‘गणतंत्र अभिव्यक्ति भारतीय ही नहीं वैश्विक है’

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नई दिल्ली, 26 जनवरी। द्वारका के उत्थान फाउंडेशन के तत्वावधान में आज गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में अंतरराष्ट्रीय वेबिनार, ‘गणतंत्र भारत की साहित्यिक अभिव्यक्ति’- विषय पर चर्चा, संस्मरण और काव्य पाठ आयोजित किया गया। संचालिका अरूणा घवाना ने कहा कि गणतंत्र भारत के हिन्दी साहित्य में यानि 1950 के बाद साहित्य में काफी बदलाव देखा गया। सह-आयोजक तरूण घवाना ने साझा किया कि भारत से इतर 14 देश के वक्ताओं ने इस वेबिनार की अंतरराष्ट्रीय व्यापकता को सार्थक किया।

जूम मीट पर आयोजित इस वेबिनार की अध्यक्ष कनाडा से वसुधा पत्रिका की संपादिका डॉ स्नेह ठाकुर रहीं। उन्होंने कहा कि भारतीयों को क्षेत्रीयता व जाति भेद से ऊपर उठकर काम करना चाहिए। यही सबके हित में है।
दिल्ली विश्वविद्यालय से एसोसिएट प्रोफेसर डॉ बिजेन्द्र कुमार ने कहा कि साहित्य का लक्ष्य विश्व कल्याण ही होना चाहिए।


यूएसए से “अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य प्रवाह” की संस्थापिका डॉ मीरा सिंह, पोलैंड से मैटीरियल साइंस के वैज्ञानिक डॉ संतोष तिवारी, सिड्नी से हिन्दी शिक्षिका श्रद्धा दास, चीन के क्वान्ग्तोंग विश्वविद्यालय से जुड़े एसिस्टेंड प्रोफेसर डॉ विवेक मणि त्रिपाठी और यूएई से अदिति किशोर ने काव्य पाठ कर सबका मन मोह लिया।

यूके से लेखनी पत्रिका की संपादिका शैल अग्रवाल ने कहा कि साहित्य में कही बातें शब्दों में व्यक्त होकर रह जाती हैं। इन्हें अमल में लाना भी जरूरी है।
स्वीडन से इंडो स्कैंडिक संस्था के वाइस प्रेसिडेंट सुरेश पांडेय और नार्वे से गुरू शर्मा ने काव्य पाठ किया। श्रीलंका से डॉ अनुषा सलवतर ने साहित्यकार शिवानी गौरा पंत पर किए गए शोध को साझा किया।
मॉरीशस से हिन्दी लेखक शंभू नाथ ने कहा कि भारत का गणतंत्र दिवस भारत का ही नहीं, हम भारत से बाहर रह रहे लोगों का भी पर्व है। मॉरीशस की संस्कृति व साहित्य पर भारत की छाप का वर्णन किया। फीजी से प्राध्यापक मनीषा रामरक्खा ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत कर वहां पढ़ाए जा रहे भारतीय साहित्य का भी जिक्र किया। साथ ही फीजी में अयोध्या प्रसाद शर्मा द्वारा किए गए काम साझा किए। सूरीनाम से लैला लालाराम, ने काव्य पाठ किया और बताया कि वहां अभी भी सुभाष चंद्र बोस के प्रति लोगों के मन में सम्मान है, इस कारण वे अपने बच्चों का नाम भी ‘सुभाष’ रख देते हैं।त्रिनिदाद-टोबैगो से भारतीय संस्कार व संस्कृति की पुरोहित व संगीताचार्य रुकमिणी होल्लास ने अपने मधुर स्वर में काव्य पाठ किया।

‘हिन्दी के लिए समर्पण भाव जरूरी’

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