– पर वेटिकन सिटी कहां है, पता नहीं?
– गामा से पूछा, पंवार से पूछा, रावत से पूछा, नहीं पता कहां है वेटिकन सिटी?
अपने त्रिवेंद्र चचा ने इतिहास रच डाला। जीवों, परजीवों के लिए दया भाव के कारण उन्हें जल्द ही संत की उपाधि मिलने जा रही है। संत की उपाधि के लिए उन्हें वेटिकन सिटी से बुलावा आया है। पूरे प्रदेश और देश को इस पर नाज होना चाहिए। मैं खुशी से उछल पड़ा। चचा को संत बनने का मौका जो मिल रहा है। आखिर देश में जब इंसानियत कदम-कदम पर मर रही हो, तो ऐसे में संत और वह भी वेटिकन सिटी द्वारा यानी तीसरे चरण की सर्वोत्तम उपाधि। वाह, त्रिवेंद्र चचा वाह। आखिर आपने साबित कर दिया है कि आसमान पर एक और सूर्य चमक रहा है और वह है खैरासैण का सूरज।
दरअसल, संत बनना आसान नहीं। तीन चरणों में संत बना जाता है। पहले चरण में पूज्य, दूसरे चरण में धन्य और तीसरे चरण में पोप द्वारा संत की उपाधि मिलती है। त्रिवेंद्र चचा ने जिस दिन गाय ऑक्सीजन छोड़ती है और गाय के साइंटिफिक लाभ गिनाए। उसी दिन उनके अनुयायियों उनियाल, पंवार, रावत, झा ने बिशप के आगे उनके चमत्कारों का गुणगान किया और बकायदा सबूत भी दिए। बिशप के पॉस्चुलेटर के आधार पर त्रिवेंद्र चचा को पूज्य की उपाधि दी।
जब चचा ने सत्ता से हटने के बावजूद कोरोनेशन अस्पताल को तीन टांग वाला अपने घर का फ्रिज दान दिया तो उस दिन उन्हें धन्य की उपाधि मिल गई। कल जब उन्होंने कोरोना वायरस को एक प्राणी बताया और उसे भी जीने का अधिकार वाला बयान दिया तो उनकी दयालुता और महानता को देखते हुए पोप ने उन्हें संत की उपाधि देना तय कर दिया।
त्रिवेंद्र चचा को संत की उपाधि की घोषणा होते ही मुझ सहित उनके लाखों अनुयायी खुशियों से नाचने लगे। इस बीच, त्रिवेंद्र चचा की अंग्रेजी भी कमजोर है और उन्हें इतिहास-भूगोल का ज्ञान भी कम है। खैरासैंण, सतपुली, गैरसैंण, देहरादून के बाद उन्होंने दिल्ली दरबार ही देखा अभी तक। बाकी मंत्री विधायक देश-दुनिया घूम आए। तो उनकी समझ में नहीं आया कि वेटिकन सिटी कहां है? अपने राइट हैंड उनियाल से पूछा तो वो बोला, मुझे तो देहरादून की चप्पे-चप्पे पर सरकारी जमीन का पूछ लो, किसने कब्जा किया और कितना कमीशन मिला। लेकिन वेटिकन न पूछो। चचा ने अपने एडवाइजर पंवार से पूछा, पंवार बोला, पैसे बनाना और पहाड़ी पर पुल बनाना तो पता है वेटिकन सिटी नहीं पता। अपने मीडिया कार्डिनेटर से पूछा, वो बोला,, सरजी, मुझे चोपता, तुंगनाथ, दारमा, नीलांग तो छोडि़ए मोहंड का नहीं पता, वेटिकन सिटी का कहां होगा। अपनी खासमखास झा से पूछा, वो बोली, आपके किचन में चीनी-चाय पत्ती, लौंग-इलायची कहां पर रखी है ये तो बता सकती हूं वेटिकन नहीं।
त्रिवेंद्र चचा परेशान हो गए। भई, संत तो बनना है। वेटिकन सिटी तो तलाशनी होगी। सोचा, अपने अनुज सीएम तीरथ से पूछ लेता हूं। सो पूछ लिया। सीएम तीरथ बोले, लो ये तो छोटी सी बात है। होगा लांस एंजिल्स के आसपास। आखिर अमेरिकियों ने 200 साल भारत पर शासन किया तो यहां की कमाई से वहीं कहीं वेटिकन सिटी बनाई होगी। सुना है वहां, एक लंबा लबादा पहनते हैं। सिर भी ढका रहता है, वही एक देश है जहां फटी जींस नहीं पहनते। त्रिवेंद्र चचा की आंखें भर आई तीरथ के ज्ञान पर और सोचने लगे कि भारतीय परम्परा को विदेशियों ने भी अपना लिया। त्रिवेंद्र चचा, अभी कुछ और लोगों से कंफर्म करना चाहते थे, लेकिन इससे पहले कि यह कंफर्म करते पत्नी ने मुझे झकझोरते हुए कहा, ए जी, उठो, दूध-सब्जी ले आओ, थोड़ी देर में कोरोना कर्फ्यू लग जाएगा। धत्त तेरे की, एक सु:खद सपने का अंत हो गया।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]