पत्रकारिता दिवस का मान बढ़ाया भोपाल-इंदौर ने

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30 मई हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर विशेष

एक पत्रकार के लिए आत्मसम्मान सबसे बड़ी पूंजी होती है और जब किसी पत्रकार को अपनी यह पूंजी गंवानी पड़े या गिरवी रखना पड़े तो उसकी मनःस्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है। फिर आप किसी भी पत्रकार के लिए कोई दिन-दिवस मनाते रहिए, सब बेमानी है। हर साल हिंदी पत्रकारिता दिवस 30 मई को मनाते हैं। यह हमारे स्वाभिमान का दिवस है। हिन्दी की श्रेष्ठता का दिवस। अंग्रेजों को देश निकाला देने का हिन्दी पत्रकारिता का गौरव दिवस, लेकिन साल-दर-साल हिन्दी पत्रकारिता क्षरित होती रही, इसमें भी कोई दो राय नहीं है। हालांकि भारत के एक बड़े वर्ग की आवाज आजादी से लेकर अब तक हिन्दी पत्रकारिता रही है और शायद आगे भी हिन्दी पत्रकारिता का ओज बना रहेगा। हिन्दी पत्रकारिता का वैभव अमर रहे, यह हम सबकी कोशिश होती है और होनी भी चाहिए, लेकिन हिन्दी के पत्रकारों की दशा दयनीय होती जा रही है। इस पर चिंता की जानी चाहिए। यह शायद पहली पहली बार हो रहा होगा जब हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर भोपाल और इंदौर के पत्रकारों ने ऐसी पहल की कि हिन्दी के पत्रकारों का आत्मसम्मान भी कायम रहा और आर्थिक दिक्कतों से भी राहत महसूस हुई। आजादी के बाद हिन्दी पत्रकारिता दिवस का गौरव कायम रखने में भोपाल और इंदौर के पत्रकारों ने जो कार्य किया, वह वंदनीय है, अभिनंदनीय है।

कोरोना ने सभी सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया है। एक साल में कोरोना के दो बार हमले ने जैसे जिंदगी को शून्य से शुरू करने के लिए मजबूर कर दिया है। दूसरे प्रोफेशन के लोगों के पास आर्थिक संबल था और वे कम से कम गिरे नहीं। तनाव और परेशानियां उनके हिस्से में भी रही लेकिन पत्रकारों को जिन मुसीबतों का सामना करना पड़ा या पड़ रहा है, वह अकथ कथा है। एक तरफ अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिए जान दांव पर लगाना तो दूसरी तरफ परिवार की जरूरत को पूरी करने के लिए या खुद की जिंदगी दांव पर लग जाए तो आर्थिक संबल नहीं मिल पाने का संकट. सरकार और सत्ता के सामने गिड़गिड़ाना या झुकना मंजूर नहीं और जिन संस्थानों के लिए कार्य कर रहे हैं, वे इस तरफ से लगभग आंखें मींचे हुए हैं। आत्मसम्मान कायम रहे और संकट का समाधान भी मिले, यह एक चुनौतीपूर्ण टॉस्क था। विवेकानंद जी ने कहा है कि जीते जी खुद का बोझ खुद को उठाना पड़ेगा और मरने के बाद चार कंधे तो मिल जाएंगे। इसे आप समस्या है तो समाधान है कि नजर से भी देख सकते हैं।

तकरीबन आठ वर्ष पहले पत्रकारों के एक समूह ने इस बात पर विमर्श किया कि पत्रकारों के हेल्थ को लेकर आर्थिक सुरक्षा कैसे दी जाए। इस सोच के साथ ‘भोपाल हेल्थ केयर सोसायटी’ का जन्म हुआ. सदस्य पत्रकारों से एक हजार रुपये वार्षिक सदस्यता का प्रावधान रखा गया था, जिसे बाद में घटाकर 5सौ रुपये कर दिया गया। भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार और संस्था के गार्जियन डॉ. सुरेश मेहरोत्रा लगातार बड़ा आर्थिक योगदान करते रहे हैं। सोसायटी के नियमानुसार किसी भी पत्रकार को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए अन्य पत्रकारों की सहमति जरूरी है। संभवतः देश में अपनी तरह की इस इकलौती संस्था ने दिवंगत पत्रकारों को बिना किसी बड़ी औपचारिकता के दो लाख की राशि उपलब्ध कराई है। अन्य स्थितियों पर निर्भर करते हुए 15 हजार से एक लाख तक की राशि का सहयोग सदस्यों को मिलता रहा है। इस कोरोना काल में तो सोसायटी ने आगे बढकर पत्रकारों को आर्थिक सहायता दी।

