- पांच साल में 798 गर्भवती और 3295 शिशुओं की हुई मौत
- पिछले एक साल में 772 नवजात की हुई मौत
ये आंकड़े हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलते हैं। हिजाब और पट्टा पहनने पर देश में बहस हो रही है। हमें वोटों की फसल काटने के लिए लड़ाया जा रहा है। जबकि हम कभी स्वास्थ्य सेवाओं के कारण दम तोड़ देते हैं तो कोई बेरोजगारी के कारण जान दे देता है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा कागजी है। उत्तराखंड के पहाड़ों में भी बेटियों को गर्भ में ही कत्ल कर दिया जा रहा है। तो लचर स्वास्थ्य सेवाओं के कारण हर साल सैकड़ों गर्भवती महिलाएं और नवजात शिशु दम तोड़ रहे हैं।
पिथौरागढ़ के एक आरटीआई एक्टिविस्ट शिवम के अनुसार आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक 13 जिलों में 2016-17 से 2020-21 तक मातृ मृत्यु दर में 122.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। और इसी अवधि में नवजात मृत्यु दर में 238 प्रतिशत की वृद्धि हुई। ’आंकड़ों में बताया गया है कि इस अवधि में उत्तराखंड में कुल 798 महिलाओं की गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं के कारण मौत हो गई।
राज्य में 2016-17 में 84 महिलाओं की मौत गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं के कारण हुई और यह संख्या 2020-21 में बढ़कर 187 हो गई। शिवम के अनुसार कि राज्य में 2016-2017 में 228 नवजात की मौत हुई थी और 2020-21 में यह संख्या बढ़कर 772 हो गई. आरटीआई के अनुसार, 2016 से 2021 तक राज्य में कुल 3,295 शिशुओं की मौत हुई। जिनमें से नैनीताल में सर्वाधिक 402 शिशुओं की मौत हुई. इसके अलावा इस अवधि में गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं के कारण सर्वाधिक 230 महिलाओं की मौत हरिद्वार जिले में हुई।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]