हिन्दी के साथ जुड़ा है गौरव

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नई दिल्ली, 14 सितंबर। राष्ट्रीय हिन्दी दिवस के अवसर पर आज उत्थान फ़ाउंडेशन द्वारका ने ‘वैश्विक हिन्दी की साहित्यिक बिन्दी’ विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया। वेबिनार के सह-आयोजक तरुण घवाना ने बताया कि हिन्दी की लोकप्रियता का आलम यह है कि इस वेबिनार में भारत समेत 17 देशों के हिन्दी प्रेमियों ने भाग लिया।
वेबिनार की आयोजिका व संचालिका अरूणा घवाना ने हिन्दी को व्यवहारिक तौर पर इस्तेमाल करने पर बल दिया।

वेबिनार की अध्यक्षता भारत से जाने-माने भाषाविद डॉ. विमलेश कांति वर्मा ने की। उन्होंने कहा कि मनुष्य माँ, मातृभूमि और मातृभाषा कभी नहीं भूलता।
आस्ट्रेलिया से वेबिनार की अतिथि वक्ता व इंडियन लिटरेरी एंड आर्ट सोसायटी ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया की संस्थापिका रेखा राजवंशी ने कहा कि हिन्दी की स्थिति बेहतर हो रही है, इसका सबूत दोनों देशों के बीच बढ़ते व्यापार और संबंध हैं।
त्रिनिदाद-टुबैगो से द्वितीय सचिव शिव कुमार निगम ने अनुवाद और साहित्य पर अपना वक्तव्य रखा। यहीं से रुकमिणी होल्लास ने काव्य प्रस्तुति के साथ मधुर गीत गाकर समा बाँध दिया। पुर्तगाल से प्रोफ़ेसर शिवकुमार सिह ने कहा कि हिन्दी को व्यवहार में लाने की जरूरत है।


उज़्बेकिस्तान से प्रोफ़ेसर उल्फ़त मुखीबोवा ने वहाँ हिन्दी की स्थिति को बेहतर बताया। साथ ही साझा किया कि वर्ष-दर-वर्ष हिन्दी पढ़ने वाले छात्रों की संख्या भी बढ़ रही है। न्यूज़ीलैंड से मैसी विश्वविद्यालय की निदेशक डॉ पुष्पा वुड ने अपनी मातृभाषा से प्रेम करने की ज़रूरत पर बल दिया।
चीन के क्वान्ग्तोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय से डॉ विवेकमणि त्रिपाठी ने वहाँ हिन्दी की बेहतर स्थिति की बात साझा की। हिन्दी में ज्ञान, रोज़गार, शोध आदि कार्य जोरों पर है।
यूके से शैल अग्रवाल मानती हैं कि हिन्दी के साथ स्वयं को गौरवान्वित महसूस करने की ज़रूरत है। कनाडा से डॉ स्नेह ठाकुर ने प्रवासी हिन्दी साहित्य के संदर्भ में सीता के संदर्भ में पाठ किया।
मॉरीशस से शंभू धनराज ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए साहित्य संपूर्ण मानव जाति के हित की बात करता है। दक्षिण कोरिया से वैज्ञानिक अजय निंबाळकर ने काव्य रचना प्रस्तुत कर मन मोह लिया। नीदरलैंड से कृष्णकुमारी जरबंधन और सूरीनाम से लैलावती ने काव्य पाठ किया।
स्वीडन से इंडो-स्कैंडिक संस्थान के वाइस प्रेज़िडेंट सुरेश पांडेय और नार्वे से गुरू ने काव्य प्रस्तुति की। दुबई से मंजू ने काव्य पाठ किया पेश किया। वहीं सिंगापुर से आराधना झा ने साहित्य की परिभाषा के साथ काव्य प्रस्तुति से समां बाँध दिया।

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