बेटे के सपनों के लिए मां ने बेची अपनी नथ, बेटे ने चुकाया मां का कर्ज

279
  • सोच और संस्कारों की बात है, ‘ललित‘ बनना आसान नहीं
  • हर साल 300 बच्चों को निशुल्क उच्च शिक्षा देने का लिया महाप्रण

3 नवम्बर की बात है। दोपहर लगभग सवा बारह बजे उत्तरांचल प्रेस क्लब पहुंचा। क्लब में मीडिया का जमघट था। इतनी मीडिया किसी बड़े सेलेब्रिटी या बड़े नेता के लिए ही एकत्रित होती है। सामने एक 35 साल का एक युवा मीडिया को ब्रीफ कर रहा था और उसके इर्द-गिर्द समाज के प्रमुख लोग थे। यह युवा ललित जोशी है। सीआईएमएस और यूआईएचएमटी इंस्टीट्यूट का चेयरमैन। ललित मीडिया को बता रहे थे कि उन्होंने पत्रकारों, कोरोना या आपदा में मारे गये लोगों के बच्चों, शहीदों के बच्चों और लोक कलाकारों के 300 बच्चों को नि:शुल्क उच्च शिक्षा देंगे।
300 छात्र, नि:शुल्क शिक्षा और वह भी उच्च शिक्षा। आप समझ रहे हैं ना। इतना बड़ा फैसला, कोई बड़ा दिलवाला ही कर सकता है। वरना आज के जमाने में एक बच्चे को उच्च शिक्षा देने में ही हालत खराब हो जाती है। लेकिन चेयरमैन ललित जोशी ने समाज के वंचित और आर्थिक परेशानी से ग्रस्त लोगों के बारे में सोचा, यह एक बहुत बड़ी बात है। ललित के अनुसार शिक्षा से ही समाज में बदलाव आ सकता है और रोजगारपरक शिक्षा आज बाजार की मांग है।
ललित पैरा-मेडिकल, होटल मैनेजमेंट, बीकाम, मास काम समेत 40 से भी अधिक कोर्सों में इन छात्रों को नि:शुल्क दाखिला देंगे। दरअसल, ललित की यह सोच उसके संस्कारों से आई है। माता-पिता के दिये संस्कारों ने उसे समाज के प्रति उत्तरदायी बना दिया है। ललित ने महसूस किया है कि जीवन संघर्ष क्या होता है। 2003 में दसवीं के एग्जाम देने के बाद ललित जब टनकपुर अपने चाचा के पास गया तो वहां मां पूर्णागिरि मंदिर में मेला चल रहा था। ललित वहां किसी से उधार में ली गयी लेडीज साइकिल लेकर प्रसाद बेचने लगा। 28 दिन में 18 हजार कमाए और नई साइकिल खरीदी साथ ही मां को दस हजार की मदद भी दी। उच्च शिक्षा हासिल करने के दौरान ललित ने घोसी गली में टाइपिस्ट की नौकरी की। कुछ अन्य जगहों में भी छोटा-मोटा किया लेकिन सोच बड़ी रखी।
2012-13 के दौरान ललित ने ठान लिया था कि अब कुछ करना है। सपने साकार करने के लिए धन चाहिए था। साधारण परिवार में जन्में ललित के लिए यह मुश्किल समय था। मां अपने बेटे के सपनों को साकार करने के लिए आगे आई। अपनी सोने की नथ बेची तो पिता ने हल्द्वानी की जमीन, तब नींव पड़ी यूआईएचएमटी संस्थान की। मां की नथ बेचने के कर्ज को ललित ने परसों चुका दिया जब 300 बच्चों को पढ़ाने का महाप्रण लिया। ऐसे में जरूर मां का मस्तक ऊंचा हुआ होगा। वह अपने दिये संस्कारों और बेटे पर गर्व कर रही होगी।
अथक मेहनत, दूरदर्शिता और कुशल प्रबंधन से ललित ने आज एक मुकाम हासिल कर लिया है। सफलता के शिखर पर पहुंचे ललित की जिम्मेदारियां कम नहीं हुई हैं बल्कि बढ़ गयी हैं। वह यूआईएचएमटी के साथ ही पैरा-मेडिकल संस्थान सीआईएमएस के चेयरमैन भी हैं। इसके बावजूद वह अपनी माटी और थाती के लिए समर्पित है। समाज के हाशिए पर छूट रहे बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए उनका सहारा बनने की कोशिश में है। ललित की इस बड़ी और अच्छी कोशिश के सहभागी बनें। ऐसे कर्मठ और सकारात्मक सोच के बड़े दिलवाले ललित को सलाम। काश, सब सक्षम लोगों की सोच ललित जोशी जैसी होती तो उत्तराखंड सबसे अग्रणी राज्य होता।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

साधो, ये मुरदों का गांव, सब चुप हैं!

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here