न कटाक्ष कर
न प्रहार कर
न हंसी उड़ा
न परिहास कर
विश्व संकट का दौर है
तू सीमाओं से पार चल
गिराने को जो आए पत्थर
किनारे रख आगे चल पगडंडियों का काम कर
वसुदेव कुटुंबकम् है अगर
तो न जातियों से पहचान कर
हो जाए सबका भला
भव्तु सब् मंगल् वाला काम कर
न हाथ छू
न साथ छोड़
वंड के छक
तो मिलेगा और
न डर के जी
मुस्करा जरा
छंटेगा अंधेरा
आएगी भौंर …
(कैलाश जीवानी)