान की बुलंदियों को छुओ।सा थ ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मैं अपने प्रदेश की महिलाओं को शुभकामना देती हूं।

कनाडावासी ‘मिसेज एशिया इंटरनेशनल 2023’ पूनम गुलेरिया भारत के खूबसूरत राज्य और देवभूमि कहे जाने वाले राज्य हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर से आती हैं। शिक्षिका होने के साथ-साथ वे मॉडलिंग और समाजसेवा में भी रुचि रखती हैं। टोरंटो में एक गैर-लाभकारी संगठन एचपीजीए (हिमाचल प्रवासी संगठन) के निदेशकों में से एक हैं, जो कनाडा में हिमाचली संस्कृति की दिशा में काम कर रहा है।
नारी सशक्तिकरण के बारे में उनका मानना है कि जब महिला अपने व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक फ़ैसले बिना किसी दवाब के स्वतंत्र रूप से ले सके। ये फ़ैसले उसके स्वविवेक के हों न कि उसके पति, पिता, पुत्र या परिवार के अन्य किसी सदस्य द्वारा उस पर थोपे गए हों। उसे ही मैं मूल रूप से नारी सशक्तिकरण मानती हूँ। किंतु इस तरह से किसी के लिए एक दिन का उत्सव मना लेने से उस समाज या क्षेत्र में कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं आ सकता। सच कहूं तो आज भी घर के काम में उलझी महिला को मार्च महीने में मनाए जाने वाले महिला दिवस की कोई जानकारी भी नहीं होगी।
मैं तो यह मानती हूं कि यदि यह उत्सव है तो यह हर दिन, हर पल और हर घर, समाज और देश में महिलाओं को सम्मान देकर मनाया जाए, तभी इसकी सार्थकता होगी।
हिमाचल प्रदेश में नारी सशक्तिकरण की बात पर वह चहक कर कहती हैं कि हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में अनुपात के हिसाब से लड़कियों की संख्या लड़कों से ज्यादा है। यह सही है कि मैं काफ़ी समय से कनाडा में रह रही हूं फ़िर भी मैं हिमाचल जाने का कोई मौका नहीं चूकती। मैंने देखा है, पढ़ा है और महसूस भी किया है कि हिमाचल प्रदेश की महिलाएं अन्य राज्यों की अपेक्षा ज्यादा सशक्त है क्योंकि वे हर कार्यक्षेत्र में चाहे वह चुनाव का मैदान हो या खेल का, बालीवुड हो या खेतों में काम हो, शिक्षा हो या शिक्षण और प्रशिक्षण प्रदेश की महिलाएं अपने प्रति जागरूक हैं इसलिए सशक्त भी हैं। हाँ फ़िर भी कहूंगी कि काफ़ी काम अभी बाकी है।
जहां तक पुरूष प्रधान समाज की बात है, वह चाहे विकसित देश की बात हो, विकासशील की हो या अन्य पिछड़े देशों की बात हो, महिलाओं को कार्यक्षेत्र में काफ़ी दिक्क्तों का सामना करना पड़ता है। शिक्षण क्षेत्र ही बात करें तो कई जगहों पर हम पाते हैं कि समान पद और कार्य के बावजूद, महिलाकर्मी को कम वेतन दिया जाता है। दफ़्तर में महिलाओं के साथ कई तरह का उत्पीड़न किया जाता है। यह उत्पीड़न व्यक्तिगत के अलावा सोशल मीडिया के माध्यम से भी किया जाता है। जो सच में बहुत भयानक है। इसके अलावा कार्यक्षेत्र में महिला के प्रति पुरुष सहकर्मियों द्वारा पुर्वाग्रह से ग्रस्त फ़ैसले भी लिए जाते हैं जो उसकी कार्यक्षमता पर सीधा-सीधा कुठाराघात माना जा सकता है।
यौन उत्पीड़न भी कई जगह देखा जाता है। अब अच्छी बात यह है कि महिलाओं ने आवाज़ बुलंद करनी शुरू कर दी है।
भारत में ही नहीं वरन दुनिया भर में इतनी सशक्त नेत्रियां हुई हैं फ़िर भी किसी काम में नेतृत्व देते हुए पुरूष सहकर्मी बहुत हिचकिचाते हैं। अब भारत की बात को छोड़ दें तो साईंस-टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग व विज्ञान अन्य क्षेत्र, गणित और इसके अलावा खेलों में भी महिलाओं का प्रतिशत पुरूषों से कम ही देखने को मिलता है।
कई देशों में मातृ अवकाश भी नहीं दिया जाता, जो महिलाओं की दशा को अधिक शोचनीय बना देता है।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हिमाचल प्रदेश की महिलाओं को मैं एक ही संदेश देना चाहती हूं। ज्यादा से ज्यादा शिक्षा को तव्वजो दें। उच्च शिक्षा ग्रहण करने का हरसंभव प्रयास करें। साथ ही इस बात का भी ख्याल रखें कि स्वतंत्रता के साथ कुछ जिम्मेदारी भी आती है। उसे भी पूरी ईमानदारी और मेहनत से निभाएं। अपने विचारों को व्यक्त करने में कोई कोताही न बरतें। स्पष्ट रूप से अपनी बात घर और समाज में रखें। स्वयं को प्यार करना सीखें। जैसी हैं, उसे स्वीकार करें। जीवन में भी अपनी खूबियों के साथ-साथ कमियों को भी स्वीकार करने में न झिझकें। कमियों को बेझिझक सुधारने का प्रयास करें।
और सबसे जरूरी बात कि अपने ऊपर इन्वेस्ट करें। यानि अपनी सेहत और पोषण का पूरा ध्यान रखें। व्यायाम और योग से जी न चुराएं। एक स्वस्थ आदत पर मैं जरूर करना चाहूंगी कि कोई दूसरी महिला क्या कर रही है इसमें समय न गंवा कर स्वयं को और अपने परिवार को संवारने में समय व्यतीत करें। तभी आप सही तरीके से तरक्की कर सकेंगी।

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