यह कैसी देशभक्ति? गहरी नींद में सो रही जनता, लानत है

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  • पेड़ कट रहे, पुल टूट रहे, बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा, चारों ओर चुप्पी
  • क्या हमारी आत्मा मर गयी या हमें गुलाम बनकर जीने की आदत हो गयी?

मेरे घर के पास एक मंदिर है। मंदिर में रोज सुबह 30-40 लोग वंदेमातरम गाते हैं और दक्षो-फक्षो जैसा चिल्ला-चिल्ला कर मेरी नींद खराब करते हैं। ये जो रोज सुबह देशभक्ति का राग अलापते हैं, दिन भर कहीं नजर नहीं आते। मंदिर के सामने गडढ़ा है और उसमें बरसात का पानी भर जाता है तो उसमें एक बोरा मिट्टी नहीं डालते। पैजामा ऊपर कर साइड से निकल जाते हैं। मैं कभी पार्षद तो कभी मेयर को फोन कर या कभी शहरी विकास के इंजीनियर को कह गड्ढे में मिट्टी डलवाता हूं। 15 अगस्त के लिए 14 अगस्त को तिरंगा बांटने के अलावा मैंने इन देशभक्तों को कभी किसी मुद्दे पर लोगों को जागरूक करते या आवाज उठाते नहीं देखा। इन्हें मैं ढोंगी देशभक्त न कहूं तो क्या कहूं?
उत्तराखंड में यही हो रहा है। जनता इसी तरह से मदहोश है और गहरी नींद में सो रही है। कल रात सौंग नदी पर हाल में बना पुल टूट गया। नदी जरा सी उफान पर आई थी। लागत का 38-40 प्रतिशत कमीशन में चला जाता है। 25 प्रतिशत ठेकेदार खा जाता है तो पुल सीमेंट की बजाए रेत का ही बनता है, ऐसे में कहां ठहरता। रुद्रप्रयाग में तो पांच करोड़ का पुल 65 करोड़ तक पहुंचकर भी ढह गया और दो मजदूरों की जिंदगी लील गया। सब पुल ढहते देख रहे हैं। दोषी इंजीनियर प्रमोशन हासिल कर जेई से एई, एई से एक्सईएन से लेकर चीफ इंजीनियर तक बन रहे हैं। सब खामोश हैं।
यूकेएसएसएससी में इतना बड़ा घोटाला हो गया। दो और परीक्षाओं की जांच शुरू हो गयी। कहीं कोई आवाज सुनी। सब सो रहे हैं। जो हरीश रावत सरकार में वीडीपीओ की भर्ती मामले में पुलिस की रडार थे यानी कि आरबीएस रावत तो उन्होंने पाला बदल लिया और अब भाजपा के खामसखास हो गये। ऐसे में उनकी जांच कौन करेगा? आश्चर्य होता है कि अलग राज्य के लिए स्वस्फूर्त आंदोलन करने वाली उत्तराखंड की जनता गहरी नींद में है। जब उनका कोई अपना मर रहा है तो दहाड़ मार-मार कर रो रहे हैं लेकिन जब पूरा प्रदेश मर रहा है तो गहरा सन्नाटा है। हजारों पेड़ कट रहे हैं, पहाड़ घंस रहे हैं। जंगली जानवर घरों में घुस रहे हैं, और गर्भवती महिला जंगल में प्रसव कर रही है। नौनिहालों को अच्छी शिक्षा और युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा। इसके बावजूद जनता गहरी नींद में हैं। कहीं कोई आवाज नहीं, एक आवाज भी नहीं उठ रही। आश्चर्य है।
क्या हम पत्रकार डाकिये हैं कि आपको खबर लाकर बांच दें? आपका कोई फर्ज नहीं है? आप तब तक इंतजार करते हैं जब तक आग आपके घर में न लगे। आपके परिजन या दोस्त न मरें। यदि नहीं जाग रहे तो सोएं रहें, इंतजार करें, आग आपके घर को घेर लेगी, तब न कहना चेताया नहीं था। पत्रकार हैं हम, डाकिए नहीं कि चिट्ठी सी बांचते रहें।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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