प्राकृतिक खेती ने पूर्व सैनिक को किया खुशहाल

801

हमीरपुर, 13 जून। जय जवान जय किसान के नारे को एक लड़ी में पिरोते हुए सुजानपुर क्षेत्र के एक पूर्व सैनिक ने लगभग तीन दशकों तक सीमाओं की रक्षा करने के बाद अब कृषि के माध्यम से प्राकृतिक खेती कर देश सेवा का कार्य आगे बढ़ाया है। इसमें उनकी सहायक बनी है प्रदेश सरकार की प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना।
हम बात कर रहे हैं री क्षेत्र के जलेर गांव निवासी रतन चंद पुत्र सुंरू राम की। लगभग 62 वर्षीय रतन चंद का गाँव विकास खंड सुजानपुर से 18 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। सुजानपुर महाराजा संसार चंद की वीर भूमि में बसा है। इस खण्ड में 20 पंचायतें और 172 गाँव हैं। इसकी सीमा जिला काँगड़ा और मंडी से सटी हैं। यहाँ के ज्यादातर किसान लघु व सीमांत हैं और अधिकतर किसान कृषि कार्य करते हैं।

धान की वैकल्पिक खेती करने पर मिलेगी प्रोत्साहन राशि


वर्ष 1975 में रतन चंद सेना में भर्ती हुए और लगभग तीन दशकों तक देश सेवा करने के बाद साल 2003 में सेवानिवृत्त हुए। उसके पश्चात पुश्तैनी जमीन पर खेती-बाड़ी का कार्य प्रारम्भ किया। कृषि कार्य में रूचि बढ़ने लगी तो कृषि विभाग के संपर्क में आये और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी मिली। फसलों की सिंचाई के लिए इन्होंने नाले के पानी को पंप से उठा कर एक टैंक में इकट्ठा करके उचित समय पर प्रयोग में लाया और पानी के बचाव के लिए ड्रिप व स्प्रिंक्लर सिंचाई की विधि अपनायी।
सेवानिवृत्ति के बाद से ही इन्होंने कृषि को प्राथमिकता दी और इसे व्यवसाय के रूप में ग्रहण किया। रतन चंद ने कृषि विभाग के साथ लगातार संपर्क बनाये रखा। वर्ष 2018 में उन्हें कृषि विभाग (आत्मा), विकास खण्ड सुजानपुर से पद्मश्री सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती संबंधी प्रशिक्षण की जानकारी प्राप्त हुई। इसके तहत 6 दिन का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद इसी विधि से खेती-बाड़ी शुरू की। उनका कहना है कि इससे उनके खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ गई और बिना किसी बाहरी (रासायनिक खाद/कीटनाशक) उपयोग के पहले से कहीं अधिक उपज प्राप्त हुई। इस विधि से उनकी कृषि लागत कम व कृषि आवत अधिक प्राप्त हुई।
इनके पास लगभग 20 कनाल जमीन है, जिसमें से 5 कनाल में वे सब्जी व अनाज वाली फसलों का उत्पादन करते हैं। इनमें खीरा, करेला, घिया, मटर, शलजम, आलू, लहसुन, अदरक, गेंहू, चना, सरसों इत्यादि शामिल हैं। भिन्डी, मक्की, माश, तिल की फसल के साथ-साथ इन्होंने खेत में नींबू, गलगल, आम, अनार इत्यादि के पौधे भी लगा रखे हैं।
उन्होंने कृषि विभाग (आत्मा) द्वारा आयोजित विभिन्न प्रशिक्षण शिविर, प्रदर्शन प्लॉट, किसान गोष्ठी, भ्रमण आदि में भाग लेकर नयी व आधुनिक कृषि तकनीकों का ज्ञान प्राप्त किया। अब उन्नत कृषि यन्त्रों का उपयोग करके अपने उत्पादन में बढ़ोतरी कर रहे हैं। इनके पास एक देसी गाय भी है, जो सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के अंतर्गत अनुदान पर दी गई है। यह गाय प्रतिदिन लगभग 8 लीटर तक दूध देती है। गाय का फर्श पक्का करने व संशाधन भंडार करने के लिए इन्हें अनुदान दिया गया।
रतन चंद कहते हैं कि कृषि विभाग की आत्मा, परियोजना किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के तहत प्राप्त प्रशिक्षण की जानकारी अपने आस-पास की पंचायतों के विभिन्न गाँवों में जाकर लोगों को प्रदान कर रहे हैं जिससे कई और लोग इस खेती से जुड़ने में रूचि दिखा रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here