- मातृशक्ति और युवा शक्ति दोनों को नहीं मिलता महत्व
- 20 साल में एक भी महिला नेता को उभरने नहीं दिया गया
चुनाव आयोग के पास उत्तराखंड में 56 पंजीकृत क्षेत्रीय दल हैं, लेकिन दो-तीन दलों को छोड़कर पिछले चार साल में एक भी दल नजर नहीं आया। हां, सल्ट चुनाव में दो-तीन क्षेत्रीय दल चुनाव में उतरे। फिर गायब हो गये। यानी अधिकांश क्षेत्रीय दल सीजनल हैं और चुनाव के समय ही दिखाई देते हैं। ऐसे में उनका जनाधार क्या होगा, यह विचारणीय है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि किसी भी क्षेत्रीय दल की अध्यक्ष महिला नहीं है। संभवत: यदि राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने हम सबकी पार्टी के नाम से जो दल बनाया है वो पंजीकृत हो जाता है तो वह प्रदेश की पहली पार्टी होगी जिसकी अध्यक्ष महिला होगी।
यूकेडी के अध्यक्ष पद का चुनाव जुलाई में हो सकता है। यदि इस पार्टी को रिवाइव करना है तो अंबूजा सीमेंट रूपी नेताओं से छुटकारा पाना होगा। उन्हें संरक्षक मंडल में रखकर नये सिरे से पार्टी संगठन करना होगा। इसकी संभावनाएं लगभग शून्य प्रतिशत हैं। एक फेसबुकिया इंटरव्यू में सुना कि अध्यक्ष से जब एक नेता के बारे में पूछा गया कि क्या वो अध्यक्ष पद की होड़ में हैं तो तपाक से जवाब मिला कि ग्राम प्रधानी का चुनाव जीत नहीं सकता तो अध्यक्ष कैसे बनेगा? यानी संकेत साफ हैं अंबूजा सीमेंट से छह नेताओं द्वारा बनाई गयी दीवार नहीं टूटेगी। जब तक किसी को मौका नहीं मिलता तो वह साबित करेगा कैसे?
मैं बच्चा था लेकिन याद आज भी है। पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से एचकेएल भगत कांग्रेस के उम्मीदवार थे और उनके सामने चुनाव में खड़े थे बहुजन समाज पार्टी के कांशीराम। लोकसभा चुनाव में कांशीराम को दो हजार वोट भी नहीं मिले। लेकिन उनकी पार्टी चल निकली। बसपा की सफलता के पीछे मायावती और कांशीराम का हाथ और दिमाग था। मौका मिलेगा तो साबित भी होगा। जब मौका ही नहीं मिलेगा तो प्रतिभा और मेहनत कुंठित होगी ही। यूकेडी की हाफ दर्जन ब्रिगेड ने लेजर बीम से डिफेंस लाइन बनाई है कि उसे कोई पार नहीं कर सकता। भारतीय राजनीति में महिलाओं ने साबित किया है कि वो अच्छी नेता साबित होती हैं। ताजा उदाहरण ममता बनर्जी हैं।
जब यूकेडी अति कुपोषित है तो क्या बुरा है कि इसकी कमान किसी महिला को सौंप दी जाएं। क्या पता मातृशक्ति इस अतिकुपोषित पार्टी में जान डाल दें। वैसे भी यूकेडी में प्रमिला रावत, मीनाक्षी घिडिल्याल, पूनम टम्टा जैसी कर्मठ महिलाएं हैं। राज्य आंदोलन भी महिलाओं की बदौलत ही चला लेकिन दुर्भाग्य है कि क्षेत्रीय दलों ने महिलाओं को वो सम्मान नहीं दिया जिसकी वो हकदार हैं। यही हाल उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी का है। पीसी तिवारी वर्षों से अध्यक्ष पद पर काबिज हैं और किसी और को मौका ही नहीं देते। उत्तराखंड प्रगतिशील पार्टी, नवनिर्वाण पार्टी, उत्तराखंड रक्षा मोर्चा (विलय), सर्वजन स्वराज पार्टी, भारतीय सर्वोदय पार्टी, पिरामिड आफ उत्तराखंड, भ्रष्टाचार का अंत पार्टी समेत कई दल हैं। अब चुनाव आने वाले हैं तो ये क्षेत्रीय दल भी बाहर निकलेंगे। ऐसी उम्मीद है।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]