शिक्षा ऐसी हो जो छात्रों को आत्मनिर्भर बनाए और चरित्र व व्यक्तित्व निर्माण करे: राष्‍ट्रपति

46

शिक्षा ऐसी हो जो छात्रों को आत्मनिर्भर बनाए और चरित्र व व्यक्तित्व निर्माण करे: राष्‍ट्रपति

धर्मशाला (कांगड़ा), 6 मई। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने धर्मशाला में हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के 7वें दीक्षांत समारोह में भाग लिया। इस अवसर पर अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। लेकिन, अतीत में बदलाव की गति इतनी तेज नहीं थी। आज हम चौथी औद्योगिक क्रांति के युग में हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग जैसे नए क्षेत्र तेजी से उभर रहे हैं। परिवर्तन की गति और परिमाण दोनों ही बहुत अधिक हैं, जिसके कारण प्रौद्योगिकी और आवश्यक कौशल बहुत तेजी से बदल रहे हैं। 21वीं सदी की शुरुआत में कोई नहीं जानता था कि अगले 20 या 25 वर्षों में लोगों को किस तरह के कौशल की आवश्यकता होगी।

उन्‍होंने कहा कि इसी तरह, कई मौजूदा कौशल अब भविष्य में उपयोगी नहीं रहेंगे। इसलिए हमें लगातार नए कौशल अपनाने होंगे। हमारा ध्यान लचीला दिमाग विकसित करने पर होना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी तेजी से हो रहे बदलावों के साथ तालमेल बिठा सके। हमें छात्रों में सीखने की जिज्ञासा और इच्छा को मजबूत कर उन्हें 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना होगा।

शिक्षकों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो छात्रों को शिक्षित करने के साथ-साथ उन्हें आत्मनिर्भर बनाए और उनके चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करे। शिक्षा का उद्देश्य छात्रों में अपनी संस्कृति, परंपरा और सभ्यता के प्रति जागरूकता लाना भी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस संबंध में शिक्षकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। उनका कार्य क्षेत्र केवल शिक्षण तक ही सीमित नहीं है, उन पर देश के भविष्य के निर्माण की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा ध्यान क्या सीखें के साथ-साथ कैसे सीखें पर भी होना चाहिए। उन्होंने रेखांकित किया कि जब छात्र बिना किसी तनाव के स्वतंत्र रूप से सीखते हैं, तो उनकी रचनात्मकता और कल्पना को उड़ान मिलती है। ऐसे में वे शिक्षा को सिर्फ आजीविका का पर्याय नहीं मानते. बल्कि, वे नवप्रवर्तन करते हैं, समस्याओं का समाधान ढूंढते हैं और जिज्ञासा के साथ सीखते हैं।

छात्रों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि हर व्यक्ति में अच्छाई और बुराई दोनों की क्षमता होती है। उन्होंने उन्हें यह ध्यान रखने की सलाह दी कि चाहे वे कितनी भी कठिन परिस्थिति में क्यों न हों, उन्हें कभी भी बुराई को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। उन्हें सदैव अच्छाई का पक्ष लेना चाहिए। उन्होंने करुणा, कर्तव्यनिष्ठा और संवेदनशीलता जैसे मानवीय मूल्यों को अपना आदर्श बनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि इन मूल्यों के आधार पर वे एक सफल और सार्थक जीवन जी सकते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि युवाओं में विकास की अपार संभावनाएं हैं। वे विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी हैं। अतः उन्हें स्वयं को राष्ट्र के प्रति समर्पित कर देना चाहिए। यह न केवल उनका मानवीय, सामाजिक और नैतिक कर्तव्य है बल्कि एक नागरिक के रूप में भी उनका कर्तव्य है। इस समारोह के बाद राष्‍ट्रपति ने चामुंडा माता मंदिर में माथा टेका और आरती की। साथ ही मंदिर परिसर में मौजूद प्राचिन शिव मंदिर में भी पूजा अर्चना की।

राष्ट्रपति ने राज्यपाल को डाक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की

राष्ट्रपति ने दीक्षांत समारोह में बतौर अति विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को प्रदेशवासियों की ओर से हिमाचल पधारने पर स्वागत किया। उन्होंने उपाधि प्राप्त करने वालों को बधाई देते हुए कहा कि दीक्षांत समारोह वह यादगार क्षण है, जो भविष्य में और प्रगति करने के लिए इस उच्च संस्थान के विशेष योगदान का स्मरण करवाता है। यह क्षण सृजनात्मकता, ज्ञान व आजीवन शिक्षा प्राप्ति की सतत् आकांक्षा की शुरूआत है। उन्होंने कहा कि उपाधि एवं पदक प्राप्त करने वाले सभी छात्र-छात्राओं के लिए आज आत्ममन्थन का दिन भी है। वे अपनी अभी तक की चुनौतियों और उपलब्धियों पर दृष्टि डालें और विचार करें कि यहां तक की उनकी यात्रा कैसी रही। उन्होंने कहा कि यह अपनी दुर्बलताओं और श्रेष्ठताओं को पुनः पहचानने का समय है।

शुक्ल ने कहा कि उपाधि प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं और मेडल विजताओं की समाज, राष्ट्र और राज्य के प्रति एक अहम् भूमिका है, जिसे उन्हें पूरी निष्ठा के साथ निभाना होगा। उन्होंने कहा कि उन्होंने जो विश्वविद्यालय से अर्जित किया है वह समाज के हितसाधन में काम आएगा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय जैसे उच्च शिक्षण संस्थान ही मानवीय मूल्यों को स्थापित कर सकते हैं तथा नैतिक मूल्यों और उच्च आदर्शों के द्वारा ही भारत की ज्ञान-चेतना को पुनः प्राप्त किया जा सकता है।

राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा का महत्त्व जीवन को सोद्देश्यपूर्ण चरितार्थ करने में है। दूसरों के लिए स्वयं के हितों का त्याग करने में है। उन्होंने कहा कि जब तक स्वार्थ की बलिवेदी पर परमार्थ की ज्योति प्रकाशित नहीं होगी, श्रेष्ठ भारत का स्वरूप हमारे सामने नहीं आ सकता। उन्होंने कहा कि शिक्षकों का दायित्व बहुत बड़ा और समाज पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला होता है। शिक्षक ही वह धूरी है, जिसके चारों तरफ शिक्षित एवं सुसंस्कृत समाज की नई पौध तैयार होती है। उन्होंने कहा कि शिक्षक अपने विद्यार्थियों को इस तरह अच्छे सांचे में ढ़ालें ताकि वे समाज में एक सुशिक्षित, ईमानदार, सुसंस्कृत और जागरुक नागरिक की भूमिका निभा सकें।

उन्होंने कहा कि मौजूदा परिप्रेक्ष्य में विद्यार्थियों को अपने कार्यों में तेजी व गुणवत्ता लाने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए। इसके लिए ई-शिक्षा तथा तकनीकी विचार-विमर्श पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि शिक्षा, अनुसंधान व विस्तार के क्षेत्रों में नई ऊंचाइयां प्राप्त करने के लिए प्रतिस्पर्धात्मक भावना को बढ़ावा देना होगा ताकि इस विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद हमारे डिग्रीधारक विश्वभर में अपने आप को स्थापित कर सकें।

इस अवसर पर, भारत की माननीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल को डाक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की। इस मौके पर प्रदेश सरकार की ओर से कृषि मंत्री चंद्र कुमार भी मौजूद रहे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here