यूकेडी बने ध्वजारोहक, सभी दल हों एक छतरी के नीचे

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  • ऐरी, भट्ट, जंतवाल, पंवार को घर बिठाना बहुत जरूरी
  • मोहन काला, पुष्पेश, सेमवाल, मोहित डिमरी या मीनाक्षी को मिले कमान

यूकेडी और अन्य क्षेत्रीय दलों के लिए अब करो या मरो की स्थिति है। 2022 सडन डेथ का सवाल है। ऐसे में यूकेडी और अन्य क्षेत्रीय दलों को चाहिए कि वो एकजुट हो जाएं। पूर्व कमिश्नर पांगती, कर्नल देव डिमरी, जनरल लखेड़ा क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने में जुटे हैं। यह मुहिम तेज होनी चाहिए और अगले कुछ दिनों में ही सभी क्षेत्रीय दलों को एक छतरी के नीचे आना चाहिए। क्षेत्रीय दलों को यूकेडी को ध्वजारोहक बनाने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए भले ही वो अपने-अपने पार्टी के निशान से ही चुनाव लड़ें। यूकेडी इसलिए कि पुराना और आंदोलनकारी दल है। यदि सब साथ होंगे तो प्रचार-प्रसार में अधिक समस्या नहीं आएगी।
राजनीति में गठबंधन कोई नई बात नहीं है। सपा-बसपा सत्ता के लिए बुआ और भतीजे का रिश्ता बना लेते हैं। भाजपा-बसपा सत्ता के लिए रक्षाबंधन का त्योहार मनाते हैं। हाल में यूपी की अनुप्रिया को मोदी ने कितना महत्व दिया है, तो ऐसा क्या है कि क्षेत्रीय दल एकजुट नहीं हो सकते। चला लो अलग-अगल दुकानदारी, लेकिन यह तभी चलेगी जब यह संदेश दे सकोगे कि हमारे पीछे भी जनता है। एक लकड़ी तोड़ने और पांच लकड़ियों को एकसाथ तोड़ने में अंतर होता है।
नि:संदेह, दिवाकर भट्ट और काशी सिंह ऐरी का उत्तराखंड के गठन में अविस्मरणीय योगदान है। वो इतिहास में दर्ज होगा। लेकिन दिवाकर भट्ट और ये टीम यूकेडी और जनता के बीच में बहुत बड़ी रुकावट है। क्या आडवाणी के योगदान को कमतर आंका जा सकता है, लेकिन अब वो आराम कर रहे हैं। मोदी जी ने उन्हें पूर्ण विश्राम दिया है। दिवाकर भट्ट और उनकी बुजुर्ग हो चुकी टीम को विश्राम देना ही होगा। ऐसे तो वो मानेंगे नहीं, विरोध करने का साहस होना चाहिए। महात्मा गांधी का भी कांग्रेस में विरोध हुआ था। चाहे मौलाना आजाद ने किया या खुद उनके बेटे हरि ने। राजनीति में किसी को ढोकर आगे नहीं बढ़ा जा सकता है। भट्ट और ये छह नेताओं को जबरदस्ती घर बिठा दो। पुष्पेश त्रिपाठी, मोहन काला, शिव प्रसाद सेमवाल, मोहित डिमरी, मीनाक्षी घिडिल्याल या कुछ और नेता हैं जो कुछ करना चाहते है, उन्हें मौका दो।
क्षेत्रीय दलों में भी देवेश्वर भट्ट, पीसी तिवारी, प्रभात ध्यानी समेत कई ऐसे चेहरे हैं जिनकी जनता में साख है। इनको लेकर गठबंधन में समन्वय समिति बनायी जा सकती है। कामन मिनिमन एजेंडा हो सकता है। विचारणीय यह है कि क्षेत्रीय दल भाजपा, कांग्रेस या आम आदमी पार्टी को महज सोशल मीडिया या मीडिया में ही कोसना चाहती हैं या धरातल पर कुछ करें भी। विधानसभा चुनाव के लिए 225 दिन ही बचे हैं। यदि अब भी नहीं संभले तो फिर संभलने का मौका नहीं मिलेगा। इतिहास गवाह है कि जो लड़ते नहीं हैं, जूझते नहीं हैं, वो गुमनाम हो जाते हैं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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