एक नई क्षेत्रीय पार्टी बनाने का फैसला

भोपाल के पत्रकारों की पहल के बाद इंदौर के पत्रकारों ने कोरोना काल में पत्रकारों को आर्थिक मदद के साथ स्वास्थ्यगत सुविधा दिलाने के लिए प्रयास शुरू किए। आईएमयू (इंदौर मीडिया यूनाइटेड) नाम से संस्था बनाकर जरूरतमंद पत्रकारों को ना केवल आर्थिक सहायता दी गई। बल्कि कोरोना पीडि़त पत्रकारों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने में यथासंभव सहयोग किया गया। आईएमयू वाट्सअप गु्रप पर प्रतिदिन बुलेटिन जारी कर पत्रकारों की स्वास्थ्य की जानकारी प्रदान करता रहा। यह पहल अनोखी थी। आईएमयू की पहल से बड़ी संख्या में स्वास्थ्य लाभ ना केवल पत्रकारों को मिला, बल्कि उनके परिजनों को भी इसका लाभ मिला। ऐसे संकटकाल में आईएमयू संकटमोचक बनकर पत्रकारों की जीवन रक्षक का दायित्व निभाता रहा।

मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने चिंता कर पहले अधिमान्य पत्रकारों को कोरोना पीडि़त होने की दशा में राज्य शासन की ओर से सहूलियत देने का ऐलान किया था। बाद में इसका विस्तार कर गैर-अधिमान्य पत्रकारों को भी इस योजना में शामिल कर लिया गया। कहना ना होगा कि कोरोना काल में पत्रकारों के हितचिंतक के रूप में संचालक जनसंपर्क आशुतोष प्रतापसिंह उपस्थित रहे। पीडि़त पत्रकारों को अस्पताल में बेड दिलाने, दवा-इंजेक्शन से लेकर ऑक्सीजन और वेंटिलेटर के इंतजाम की भरसक कोशिश करते रहे। सबसे बड़ी बात यह रही कि अपनी व्यस्तता के बाद भी व्यक्तिगत रूप से पीडि़त पत्रकार और उनके परिजनों को फोन कर उनकी खैरियत पता करते रहे। अपने इस दायित्व में सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि आशुतोष प्रताप सिंह ने छोटे-बड़े पत्रकारों में भेद ना करते हुए सभी से बात की। जनसंपर्क की छवि सुधारने और शासन से मीडिया के दोस्ताना रिश्ते को मजबूत करने में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं संचालक जनसंपर्क की विशेष भूमिका रही। किसी भी राज्य में इस तरह की पहल करने वाला भी शायद मध्यप्रदेश ही इकलौता राज्य है।

कोरोना ने रिश्तों का ताना-बाना तोड़ा तो नए और मजबूत रिश्तों का श्रीगणेश भी किया। हिन्दी पट्टी के पत्रकारों को पहली बार एक नए अनुभव से सामना हुआ। इसका श्रेय मध्यप्रदेश में भोपाल की ‘जर्नलिस्ट हेल्थ केयर सोसायटी’ और इंदौर की आईएमयू (इंदौर मीडिया यूनाइटेड) को जाता है। पत्रकार सामूहिक पहल करें तो सोसायटी उनकी मदद के लिए आगे आती है, यह बात भोपाल-इंदौर ने स्थापित कर दिया है. इस तरह की पहल देश के हर राज्य और शहर में किए जाने की आवश्यकता है ताकि पत्रकारिता पर आंच ना आए और पत्रकारों का आत्मस्वाभिमान कायम रहे। इस बार दिल से हिन्दी पत्रकारिता दिवस की जय बोलिये।

मनोज कुमार
वरिष्ठ पत्रकार व लेखक

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