जिन लोगों को लगता है कि अग्निवीर योजना बहुत अच्छी है। तो मैं बता दूं, ये वो लोग हैं जिनके बच्चे कभी सेना में अग्निवीर के तौर पर नहीं जाएंगे। इनको सही मायने में पता नहीं कि पर्वतीय जिलों के उन लाखों बच्चों का भविष्य तबाह हो रहा है जो गांव की पगडंडियों पर रोजाना सुबह इसलिए मीलों दौड़ते हैं कि सेना में नौकरी मिल गयी तो जीवन सफल, नहीं तो शहरों के होटलों में बर्तन-भांडे मांजने पड़ेंगे। क्योंकि पहाड़ में अधिकांश वही लोग रह गये है जो अपने बच्चों को उच्च शिक्षा या वोकेशनल शिक्षा नहीं दिया पा रहे।
इसके बावजूद जिनके पास अग्निवीर योजना के समर्थन में तर्क हैं वो लोग कोटद्वार के गब्बर सिंह मैदान में पहुंचे। वहां देंखे। 350 बच्चों को एक साथ दौड़ाया जा रहा है। लिए जा रहे दस। पहले 150-200 बच्चे दौड़ाए जाते थे। 1600 मीटर की दौड़ 5 मिनट 40 सेकेंड में पूरी करनी है। लेकिन आरोप है कि जैसे ही दस बच्चों का नंबर आ रहा है। रस्सी खींच दी जा रही है। हाइट 163 होनी चाहिए लेकिन कई अभ्यर्थियों का आरोप, हाइट 166 के आधार पर लिया जा रहा है। कोरोना के नाम पर भी कई अभ्यर्थियों को लौटा दिया गया। यह भी बता दूं कि तय है कि अग्निवीरों की भर्ती में भारी कटौती होगी। यानी यदि पहले गढ़वालियों के लिए एक साल में 1000 जवानों की भर्ती होती थी तो अब 650 ही होगी। भर्ती की मीडिया कवरेज पर रोक है।
कुल मिलाकर रक्षा बजट में कमी के लिए पहाड़ के बच्चो के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]